आजकल मानसिक रोगों की बहुलता हैं साथ ही मोबाइल /टी वी,नौकरी कार्य,व्यवसाय आदि में मानसिक ऊर्जा का उपयोग अधिक होने से मानसिक तनाव आदि रोग अधिक दिखाई देने के कारण मानसिक ऊर्जा की जरुरत पड़ती हैं जो हमारे पास सरलता और सुगमता से उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से हम अधिक मानसिक ऊर्जावान बन सकते हैं।
मष्तिष्क को तेज़ और अधिक सक्रीय बनाने के लिए जरूर करें आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन। आपकी कार्यक्षमता में सुधार होगा। आज के समय ज्यादातर नौकरियां ऐसी हैं, जिनमें तेज़ दिमाग की जरूरत होती है। साथ ही लगातार मानसिक तनाव लेते हुए सही अधिक दिखाई तरह से काम कर सकनेवाले अधिकारी /कर्मचारी हर किसी को चाहिए होते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है यह जानना कि आखिर हम अपने दिमाग को लगातार सक्रिय कैसे रख सकते हैं। प्रकृति ने हमें बहुत सारी जड़ी-बूटियां और औषधियां दी हैं, जो हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का काम करती हैं।
दिमाग को लगातार ऊर्जा देनेवाली इन प्राकृतिक औषधियों को आयुर्वेद में एक खास वर्ग में रखा गया है, इसे आयुर्वेद मेध्या और नॉट्रोपिक ग्रुप कहते हैं।
ब्राह्मी (बकोपा मोननेरी)
-ब्राह्मी एक एडाप्टोजेनिक जड़ी बूटी है। यह ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन, डोपामाइन और गाबा को संशोधित करने का काम करती है। साथ ही तंत्रिका तंतुओं के कुशल संचरण में सुधार करती है।
ब्राह्मी का सेवन करनेवाले लोगों के दिमाग पर तनाव में का बहुत अधिक असर नहीं हो पाता है। क्योंकि ब्राह्मी मस्तिष्क की कोशिकाओं में लचीलापन बढ़ाने का काम करती है। इससे याददाश्त बढ़ती है, सीखने की क्षमता बढ़ती है और ताजगी बनी रहती है।
ब्राह्मी को 'ब्रेन बूस्टर' के नाम से भी जाना जाता है। यह गीली मिट्टी में अपने आप उगती है। इसमें छोटे-छोटे पर्पल या फिर सफेद फूल भी लगते हैं, जिनमें ज्यादा से ज्यादा पांच पंखुड़ियां होती हैं। फूलों सहित यह पौधा गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
वचा (एकोरस कैलमास)
वचा में चिंता, भय और अवसाद जैसे लक्षणों को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम (सीएनएस) पर काम करती है और इससे अवसाद के लक्षणों और कारणों से मुक्ति मिलती है।
वचा व्यक्ति के मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों में मोनोमाइन स्तरों में परिवर्तन करती है। मानसिक संतुलन बनाए रखनेवाली इलेक्ट्रॉनिक वेव्स को सही बनाए रखने के कार्य में मदद करती है।
वच का पौधा मूल रूप से यूरोपीय वनस्पति है। इसमें कई तरह के औषधीय गुण होते हैं। औषधि के रूप में इसकी जड़ से बने चूर्ण (वाचा पाउडर ) का इस्तेमाल किया जाता है। सैकड़ों साल पहले इसका प्रयोग मिस्र और ग्रीस में होता थ।
जटामांसी (नारदोस्तच्स जटामांसी)
-जटामांसी केंद्रीय मोनोमाइन और निरोधात्मक अमीनो एसिड के स्तर को बढ़ाती है, जिसमें सेरोटोनिन, 5-हाइड्रॉक्सिंडोल एसिटिक एसिड, (जीएबीए) गामा-एमिनो ब्यूटेनिक एसिड और टॉरिन के स्तर में बदलाव शामिल है। ये सभी तत्व निराशा को दिमाग पर हावी होने से रोकते हैं और डिप्रेशन से बचाते हैं।
जटामांसी (जटामांसी हर्ब ) सहपुष्पी औषधीय पौधा होता है। जिसका प्रयोग तीखे महक वाला इत्र बनाने में किया जाता है। इसको जटामांसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि जटामांसी की जड़ों में जटा या बाल जैसे तंतु लगे होते हैं। इनको बालझड़ भी कहते हैं।
मंडुकपर्णी (सेंटेला एशियाटिक)
-मंडुकपर्णी मानसिक स्पष्टता, एकाग्रता में सुधार करती है और न्यूरोट्रांसमीटर्स - डोपामाइन, नॉरपेनेफ्रिन या सेरोटोनिन स्राव को संतुलित करती है। इसके सेवन से न्यूरॉन्स (मस्तिष्क की कोशिकाओं) को पुनर्जीवित होती हैं और मानसिक तनाव को कम करती हैं।
मण्डूकपर्णी का अर्क पाण्डु रोग, विषदोष, शोथ तथा ज्वर-शामक होता है। इसका शाक कटु, तिक्त, शीत, वातकारक तथा कफपित्तशामक होता है। यह श्वास-नलिका शोथ, प्रतिश्याय, श्वेतप्रदर, वृक्करोग, मूत्रमार्गगतशोथ, जलशोफ, रतिज विकार, तीव्र शिरशूल, पामा तथा त्वक् विकार-शामक होती है।
शंखपुष्पी (एवलवुलस अलसिनोइड्स)
-शंखपुष्पी तनाव बढ़ानेवाले हॉर्मोन कोर्टिसोल के स्तर को नियंत्रित करती है। इससे तनाव आपके दिमाग पर हावी नहीं हो पाता है। शंखपुष्पी के सेवन से मन को शांत बनाए रखने में सहायता मिलती है। शंखपुष्पी तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और अनिद्रा से निपटने में
बेहद प्रभावी है।
यष्टिमधु या मुलहठी या मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम ग्लीसीर्रहीजा ग्लाब्र कहते है। ... मुलहठी एक प्रसिद्ध और सर्वसुलभ जड़ी है। काण्ड और मूल मधुर होने से मुलहठी को यष्टिमधु कहा जाता है
गिलोय आयुर्वेद में मौजूद सबसे महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों में से एक है। यह भारतीय टीनोस्पोरा (इंडियन टीनोस्पोरा) या गुडुची ) के रूप में जाना जाता है। गिलोय को अक्सर अमृता बुलाया जाता है, जो अमृत का भारतीय नाम है। यह विभिन्न प्रकार के प्रयोजनों और रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
ज्योतिष्मती ज्योतिष्मती (मालकांगनी) कड़वी, तीखी, कसैली और गर्म होती है। ज्योतिष्मती का तना छूने पर खुरदरी लगती है। इसके फल लगभग गोलाकार और चिकने होते हैं।
पेठा या कुष्माण्ड (विंटर मेलों ; वानस्पतिक नाम : बेनिनकेसा हिस्पिडा (बेनिनकासा हिस्पिडा )), एक बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी की तरह खाया जाता है। यह हल्के हरे वर्ण का होता है और बहुत बड़े आकार का हो सकता है। पूरा पकने पर यह सतही बालों को छोड़कर कुछ श्वेत धूल भरी सतह का हो जाता है। इसकी कुछ प्रजातियां १-२ मीटर तक के फल देती है। ] इसकी अधिकांश खेती भारत सहित दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में होती है। इससे भारत में एक मिठाई भी बनती है, जिसे पेठा (मिठाई) ही कहते हैं।
आयुर्वेद में यह लघु, स्निग्ध, मधुर, शीतवार्य, बात, पित्त, क्षय, अपस्मार, रक्तपित्त और उनमाद नाशक, बलदायक, मूत्रजनक, निद्राकर, तृष्णाशामक और बीज कृमिनाशक आदि कहा गया है। इसके सभी भाग-फल, रस, बीज, त्वक् पत्र, मूल, डंठल-तैल ओषधियों तथा अन्य कामों में प्रयुक्त होते हैं।इसके मुरब्बे, पाक, अवलेह, ठंढाई, घृत आदि बनते हैं। इसके फल में जल के अतिरिक्त स्टार्च, क्षार तत्व, प्रोटीन, मायोसीन शर्करा, तिक्त राल आदि रहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, शंखपुष्पी एक ऐसी जड़ी-बूटी है, जो दिमाग को स्वस्थ रखने के साथ-साथ अनेक तरह की बीमारियों को दूर करने वाली औषधि के रूप में काम आती है। भारत में यह पथरीले मैदानों में बड़ी आसानी से पाई जाती है। ... इस पौधे के फूल, पत्ते, तना, जड़ और बीज समेत लगभग सभी हिस्सों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
हमें उपरोक्तऔषधियों में से एक या अधिक का उपयोग कर सकते हैं।
(लेखक- वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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