हमारे देश में परम्पराओं को पीढ़ी दर पीढ़ी ढोते रहना एक आम बात है। अनेक ऐसी परम्परायें व रीति रिवाज हैं जो हमारे देश में सिर्फ़ इस तर्क के साथ ढोये जा रहे हैं कि 'चूँकि हमारे पुरखे भी यही किया करते थे इसलिए हम भी करते आ रहे हैं'। ऐसी ही एक परंपरा है पशुओं विशेषकर गाय-भैंसों जैसे दुधारू पशुओं के बाड़ों,डेरियों या तबेलों में मच्छरों को भगाने के नाम पर बेतहाशा धुआँ किये जाने की। लगभग पूरे देश की अधिकांश डेयरियों व पशु बाड़ों में तो शाम होते ही इस तरह का दम घोंटू धुआं उठना शुरू हो जाता है। शहरों और गांव में जहाँ घनी आबादी के बीच पशुओं के पास से मच्छरों को भगाने के नाम पर धुआं किया जाता है उस इलाक़े के लोगों का तो दम घुंटने लगता है और रोज़ रोज़ की इस दम घोंटू क़वायद से आम लोगों का जीना दुश्वार हो जाता है। और ख़ुदा न ख़्वास्ता ऐसी जगह पर कोई खांसी,दमा या एलर्जी जैसे मर्ज़ वाला कोई व्यक्ति रहता है उस तो हर दिन मरने जैसा दिन महसूस होता है। ऐसे तमाम लोग डेयरी मालिकों से यदि शिकायत करते हैं तो उसका सीधा सा जवाब यही होता है कि वह अपने पशुओं को मच्छरों से बचाने लिए ऐसा करते हैं। ज़ाहिर है जब आज़ाद देश के आज़ाद नागरिक जब,जहाँ जो चाहे कर सकते हैं। तो मच्छर भगाने के लिए धुआं करना भी उनकी परम्पराओं स्वतंत्रता में शामिल है और वे इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार भी समझते हैं ,भले ही किसी को दमा-खांसी हो या दम घुंटे या अँधा हो जाए।
सवाल यह है की इस थ्योरी में कितनी सच्चाई है कि धुआं करने से मच्छरों को भगाने में मदद मिलती है ? और क्या किसी भी गोबर कंडे (पाथी),पत्तों,लकड़ी अथवा गीले पत्तों के धुंए से मच्छर भगाने का का तरीक़ा अपनाना सही है ? या और भी तरीक़े अपना कर मच्छर भगाए जा सकते हैं? इसमें कोई शक नहीं कि जब पशुओं को मच्छर काटते है तो वो ठीक ढंग से खा नहीं पाते है न ही ठीक से जुगाली कर पाते है। मच्छरों के काटने से पशुओं में तनाव पैदा होता है, जिससे दूध उत्पादन की क्षमता पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। पशु विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी स्थिति में पांच से लेकर दस प्रतिशत तक दूध उत्पादन में कमी की संभावना बढ़ जाती है। जैसे मक्खी और मच्छर इंसानों को परेशान करते है वैसे ही पशुओं के लिए भी मच्छरों का बार-बार डंक मारना और भिन-भिनाना कष्टदायक होता है। और जब पशु स्वस्थ व तनाव मुक्त रहता है तो वह दूध भी ज़्यादा देता है। पशुओं को इन्हीं परेशानियों से निजात दिलाने की ग़रज़ से उनके आस पास धुआं किये जाने का चलन सदियों से चला आ रहा है।
परन्तु पशुओं को मक्खी मच्छरों से बचाने के जो चिकित्सीय साधन हैं उनमें किसी भी तरह के जंगल,झाड़,गोबर,कंडे या पत्तियों आदि का ज़हरीला धुआं शामिल नहीं है। पशु विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए पशुओं के पैरों में नीम का तेल लगाना चाहिए। इसके साथ ही नीम और तुलसी के पत्ते को जला कर एक कोने में रखने और बाद में उसे बुझा देने से उससे जो धुआं पैदा होता है वह मच्छरों को मार देता है । यह प्रातः व सायंकाल दोनों समय किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मच्छरों को मारने व भगाने का दूसरा उपाय यह है कि दो से तीन किलो शरीफ़े की पत्ती को तीन से चार लीटर पानी में डाल कर तब तक उबालें जब तक केवल एक लीटर पानी शेष