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मुसीबत से घिरे अनिल अंबानी के हालात अभी सुधरते नहीं दिख रहे

मुसीबत से घिरे अनिल अंबानी के हालात अभी सुधरते नहीं दिख रहे

देश में शीर्ष कारोबारियों में कभी शुमार रहे अनिल अंबानी की इन दिनों हालत खस्ता है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि परेशान कारोबारी को अभी अपना सबसे बुरा समय देखना बाकी है। चारों तरफ से मुसीबत से घिरे हुए अनिल अंबानी के आखिरी सुरक्षित एसेट रिलायंस कैपिटल में भी अब धीरे-धीरे गिरावट हो रही है और इसने अपनी नियोजित 2 बिलियन डॉलर के एसेट की बिक्री की तैयारियां करनी शुरू कर दी हैं। 
केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सबसे टॉप म्यूचुअल फंड्स में शामिल आरकैपिटल के पास मार्च में सिर्फ 11 करोड़ रुपये कैश ही रिजर्व बचा था। इसके अलावा, क्रेडिटर ने अनिल अंबानी ग्रुप की प्रमोटर कंपनियों से शेयर टॉप-अप के लिए पूछा है। अनिल अंबानी ग्रुप के गिरते हुए मार्केट कैपिटल को देखते हुए अभी यह दूर की बात है। 2008 में 100 बिलियन डॉलर कैपिटल के साथ वाले इस ग्रुप के पास मौजूदा वक्त में 4 बिलियन डॉलर की मामूली कैपिटल रह गई है। एक विश्लेषक के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप सर्टिफाइड वेल्थ डेस्ट्रॉयर बन गया है। ऐसे समय में जबकि प्रमोटर का शेयर लिस्टेड कंपनियों में नीचे जाता है, प्रमोटर्स के लिए फटाफट एसेट की बिक्री करना जरूरी हो गया है।
अनिल अंबानी ग्रुप के लिए एसेट्स को मॉनिटाइज करना कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है। उनकी बिकवाली की योजनाएं काफी हद तक असफल साबित हुईं हैं जिसके चलते ग्रुप की कंपनियों के डूबते मार्केट कैप ने उनकी वैल्यू घटा दी है। जनरल मार्केट की कमजोरी ने भी इसमें अपनी भमिका निभाई है। अनिल अंबानी समूह के लिए बुरी खबरें सामने आने के दौर में यह लेटेस्ट हिस्सा है। हाल ही में, अनिल अंबानी की अधिकतर कंपनियों की रेटिंग में गिरावट आई है। उनकी कंपनियों की मार्केट वैल्यू में लगातार गिरावट जारी है और इसमें रुकावट के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं। कुछ दिनों पहले, रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स ने रिलायंस होम फाइनैंस और रिलायंस कमर्शियल फाइनैंस के लिखित कर्जों को डाउनग्रेड किया था और इन दोनों कंपनियों को आरकॉम व रिलायंस नवल वाली कैटिगरी में डाल दिया था। ये दोनों कंपनियां पहले ही डिफॉल्ट हैं।
खबरों के मुताबिक, अनिल अंबानी की लिस्टेड कंपनियों की मार्केट वैल्यू जोड़ें तो यह कुल कर्जे की तुलना में 10 गुना कम है। सितंबर, 2018 में ग्रुप के पास 7 लिस्टेड कपनियां थीं जिनकी कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन 22,238 करोड़ रुपये थी। इन 7 कंपनियों का कर्ज इसी अवधि में कुल 1,36,000 करोड़ रुपये हो गया। ग्रुप के कुल मार्केट कैपिटल की बात करें तो आधे से ज्यादा हिस्सा एक कंपनी- रिलायंस निपॉन लाइफ एसेट मैनेजमेंट कंपनी का है जो रिलायंस कैपिटल और जापान की निपॉन लाइफ इंश्योरेंस का जॉइंट वेंचर है। अगर इस कंपनी को लिस्ट से हटा दें तो ग्रुप का कुल मार्केट कैप घटकर 10,196 करोड़ रुपये रह जाता है। रिलायंस निपॉन को छोड़कर, पिछले 12 महीनों के दौरान ग्रुप का संयुक्त मार्केट कैप 76 प्रतिशत गिरा है।
रिलायंस कैपिटल म्यूचुअल फंड और जनरल इंश्योरेंस कंपनी में अपना स्टेक बेचने पर विचार कर रही है। कंपनी ने एएमसी बिजनेस में पूरे 42.9 प्रतिशत स्टेक की बिक्री का ऐलान किया है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जून 2019 तक इसके पूरा होने की उम्मीद है। कंपनी ने अपने कर्जे को कम करने के लिए खुद को मीडिया बिजनेस से बाहर रखने का फैसला भी लिया है। मॉनिटाइजेशन में देरी ग्रुप के लिए एक बड़ी समस्या रही है। कंपनी को रेडियो बिजनेस की बिक्री से 1,700 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है लेकिन अभी इसमें देरी हो रही है। कंपनी की योजना आईपीओ के जरिए रिलायंस जनरल इंश्योरेंस में 49 प्रतिशत स्टेक और एएमसी बिजनेस में 42.9 प्रतिशत स्टेक बेचने की है। इनके सौदे भी फिलहाल रीशेड्यूल हो गए हैं। इसके अलावा, महिंद्रा फर्स्ट चॉइस और प्राइम फोकस के स्टेक्स की बिक्री में भी देरी हो गई है। सितंबर, 2018 तक कंपनी अपने प्लान्स के सिर्फ एक तिहाई सौदों को ही पूरा करने में कामयाब रही है। बाकी सभी के लिए फिलहाल तारीखें आगे ही बढ़ रही है।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आरकॉम, आरपावर, आरइन्फ्रा और रिलायंस नवल एंड इंजीनियरिंग ग्रुप के कुल कर्जे के 60 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं। इन चार कंपनियों का संयुक्त मार्केट कैप 5,611 करोड़ रुपये (2018, सितंबर के मुताबिक) है जो इनके कुल कर्जे के करीब 7 फीसदी के बराबर ही है। विश्लेषकों के मुताबिक, इन सभी कारणों के चलते अनिल अंबानी ग्रुप के पावरलेस हो गया है। अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनियों का संयुक्त ऑपरेटिंग प्रॉफिट पिछले फाइनैंशल इयर की पहली तिमाही में 7,361 करोड़ रुपये रहा था। इसी अवधि के दौरान, इन कंपनियों को संयुक्त ब्याज के लिए 11,050 करोड़ रुपये से ज्यादा अमाउंट का भुगतान करना था। आरइन्फ्रा और आरकैप एसेट की बिक्री से कंपनी को 9,990 करोड़ रुपये का फायदा हुआ। ग्रुप की कंपनियों के ऑपरेटिंग प्रॉफिट और इंट्रेस्ट लायबिलिटी में बड़े फर्क के चलते ग्रुप के लिए अपने इंटरनल सोर्सेज से लोन चुकाने का कोई रास्ता नहीं बचा। 

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