देश में इन दिनों यदि सबसे चर्चित राज्य कोई है, तो वह पश्चिम बंगाल है। केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सत्ता विस्तार की हवस ने इसे चर्चित बना दिया, आज भाजपा का एकमात्र लक्ष्य पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कब्जा करना है। यद्यपि वहां विधानसभा चुनावों में अभी चार माह बाकी है, किंतु भाजपा ने जो वहां परिदृष्य पैदा किया है, उससे लगता है कि इसी दिसम्बर माह में वहां चुनाव होने वाले है। आए दिन के इन्हीं घिनौने राजनीतिक परिदृष्यों व सत्ता हथियाने की स्पर्द्धा ने पश्चिम बंगाल को संविधान के दायरे से बाहर कर दिया है। अर्थात्् चाहे वहां की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी हो या राज्यपाल जगदीप धनखड़ किसी को भी संवैधानिक मर्यादाओं की कोई चिंता नहीं हैं।
वैसे पंश्चिम बंगाल का अब तक का यह राजनीतिक इतिहास रहा है कि एक बार जिस दल ने यहां की सत्ता गंवाई, वह पुन: कभी भी सत्ता में नहीं लौटता। कांग्रेस, वामपंथी इसके उदाहरण रहे है, इसलिए अब तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी इस इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं चाहती। इसीलिए वह जी-जान से केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से संघर्षरत्् है, अब दीदी के सामने एक ही लक्ष्य है फिर से सत्ता पर कब्जा, फिर इसके लिए उन्हें नियम कायदों व संविधान का उल्लंघन कर अहिंसा का सहारा ही क्यों न लेना पड़े? भाजपा का खुला आरोप है कि पिछले चंद महीनों में पश्चिम बंगाल में करीब एक सौ तीस भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई और ये हत्याएं टीएमसी के लोगों ने की। जबकि ममता इसे नकार रही है।
किंतु इन दिनों जिस घटना को लेकर हंगामा मचा है, वह घटना पिछले गुरूवार की है जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर कोलकता के डायमण्ड हार्बर इलाके में पथराव किया गया, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित अनेक नेता घायल हो गए थे, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा का गंभीर अरोप है कि यदि वे ’बुलेट प्रुफ‘ वाहन में नही होते तो उनकी भी जान को खतरा था। इस घटना को न सिर्फ केन्द्रीय गृह मंत्रालय बल्कि राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी बहुत गंभीरता से लिया और उन्होंने जो गोपनीय रिपोर्ट केन्द्र को भेजी, उसे पत्रकारवार्ता के माध्यम से जग जाहिर कर दिया, यही नहीं उन्होंने जो सार्वजनिक उद्गार व्यक्त किए वे संविधान व राज्यपाल की मर्यादा की परिधि में आते है या नहीं? यह तो वे स्वयं जाने, किंतु यह सही है कि उन्होंने एक बार फिर उस आरोप को सही साबित कर दिया कि ”प्रदेशों के राज्यपाल भाजपा के एजेण्टों के रूप में काम कर रहे है।“ महामहिम ने अपने उद्बोधन में जिस स्तर की भाषा का प्रयोग किया, उसे उचित और पद की गरीमा के अनुरूप तो कभी नहीं कहा जा सकता।
राजनीतिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो भाजपा के दिग्गजों की सोच है कि यदि पश्चिम बंगाल को भाजपा फतह कर लेती है तो फिर उसके ”चक्रवर्ती सम्राट“ अभियान में कोई रूकावट नही बचती इसलिए बिहार चुनावों के निपटने के बाद से ही भाजपा का एकमात्र लक्ष्य पश्चिम बंगाल है।
इन सब राजनीतिक घटनाक्रमों से एक रहस्य यह भी उजागर होता है कि पश्चिम बंगाल की मौजूदा ममता सरकार को भंग कर वहां राष्ट्रपति शासन स्थापित करने की जल्दबाजी में केन्द्र की अपेक्षा राज्यपाल ज्यादा आगे है, वे चाहते है कि उनकी ताजा रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र सरकार तत्काल सख्त कदम उठाकर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को भंग करें, जिससे कि राष्ट्रपति शासन लगते ही राज्य की सत्ता की कमान उनके (धनखड़) हाथों में आ जाए और फिर वे जी-भर कर सभी कानून कायदों व संवैधानिक मर्यादाओं को ताक में रखकर भाजपा को सत्तारूढ़ करने में अपनी जी-जान लगा दें और देश के शीर्ष क्रम के ”लोकप्रिय राज्यपाल“ बन जाए।
यद्यपि संविधान की मान-मर्यादाओं को लात मारकर अपना वजूद कायाम रखने के प्रयासों में ममता दीदी भी कम नहीं है, इतिहास गवाह है कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही उन्होंने हर तरीके से केन्द्र व राज्यों के सम्बंध विच्छेद करने में कोई कसर न हीं उठा रखी तथा एक तानाशाही शासक की तरह पश्चिम बंगाल पर राज किया, अब वे केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राज्य के मुख्य सचिव व डीजीपी को तलब करने के आदेश को नकार रही है। इस तरह संवैधानिक मर्यादाओं की निर्मम हत्या में न तो राज्यपाल पीछे है और न मुख्यमंत्री ही। अब ऐसे में पश्चिम बंगाल का भविष्य कैसा होगा? इसकी कल्पना से ही सिहरन पैदा हो रही है, भगवान उस राज्य व उसके निवासियों की रक्षा करें।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता )
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संविधान के दायरें से बाहर पश्चिम बंगाल....?