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 इंजीनियरिंग कॉलेजों पर धड़ाधड़ लग रहे हैं ताले, ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं स्टूडेंट्स -13 कॉलेजों में एक भी एडमिशन नहीं, 33 कॉलेजों में दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंचे प्रवेश

 इंजीनियरिंग कॉलेजों पर धड़ाधड़ लग रहे हैं ताले, ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं स्टूडेंट्स -13 कॉलेजों में एक भी एडमिशन नहीं, 33 कॉलेजों में दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंचे प्रवेश

जयपुर। इंजिनियरिंग कॉलेजों में घटते दाखिलों के कारण प्रदेश में हर साल करीब 10 से ज्यादा प्राइवेट इंजिनियरिंग कॉलेजों पर ताले लगते जा रहे हैं। इस साल भी बार बार दाखिले की तारीखें बढ़ाने के बावजूद भी राज्य के इंजनियरिंग कॉलेजों में पचास फीसदी सीटें भी नहीं भर पा रही हैं। हालात तो ये हैं कई निजी संचालकों ने भारी भरकम खर्चा कर एआईसीटीई से मान्यता लेकर कॉलेज खोल लिए, लेकिन दाखिले का आंकड़ा नहीं बढ़ पा रहा है।
  एकीकृत प्रवेश व्यवस्था रीप के तहत प्रदेश के 86 इंजिनियरिंग कॉलेजों की 33912 सीटों पर महज 5687 विद्यार्थी ही प्रवेश लेने पहुंचे हैं। जयपुर, जोधपुर, कोटा और अलवर के कुछ निजी कॉलेजों में एडमिशन जीरो रहा।सरकारी कॉलेजों में भी सीटें पूरी नहीं भर पा रही हैं। रीप से जब एडमिशन हुए तब 13 कॉलेजों में एक भी विद्यार्थी ने एडमिशन के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई। जबकि 33 कॉलेज ऐसे थे उनमें दहाई के आंकड़े तक भी एडमिशन नहीं हो सके। तकनीकी शिक्षा से जुड़े कॉलेज संचालकों और विद्यार्थियों का कहना है कि इसके पीछे क्वालिटी एजुकेशन का अभाव होना है। प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी, इंजिनियरिंग में प्लेसमेंट नहीं मिलना और कुकरमुत्ते की तरह बड़ी संख्या में कॉलेजों के खुल जाना भी बड़ा कारण है। प्रदेश में साल 2018-19 में कुल 104 कॉलेज थे जो 2019-20 में घटकर 95 रह गए थे। इस सत्र में कॉलेजों की संख्या फिर कम होकर 86 ही रह गई। राज्य के इंजिनियरिंग कॉलेजों की दुर्गति पर तकनीक शिक्षा मंत्री इसे केन्द्र की संस्था एआईसीटीई को जिम्मेदार मानते हैं। 
 

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