प्रभु तेरी यह कैसी माया
कोरोना कहर क्यूं बरपाया
जिंदगी जैसे थम सी गई हो
डर से वह सहम गईं हो
घर मे रहने को मजबूर हुए
बेहाल बेचारे मजदूर हुए
प्लेन,ट्रेन,बस बन्द रही
दुकाने चंद ही खुली रही
हाथ मिलाना निषेध हो गया
खांसी, छींक से भय हो गया
मानव मानव से दूरी हो गई
संक्रमण की बीमारी हो गई
एकाकीपन सताने लगा है
सेनेटाइजर अब भाने लगा है
बचना होगा इस बीमारी से
दूर रहे हम संक्रमणकारी से
प्रभु को याद करते रहे हम
संक्रमण को दूर भगाएं हम
तभी आज सुरक्षित होगा
कल का भविष्य संरक्षित होगा।
जी हां,सन 2020 देश ही नही दुनिया के लिए कोरोना महामारी के कारण कष्ट एवं व्यवधान भरा रहा है।इसी कारण जिंदगी घरो में कैद होने को मजबूर हो गई ।बच्चों की पढ़ाई और बड़ो के कारोबार सब ठप्प होकर रह गए।लेकिन साथ ही एक अवसर भी मिला है कुछ सोचने का,कुछ समझने का और महसूस भी रहने का। जीवन की इस आपाधापी में हमसे क्या छूट गया ? जो अपने थे वह क्यों रुठ गए । कुछ से अच्छे रिश्ते थे जिनमें गांठ पड़ गई । देखे गए सपनों और किये गए संघर्ष के बीच अपनो से जो दूरी बनी , उसे पाटने का अवसर हमें मिला। क्या उसका फायदा उठा पाए हम ।जीवन मे जो कुछ सीखना था, कुछ बातें करनी थी, कुछ शौक पूरे करने थे, कुछ जज्बा दिखाना था।कुछ जज्बात भी थे जो तेज गति से गुजरती जिंदगी की गाड़ी से दिखाई नहीं पड़ रहे थे।
किंतु अब समय मिला है कि हम ठहर कर वह सब देख सकें। वह सब समझ सकें कि हमने क्या खोया,क्या पाया? जो पाया वह क्या काफी है? जो खोया वह क्या ठीक हुआ? अगर हम ध्यान से देखें तो आज जो चीजें हमारी जिंदगी में वापस आ रही हैं ,क्या वह सब नई हैं? शायद नहीं, ये तो वही चीजें हैं जो हमारे साथ बचपन से थीं। इसमें कुछ भी नया नहीं बल्कि ये सब तो पुरानी है, इतनी पुरानी कि इसे हम भूल भी चुके थे। इसीलिए आज हमें ये सब नई सी महसूस हो रही है।
जीवन की ऊंंचाइयों को पाने की सोच में हम इतना व्यस्त हो गए थे कि हम यह भी भूल गए कि जीवन में पैसा और प्रसिद्धि ही सबकुछ नहीं है। सबसे जरूरी है खुश रहना। जीवन का असली उद्देश्य है खुश रहना और मुस्कुराना और मुस्कुराहट बांटना भी हमारा कर्तव्य होना चाहिए।
जिस सोशल डिस्टेंसिंग की हम बात कर रहे है वह अपने परिवार के साथ रहने,निकट आने का एक बहाना मात्र तो नही है। बाहर की दुनिया को थोड़ी देर छोड़ कर अपनी घरेलू दुनिया से फिर जुड़ने का यह समय कहा जा सकता है।
यह सब नया नहीं है यह बाते जो हम सब भूल गए थे। अपने घर,परिवार और मित्रो को समय देना कोई नहीं बात नहीं है बल्कि यह वह संस्कार है जिसे हम भूल चुके थे। मॉल,क्लब,पार्टी को छोड़कर अपनो के साथ रहना,अपने आप से बाते करना भी कोई नहीं बात नहीं बल्कि यही जिंदगी जीने का सही तरीका कहा जा सकता है। कोरोना महामारी से पहले तक कभी समय ना मिलने की शिकायत करने वाले लोग लॉक डाउन में समय ना कट पाने का रोना रो रहे थे।इस लंबे खाली समय में स्वयं को समझने के लिए शांति व शक्तिशाली बनाए रखने के लिए आध्यात्म का सहारा भी लिया गया। सदियों से हमारी संस्कृति यही बताती है। योग और ध्यान तो 5हजार वर्ष पुरानी हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। कोरोना महामारी के कारण यह सारी बाते हमें याद आ रही हैं। कोरोना के महादुःख के बाद के हालात सुधरने पर दूसरा पहलू सुखद ही होगा ।भले ही दुनिया की जीवन जीने की गति थोड़ी कम हो गई हो। लोगों का घर से निकलना कम हो गया हो। सड़क पर गाड़ियां ना के बराबर चलने लगी हो। इससे हमारी प्रकृति को तो फायदा हुआ है,उसे राहत भी मिली है।
