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रोगनाशक दवाई भी है पवित्र गंगा जल 

रोगनाशक दवाई भी है पवित्र गंगा जल 

भारत में ही नही ,दुनियाभर मे शायद ही कोई ऐसा हिन्दू परिवार हो जिनके घर मे गंगा जल न हो।मुस्लिम परिवारो मे गंगा जल गुण धर्म के पानी को आबे जम जम कहा जाता है जिसे गंगा जल की तरह ही पवित्र माना गया है।अमेरिका जैसे देश मे भी गंगा जल का महत्व है वहां एक लीटर गंगाजल 250 डालर में  मिलता है।
कहते है जब खांसी हो जाये और  डॉक्टर की दवाई से भी खांसी ठीक नही हो तब गंगाजल पिलाना चाहिए।जिससे खांसी को आराम मिलेगा।
पवित्र गंगाजल को मरनासन्न व्यक्ति के मुंह में भी इसलिए डाला जाता है,  ताकि कोई चमत्कार हो जाये अर्थात गंगा जल आखिरी दवाई भी मानी जाती है।गंगा जल कई असाध्य रोगों का भी इलाज करती है।  दिन में  तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पीने से तीन दिन में  खांसी ठीक हो जाती है। वास्तव मे यह कोई  गंगाजल का  आध्यात्मिक चमत्कार नहीं बल्कि उसके औषधीय गुणों का प्रमाण हैं।बताया जाता हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।
वही अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह खराब नहीं होता था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही खराब हो जाता था।
लगभग सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर जाता है।
वैज्ञानिक शोध मे पाया गया हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की गजब की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता मौजूद  है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो अपने साथ कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती हुई आती है। जिससे  ऐसा मिश्रण बनता  हैं जो गंगा जल को अमृत बना देता है।
डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?
गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव के शब्दों में,' गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है।' डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में खराब वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है। गंगा नदी माता इसीलिए है क्योकि  गंगाजल अमृत है और मानव कल्याण के लिए सर्वगुण संपन्न औषधि है।
(लेखक - डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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