बचे। फिर पशु के आस पास इस पानी का छिड़काव कर देने से 70 से 80 प्रतिशत मच्छर ग़ायब हो जाते हैं। सप्ताह में एक बार यह छिड़काव किया जा सकता है। इसी तरह कई पशु प्रेमी बड़ी बड़ी विशेष मच्छरदानियां बनवाकर अपने पशुओं की मच्छर मक्खियों से हिफ़ाज़त करते हैं। इसके अलावा कई ऐसी अगरबत्तियां भी हैं जिनमें डीडीटी और अन्य कार्बन-फ़ास्फ़ोरस यौगिकों का समावेश रहता है, ये अगरबत्तियां भी मच्छर भगाने में सहायक होती हैं। इसी तरह बाज़ार में मच्छर भगाने व मारने के टिकिया, अगरबत्ती, लोशन, वेपोराइज़र्स (रासायनिक भाप छोड़ने वाले यंत्र) आदि जैसे और भी कई उपाय उपलब्ध हैं। लगभग इन सभी में एलथ्रिन समूह के यौगिकों, जड़ी बूटियों, तेल या डाइ इथाइल टॉल्यूमाइड (डीईईटी) का उपयोग होता है। मच्छर भगाने के ये सभी उपाय 2 से 4 घंटे तक ही प्रभावी रहते हैं। जबकि किसी अन्य ईंधन का दमघोंटू धुआं भी केवल धुआं उठने तक ही मच्छर को कुछ देर के लिए भगाता ज़रूर है परन्तु साथ साथ यह अंधाधुंध धुआं पशुओं से लेकर इंसानों तक सभी को नुक़सान भी पहुंचाता है और विचलित भी करता है।
मच्छरनाश के नाम पर किये जाने वाले धुंए के उपयोग के तुरन्त बाद से लेकर कुछ घण्टों तक सबसे अधिक सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत होती है। इसके अलावा इससे सिरदर्द व आंखों में जलन भी होती है। इस तकलीफ़ के साथ चमड़ी पर जलन, श्वास नली में तकलीफ़ व सिरदर्द भी महसूस हो सकता है । कई लोगों को बुख़ार और छींक आने के साथ-साथ खांसी, सर्दी तथा नाक बहने की परेशानी भी होती है। शोध में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए कि मच्छरनाशकों के इस्तेमाल से कई लोगों को दमा हो गया जबकि इसके इस्तेमाल से पहले उन्हें यह बीमारी नहीं थी। ऐसे लोगों ने जब मच्छरनाशक का उपयोग छोड़ दिया उसके बाद भी दमा का मर्ज़ बरक़रार रहा। सामुदायिक स्तर पर कुछ उपाय ऐसे जा सकते हैं जिनसे मच्छरों के पनपने के स्रोतों में कमी लाई जा सके। जैसे जल स्रोतों में इकट्ठे पानी को हर सप्ताह निकालना या सुखाना। डेयरियों व घरों के आस-पास के गड्ढों की सफ़ाई करना। ऐसी जगहों की ख़ास तौर पर सफ़ाई ज़रूरी है जहाँ पानी इकट्ठा होता है। पानी को हमेशा ऐसी टंकियों में रखा जाए जो आसानी से साफ़ भी हो सकें और उनमें मच्छर भी न जा सकें। मल-जल निकासी की उत्तम व्यवस्था की जाए व नालियों में रुके पानी को निकालने के लिये समुचित ढाल बनाई जाए। समय-समय पर नालियों में से गाद निकाली जाती रहे। नालियों को वर्षा पूर्व साफ़ किया जाए ताकि पानी बिना अवरोध के नालियों में से बह जाए। गटर के गड्ढे ढंके रहें। 5 हिस्से नीम तेल व 95 भाग नारियल या सरसों का तेल का लोशन बनाकर या नीम के तेल का क्रीम के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। नीम के तेल से उपचारित टिकिया या नीम के तेल को केरोसिन के साथ जलाकर भी उपयोग किया जा सकता है। नीम के तेल का उपयोग रासायनिक मच्छरनाशकों का सस्ता व सुरक्षित विकल्प है। परन्तु सुविधाजनक उपाय समझकर आम पशु पालक मच्छर भगाने के नाम पर कुछ भी जलाकर व धुआँ फैला कर दमघोंटू प्रदूषण फैलाते हैं जो पशुओं से लेकर इंसानों तक सभी के लिए बेहद हानिकारक हैं। यह परम्परा बेहद कष्टदायक,हानिकारक व चिंतनीय है।
(लेखक/ -निर्मल रानी)
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चिंतनीय है मच्छर भगाने के नाम पर दमघोंटू प्रदूषण फैलाना