पर्यटन व इतिहास की बातें तो पिछले 10-20 सालों से हो रही हैं पर उन पर अमल होता कहीं दिखाई नहीं देता। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के 5 प्रमुख कार्यक्रमों में भी इसका नाम खूब लिखा गया। यूनेस्को ने अपने अर्बन लैंडस्केप सिटी प्रोग्राम के तहत ग्वालियर व ओरछा को वर्ल्ड हेरिटेज शहर की सूची में शामिल किया गया है, जिसकी मांग हम लोग 20 सालों से कर रहे थे। अब यूनेस्को पर्यटन व पुरातत्व विभागों से मिलकर मास्टर प्लान तैयार करेगा। अजयशंकर आयुक्त ग्वालियर संभाग ने इस पर 1988-90 में पहली बार इसकी पहल की थी। इसके बाद बिमल जुल्का ने भी इस मामले में कुछ किया था। हमने भी तत्कालीन मंत्री म.प्र. शासन स्वर्गीय महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा के माध्यम से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के केन्द्रीय मुख्यालय में खूब लिखा पढ़ी कराई थी। तत्कालीन सर्वेक्षण के महानिदेशक अजयशंकर ने मेरी पर्यटन के ऊपर प्रस्तावित डॉक्यूमेन्ट्री को तीन बार माधवराव सिंधिया के कहने पर भी 94-95 में स्वीकृति नहीं दी थी तब सिंधिया ने अजयशंकर को डांटा खूब डांटा था। मात्र 1 लाख 45 हजार की स्वीकृति के लिए मुझे दिल्ली के दो साल चक्कर लगाने पड़े थे। अजयशंकर ने अपने पुत्र की कम्पनी टीमवर्क को जरूर 20 लाख रुपये स्वीकृत करा दिये थे। देखा गया है नौकरशाह शुरू से ही अच्छी योजनाओं को पलीता लगाते आ रहे हैं। उन पर लगाम सियासतदां नहीं लगा पाते हैं। अजयशंकर कला संस्कृति के नाम पर 8-9 साल चम्बल व ग्वालियर के आयुक्त बने रहे थे।
ग्वालियर के स्मारकों पर विगत 10-15 सालों से जैन समाज के लोगों का अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। पुरातत्व सर्वेक्षण के लोग सैकड़ों शिकायतें थानों में पुलिस अधीक्षकों व कलेक्टरों को देते देखे गये हैं। पुरातत्व संघ की जिला समिति की बैठकों में भी हमने पिछले 10 सालों में 20 बार अतिक्रमणों के मामले उठाये थे। नतीजा शिफर का शिफर ही रहा था। माननीय उच्च न्यायालय ने माता प्रसाद बनाम म.प्र. शासन एवं अन्य के प्रकरण डब्ल्यू.पी. क्रमांक 8509/2011 में आदेश 09-06-2019 को दिया था। ग्वालियर किले पर तमाम विश्वस्तरीय स्मारक 8वीं 9वीं शताब्दी के हैं उनके आसपास के परिक्षेत्र के 37.404 हैक्टेयर भूमि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को हस्तांतरित कर राजस्व अभिलेखों में सर्वेक्षण का नाम दर्ज करने का आदेश दो बार उच्च न्यायालय की ग्वालियर बेंच 2012 में भी कर चुकी थी। जिसमें मात्र 3.815 यानि सिर्फ आदेश के बाद भी महज 10 प्रतिशत भूमि को सर्वेक्षण को दिया गया व फोर्ट परिक्षेत्र के जैन समाज के द्वारा किये जा रहे पिछले 10-12 सालों के अतिक्रमण को भी नहीं हटाया गया ऊपर से बात पर्यटन व स्मारकों की सब करते दिखाई दे रहे हैं पर जिला प्रशासन पर सियासतदां के प्रभाव के चलते यहां के स्मारकों के अतिक्रमण हटाये जाना तो दूर यहां उरवाई घाटी ग्वालियर फोर्ट पर आये दिन अतिक्रमण किये जा रहे हैं। उच्च न्यायालय के ओदशों के बाद भी जिला प्रशासन कलेक्टर ग्वालियर मौन बने हुए हैं।
यूनेस्को द्वारा दी गई सौगातों को ग्वालियर के पर्यटन को कैसे लाभ मिल सकेगा जब यहां का प्रशासन म.प्र. सरकार ही इस मामले में कतई संवेदनशील व पारदर्शी नहीं लग रही है। कम से कम 400 से भी ज्यादा अतिक्रमण अकेले ग्वालियर फोर्ट पर उसके आसपास के दर्जन भर मोहल्लों के कोई 500 लोग करे हुए हैं। उन्हें सिर्फ और सिर्फ नोटिस भर दिये जाते हैं पर कार्यवाही यहां के सियासतदां करने ही नहीं देते। बहोड़ापुर थाने व उपनगर थाना ग्वालियर के अन्तर्गत ये अतिक्रमण आते हैं। उप संचालक पुरातत्व सक्सैना किले की पहाड़ी को बारूद से तोड़कर जैन समाज के लोग मूर्तियां बनवा रहे थे कि शिकायत करने कलेक्टोरेट के चक्कर लगाते दिखाई दिये पर कार्यवाही करना तो दूर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था। सक्सैना जी काफी डरे हुए थे वो कलेक्टोरेट के अधीक्षक कुरकूजी के चेम्बर में बैठे मुझे मिले हमने उनकी बात सुनकर फौरन मुख्य सचिव म.प्र. शासन को मेल कर कार्यवाही की गुहार लगाई तब जाकर मुख्य सचिव के आदेश पर मामला दर्ज हुआ फिर भी मामले में कुछ न हो सका था पिछले 2017 में एक राहुल जैन कलेक्टर साहब ने ग्वालियर में अपनी जाति के लोगों के अतिक्रमणों को हटाया जाना तो दूर जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलपति निवास गोविंदपुरी चौराहे पर जैन समाज के कीर्ति स्तम्ब को लगवाने की पर्दे के पीछे से पैरवी की और सर्वेक्षण के अतिक्रमणों की थानों में व प्रशासन को रिपोर्ट करने वाले पुरातत्वविद राठौर का ही तबादला करा दिया जिससे अतिक्रमण हटवाने की भागदौड़ कोई और न कर सके, ऐसे कैसे होगा पर्यटन का विकास? 20 सालों से नगर निगम सियासतदांनों की खींचतान में रोप-वे तक नहीं बन सका है। सांसद विवेक शेजवलकर व नरेन्द्र तोमर भी मामले में कोशिशें करते करते हार गये हैं। अमर गायक तानसेन व गौस साहब के मकबरों के लिए 1987 में महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा ने हमारे सुझावों पर अप्रैल 1987 में दो बार संसद में सवाल न किये होते तो वहां भी विकास होना संभव ही न होता। अब कालूखेड़ा जी व माधवराव सिंधिया कहां हैं जो पर्यटन व स्मारकों के लिए कुछ गम्भीर सोच सकें।
(लेखक-नईम कुरेशी )
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पर्यटन विकास पर सिर्फ बातें ही बातें हायकोर्ट की भी नहीं सुनते...!