दुनिया मे सबसे स्थिर मन की मालकिन रही राजयोगिनी दादी जानकी के नाम पर भारत सरकार ने पांच रुपये का डाक टिकट जारी कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका रही दादी जानकी 104 वर्ष की आयु में भी जब किसी बड़ी सभा मे बोलती थी तो कहती थी," इतनी हजारों की संख्या में मेरे मीठे- मीठे भाई बहनों को देखकर बहुत खुशी होती है। वे सबसे पहले सभी को तीन बार ॐ शांति का नारा लगवाती थी।
दादी जानकी कहा करती थी कि उनके पास में कोई पर्स नहीं है, खींचा खाली ,लेकिन वह पूरे विश्व की मालिक है। उनकी जेब में कभी भी एक रुपये नहीं रहता ,लेकिन वे पूरे विश्व का चक्कर लगाती रहती। उन्होंने कभी अपने पास पर्स नहीं रखा, जहाँ गयी शिव बाबा ने खुशी, विश्वास और दुआओं से दामन भर दिया। लोगों के अपनेपन, प्यार से 104 साल में भी स्वस्थ रही।वे कहती थी, दुआयें हमारे जीवन का श्रंगार हैं। उन्होंने जीवनभर तीन बातों- सच्चाई, सफाई और सादगी का पालन किया। यही तीन बातें उनके जीवन का आधार, उनकी पूंजी और उनकी शक्ति रही। उन्हें पल- पल महसूस होता था कि शिव बाबा का साथहै।
दादी जानकी अपना अनुभव सुनाया करती थी कि परमात्मा पल पल उनके साथ है और उन्हें सदा परमात्मा मदद का अनुभव होता है। क्योंकि उन्हें मन- वचन- संकल्प और कर्म में एक परमात्मा के सिवाए और कुछ याद ही नहीं रहता है। वे कहा करती थी कि सभी खुश रहें, मस्त रहें और सदा परमात्मा के साथ जीवन में आगे बढ़ते रहे। उनका कहना है कि ईश्वर की मदद, साथ और उसे अपना बना लेना ही जीवन सफल करना है। जितना हो ,उतना साइलेंस का अभ्यास बढ़ाओ, क्योंकि साइलेंस की पावर सबसे बड़ी पॉवर है।
बोल सदा मीठे हो
दादी जानकी ने राजयोगी की परिभाषा बताते हुए कहा था कि राजयोगी अर्थात जिसके बोल सदा मीठे हो, जिसे परमात्मा से प्यार हो और जीवन में दिव्य गुण हों। भगवान को साथी बना लो तो सब समस्याएं खत्म हो जाएंगी। कुछ भी हो जाए इंसान कोअपनी सच्चाई नहीं छोड़ना चाहिए।
शांति की महानायिका
शिव बाबा की शक्ति व राजयोग मेडिटेशन का ही कमाल है कि दादी जानकी ने अपने आप को इतना शसक्त बना लिया था कि वह उम्र को मात देती रहीं । ये योग की ही पावर थी कि दादी 104 साल की उम्र में भी विश्वभर का भृमण कर रहीं । दादी विश्वभर की 46 हजार से अधिक बहनों की नायिका बनकर रही । वे12 लाख भाई- बहनों की प्रेरणा स्रोत रही। दादी की उपस्थिति मात्र से ही सभी में उत्साह भर जाता था। दादी ब्रह्माकुमारी विश्व विद्यालय की शान और जान रही है।
मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ी दादी जानकी हर दिन12 घंटे जनसेवा में सक्रिय रहती थी।अमृत बेला 4 बजे से जागकर राजयोग, ध्यान करना उनकी पहली दिनचर्या थी। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका उत्साह युवाओं जैसा रहा।उन्हें 80 प्रतिशत चीजें मौखिक याद रहती थी।दुनिया के 140 देशों में फैले प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका दादी जानकी का जीवन आध्यात्म का प्रेरणापुंज रहा है। यही नहीं विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का वर्ल्ड रिकार्ड भी दादी जानकी के नाम ही रहा ।
अनवरत साधना
दादी जानकी का जीवन राजयोग की जीती-जागती मिसाल रहा। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से खुद को इतना परिपक्व, शक्तिशाली, महान और आदर्शवान बना लिया था कि उनका एक-एक वाक्य महावाक्य हो जाता था।उन्होंने योग से मन इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थी। यही कारण है कि जीवन के 104 बसंत पार करने के बाद भी उनकी ऊर्जा और उत्साह देखते ही बनता था। केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के 140 देशों में अपनी मौजूदगी से दादी ने लाखों लोगों की जिंदगी में एक सकारात्मक संचार किया । लोग देखकर, सुनकर, मिलकर प्रेरित होते थे, उनका एक-एक शब्द लाखों भाई-बहनों के लिए मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक बन रहा है।
सिंध प्रांत अब पाकिस्तान के हैदराबाद में 1 जनवरी सन 1916 में दादी जानकी का जन्म हुआ था। उन्हें भक्ति भाव के संस्कार बचपन से ही मां-बाप से विरासत में मिले। लोगों को दु:ख, दर्द और तकलीफ, जातिवाद और धर्म के बंधन में बंधे देख उन्होंने अल्पायु में ही समाजिक परिवर्तन का दृढ़ संकल्प किया। साथ ही अपना जीवन समाज कल्याण, समाजसेवा और विश्व शांति के लिए अर्पण करने का साहसिक फैसला कर लिया। माता-पिता की सहमति के बाद २१ वर्ष की आयु में आप ओम् मंडली (ब्रह्माकुमारीज संस्था का पहले यही नाम था) से जुड़ गईं थी।
राजयोग-साधना
ब्रह्माकुमारीज के संस्थापक दादा लेखराज जो बाद में ब्रह्मा बाबा के नाम से ख्यातिलब्ध हुए के सान्निध्य में दादी ने 14 वर्ष तक गुप्त राजयोग साधना की। 14 वर्षों तक कराची में एक साथ 300 भाई-बहनों ने प्रेम और स्नेह से रहते हुए खुद को इस विश्व विद्यालय के चार विषयो ज्ञान, योग, सेवा और धारणा में परिपक्व बनाया। वर्ष 1950 में संस्था कराची से माउंट आबू, राजस्थान में स्थानांतरित हुई। जहां से विश्व सेवाओं का शंखनाद हुआ और आध्यात्म की अलख को विश्व के कोने-कोने में पहुंचाया।
चरित्र निर्माण
वर्ष 197० में दादी जानकी पहली बार विदेशी की जमीं पर मानवीय मूल्यों यानि चरित्र निर्माण का बीज रोपने के लिए गई थी। दादी जानकी ने भले ही चौथी तक पढ़ाई की परन्तु प्यार, स्नेह, अपनापन और मूल्यों की भाषा ने विदेशी जमीं पर उन्होंने भारतीय संस्कृति को स्थापित कर दिया। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता रहा। आज विश्वभर में लोग भारतीय आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन को दिनचर्या में शामिल कर जीवन को नई दिशा दे रहे हैं। जिसमे दादी जानकी का अहम योगदान है। दादी बड़े सवेरे उठ जाती थी। राजयोग मेडिटेशन के साथ आध्यात्मिक मूल्यों का मंथन, लोगों से मिलना-जुलना आदि अपने तय समय पर ही करती थी। इसके बाद दिन में कुछ आराम कर वापस सायंकालीन ध्यान मेडिटेशन और फिर रात्रि 10 बजे तक सो जाती हैं। करीब 12 घंटे तक आज भी ईश्वरीयसेवा में संलग्न रहती थी।
ब्रांड एंबेसेडर...
ब्रह्माकुमारीज संस्था की पूरे विश्व में साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर विशेष पहचान रही है। देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दादी जानकी को स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर भी नियुक्त किया हुआ था। दादी के नेतृत्व में पूरे भारतवर्ष में विशेष स्वच्छता अभियान भी चलाए गए।
ईश्वरीय सेवा
दादी जानकी ने विश्व के सौ से अधिक देशों में भारतीय प्राचीन संस्कृति आध्यात्मिकता एवं राजयोग का संदेश पहुंचाया है। दादी ने सबसे पहले लंदन से ईश्वरीय संदेश की शुरुआत की। यहां वर्ष 1991 में कई एकड़ क्षेत्र में फैले ग्लोबल को-ऑपरेशन हाऊस की स्थापना की गई। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया और यूरोप के देशों में आध्यात्म का शंखनाद हुआ। दादी के साथ हजारों की संख्या में संस्था से जुड़े भाई-बहनो ने सहयोग का हाथ बढ़ाया। दादी जानकी ने वर्ष 197० से वर्ष 2007 तक 37 वर्ष विदेश में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद वर्ष 2007 में संस्था की तत्कालीन मुख्यप्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि के शरीर छोडऩे के बाद दादी जानकी को 27 अगस्त 2007को ब्रह्माकुमारीका की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। तब से लेकर जीवन पर्यन्त तक दादी जानकी लाखों लोगों की प्रेरणापुंज बनी हुई थी।
सादगी दादी की
दादी जानकी अपने शरीर को ठीक रखने के लिए तथा खुद को हल्का रखने के लिए सुबह नाश्ते में दलिया, उपमा और फल लेती थी। दोपहर में खिचड़ी, सब्जी लेना पसंद करती थी। रात में सब्जियों का गाढ़ा सूप पसंदीदा आहार है। दादी वर्षों से तेल-मसाले वाले भोजन से परहेज करती थी। उनका भोजन करने का भी समय निर्धारित था। दादी का कहना था कि हम जैसा अन्न खाते हैं वैसा हमारा मन होता है। इसलिए सदा भोजन परमात्मा की याद में ही करना चाहिए। दादी जानकी के अव्यक्त होने के समय देशभर में लॉक डाउन के चलते उनके अंतिम संस्कार के समय देश दुनिया के वे लाखो भाई बहन नही पहुंच सके,जिनकी आंखों का सितारा दादी जानकी जीवन भर रही है।लेकिन अब भारत सरकार ने उनके नाम व चित्र का डाक टिकट जारी कर उनके महान व्यक्तित्व को प्रमाणित कर दिया है।हालांकि संसार भर के लोगो की भारत सरकार से उन्हें मरणोपरांत 'भारत रत्न' सम्मान दिए जाने की अपेक्षा है।
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)
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