तेज भागतीऔर भीड़ भरी जिंदगी के बीच प्रकृति का भी दम फूल गया था। आज खुला स्वच्छ आसमान, पक्षियों की चहचहाहट के बीच साफ हवा हमसे होकर जाने लगी हैं। जिन्हे हम खो बैठे थे। नई परिस्थिति में हमारे सामने नए हालात में सामंजस्य बैठाने की बड़ी चुनौती है। इस माहामारी के बाद हम सबके सामने एक नई शुरुआत करने का अवसर पैदा हुआ है।यानि एक बार फिर से सामान्य जीवन शुरू होगा तो हम सबके हिस्से की दुनिया बदल चुकी होगी। इस बदलाव में हमें अपने अंदर के उस व्यक्ति को बचाए और बनाए रखना है जिसे हम सब ने इस लॉकडाउन में अपनी अंतरआत्मा से महसूस किया था। भौतिकता की भागम-भाग से ज्यादा हमको अपनी खुशी और अपनो की खुशी को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। यह सब अपनी पुश्तेनी जड़ों से जुड़ने जैसा अनुभव है। जो है,जैसा है उसमें खुश रहना ही सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। जो ध्यान योग से संभव है।इस अवसर पर मेरी कविता की एक बानगी देखिए,
युग परिवर्तन जब होता है
प्रकृति करती तैयारी है
जो प्रकृति से विमुख होता
उसको ही होती बीमारी है
दिनचर्या नियमित जिसकी
सात्विक भोजन ग्रहण करे
साफ सफाई में गुरेज न हो
मर्यादा का पूर्ण पालन करे
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती
ऐसे में कोई बीमारी न हो
जो प्रकृति के विरुद्ध चला
अपने जीवन से दूर चला
वात,कफ़, पित असन्तुलित हो
शरीर ही बीमारी का घर बनता
मांसाहार के कारण पनपी
कोरोना जैसी महामारी भी
सावधानी न अपनाने से बढ़ी
यह जानलेवा बीमारी भी
विदेश से देश मे,देश से शहर में
गांव देहात तक जा पहुंची
लॉक डाउन में देश ठहर गया
फिर भी इसकी संख्या बढ़ती
इस बीमारी का मिजाज नया है
छूने पर ही यह लगती है
जिसने दूर से नमस्ते की हो
उससे यह बहुत डरती है
साबुन से जो हाथ साफ करें
या सेनेटाइजर इस्तेमाल करे
मुहं पर मास्क पहनकर रखे
घर मे रहकर ही काम करे
ऐसे लोगो के पास नही आती
दूरी में रहना सिखाती है
दवाई नही है कोई इसकी भैया
खुद को बचा ले जो वही खेवइया
बीमारी, बाढ़, भूकंप, अकाल
महाप्रलय का आधार बनते
हिंसा,आगजनी,दुर्घटनाओं से
लोग आए दिन बेमौत मरते
जो जनसंख्या बढ़ी है कई सदी से
खुद प्रकृति उसे नियंत्रित करेगी
जो प्रकृति प्रेमी रह रहे धरा पर
उन्हें ही बस वह सुरक्षित करेगी
परिवर्तन है ईश्वरीय लीला
खुद ईश्वर ही यह सब कराते है
युग परिवर्तन करने को ईश्वर
साधारण तन अपनाते है
अभी भी समय है संभल जाओ
प्रकृति को न तुम इतना सताओ
प्रकृति ने जितना तुमको दिया है
कम से कम उतना तो लौटाओ।
(लेखक 18 साहित्यिक पुस्तकों के रचयिता व वरिष्ठ पत्रकार है।)
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )