भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र है। हमारी प्रतिष्ठा दुनिया के सबसे सफल और क्रियाशील लोकतंत्र के रूप में भी होती है। हम गर्व से कह सकते हैं कि बिहार के लिच्छवी गणराज्य के रूप में कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व हमने दुनिया को सबसे पहले गणतंत्र का संदेश दिया। 1947 में अंग्रेजों से मिली स्वतंत्रता के बाद संसदीय गणतंत्र के रूप में भी हमने दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश किया है। 26 नवंबर 1949 में अपना संविधान अंगीकार करने , 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्र बनने , फिर 1952 में हए पहले आम चुनाव से लेकर आज तक , एक लोकतंत्र के रूप में हमने सफलता के नित नए आयाम छुए हैं। हर चुनाव के साथ बढ़ते मतदान प्रतिशत ने भी लोकतंत्र के प्रति लोगों के गहरे होते विश्वास को प्रतिबिंबित किया है।
इतिहास पर नजर डालें तो…संसद भवन की अभिकल्पना दो अंग्रेज वास्तुकारों- सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी। संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी , 1921 को द डयूक ऑफ कनाट ने रखी थी। इस भवन के निर्माण में छह वर्ष लगे और इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी , 1927 को किया। इसके निर्माण पर उस समय 83 लाख रुपये की लागत आई थी।
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के तहत सेंट्रल लेजिस्लेचर स्थापित किया गया था। इसमें काउंसिल ऑफ स्टेट और लेजिस्लेटिव असेंबली नाम के दो सदन थे। काउंसिल ऑफ स्टेट में 60 जबकि लेजिस्लेटिव असेंबली में 145 सदस्य थे। संविधान सभा बनने के बाद 1947 में इसे रिमॉडल किया गया। स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव संपंन होने के बाद 13 मई, 1952 को दोनों सदनों की पहली बैठक हुई। पहली लोक सभा में सीटों की संख्या 499 थी। इसके बाद सीटों की संख्या को संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से बढ़ाकर 525 , फिर 530 और बाद में 550 कर दिया गया।
आज सौ वर्षों के बाद हमारी आवश्यकताएं बढ़ी हैं, बदली भी हैं। आबादी के रूप में हम कई गुणा बढ़ गए हैं। 1921 में जब संसद भवन का निर्माण शुरू हुआ था उस समय देश की आबादी कम थी। हमारी संसदीय प्रणाली में जनसंख्या के आधार पर जनप्रतिनिधित्व को बढ़ाने की व्यवस्था की गई है। 84 वें संविधान संशोधन के जरिए साफतौर पर यह प्रावधान किया गया है कि जब तक 2026 के बाद होनी वाली , पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते , लोक सभा में सीटों का आवंटन 1971 की जनगणना और राज्यों की विधान सभाओं में 2001 की जनगणना के आधार पर चलता रहेगा। जाहिर है 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के प्रामाणिक आंकड़े आने के बाद , लोक सभा सीटों में इजाफा होना है लिहाजा बढ़ी आबादी के बीच जनप्रतिनिधित्व को बढ़ाना वक्त की जरूरत है। इस लिहाज से अधिक जनप्रतिनिधियों के बैठने की व्यवस्था करना आवश्यक है और इसके लिए नए संसद भवन का निर्माण नितांत जरूरी है। संसद भवन में अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष जब भी संयुक्त सत्र को संबोधित करते हैं उस वक्त सांसदों को बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती। ऐसे आयोजनों में विभिन्न देशों के राजदूतों और प्रेस से जुड़े के लोगों को भी जगह मिलना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या का समाधान नया संसद भवन है , जिसकी संयुक्त बैठक में एक साथ 1224 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसके अलावा संसद भवन परिसर में लोक सभा के 2000 और राज्य सभा के 1200 से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी भी काम करते हैं। यह आवश्यक है कि उनके बैठने के लिए पर्याप्त जगह हो ताकि उनकी उत्पादकता अधिक हो सके। नया संसद भवन इस कमी की पूर्ति करने में भी मददगार साबित होगा।
कोरोना के कालखंड ने हमें भविष्य की आपातकालीन आवश्यकताओं के प्रति सचेत किया है। संसद का पिछला मॉनसून सत्र जिन परिस्थितियों में संपंन हुआ उसने हमें ऐसी चुनौतियों से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध किया है। संक्रमण से सुरक्षा, बैठने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता और बचाव के लिए अन्य उपायों की पूर्व तैयारी आवश्यक है। यह अभूतपूर्व था कि सदन की कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए पहली बार लोक सभा के सांसद राज्य सभा चैंबर औऱ राज्य सभा के सांसद लोक सभा चैंबर में बैठे। नया संसद भवन इन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होगा।
बीते सौ वर्षों में पूरी दुनिया ने नए प्रकार के खतरों का सामना किया है। इन खतरों से भारत भी अछूता नहीं है। 13 दिसंबर, 2001 को संसद भवन पर हुए हमले ने इस संकट को और गहरा किया है लिहाजा नए संसद भवन में सुरक्षा की दृष्टि से तमाम जरूरी इंतजाम किए जाएंगे।
अगले कुछ वर्षों में अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रहा संसद भवन रखरखाव की पुख्ता व्यवस्था के कारण अब भी अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रहा है लेकिन समय की सिलवटें छिपाना अब उसके लिए भी कठिन है। हर वर्ष संसद भवन परिसर की मरम्मत पर होने वाला करोड़ों का खर्च भी नए संसद भवन के निर्माण की ओर इशारा करता है।
नए संसद भवन के निर्माण में सुरक्षा भी एक बड़ा और अहम कारक है। सुरक्षा संबंधी एक उच्च स्तरीय समिति सांसदों की सुरक्षा के अपर्याप्त इंतजाम की बात पहले ही कह चुकी है। संसद भवन परिसर का फायर फाइटिंग सिस्टम भी नाकाफी है और किसी अनहोनी की स्थिति में बड़ा संकट पैदा होने की आशंका सदैव रहती है। हर वर्ष संसद भवन परिसर की मरम्मत पर होने वाला करोड़ों का खर्च भी नए संसद भवन के निर्माण की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। आधुनिक तकनीक ने जहां हमारे काम को आसान बनाया है , वहीं लोकतंत्र के मंदिर से लोगों की अपेक्षाओं को भी बढ़ा दिया है। कोरोना जैसे विश्वव्यापी संकट ने हमारे सामने जिस तरह की चुनौतियां पेश की हैं , उनके बारे में भविष्य में सजग रहना बेहद जरूरी है। देश की कई विधान सभाएं पेपरलैस हो गई हैं और ई - विधान सभाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में देश की संसद का अत्याधुनिक तकनीक से लैस होना अत्यंत आवश्यक है।
नया संसद भवन समय की मांग भी है और आवश्यकता भी। इससे जुड़ी समस्त योजनाओं को अगले सौ वर्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। नया संसद भवन नए भारत की प्रेरणा का प्रमुख केंद्र होगा। लोकतंत्र के इस नए मंदिर में संविधान के रूप में देवता की प्राणप्रतिष्ठा होगी। दुनिया को गणतंत्र का महान विचार देने वाला हमारा देश नए संसद भवन के रूप में एक प्रेरक स्थल पाकर लोकतंत्र को और फलदायी बनाने की दिशा में अग्रसर होगा।
(लेखक-पवन कुमार शर्मा )
आर्टिकल
नया संसद भवनः हमारी संवैधानिक आवश्यकता