(1) कोरोना महामारी ने सारी दुनियाँ को यह बता दिया है कि हम सभी का दुःख और दर्द एक सा हैः-
वर्तमान में वैश्विक महामारी कोरोना दुनिया भर में पौने सात करोड़ से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले चुकी है। वहीं, साढ़े पन्द्रह लाख से ज्यादा लोग काल का ग्रास बन चुके हैं। अमेरिका की जाॅन हाॅपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग केंद्र (सीएसएसई) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक विश्व के 192 देशों में कोरोना वायरस से अब तक 6.88 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं, जबकि 15.68 लाख मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं। वास्तव में इस बार दुनियाँ का मुकाबला किसी सामने दिखने वाले दुश्मन से नहीं है बल्कि उस अदृश्य वायरस से है, जिसको न तो अभी तक देखा गया है और न ही उसकी ताकत का सही-सही पता ही लगाया जा सका है। इस प्रकार चीन के वुहान शहर से निकलकर पूरी दुनियाँ में फैल चुके वैश्विक कोराना महामारी की तबाही ने सारी दुनियाँ को यह बता दिया है कि हम सभी का दुःख और दर्द एक सा है।
(2) एकता ही कोरोना वायरस को खत्म करने का रामबाण हैः-
कोरोना महामारी न तो किसी देश की सीमाओं को जानती है और न ही किसी धर्म या जाति को पहचानती है। इसलिए इससे लड़ने के लिए विश्व के सभी देशों की एकता जरूरी है। विश्व प्रसिद्ध धर्म गुरू दलाईलामा का कहना है कि आज विश्व कोरोना जैसी महामारी से भी लड़ रहा है, लेकिन इस लड़ाई को लड़ने के लिये विश्व समुदाय की एकता जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने भी कहा कि ‘‘हमारी दुनियाँ एक शरीर की तरह है। जब तक इस वायरस से एक हिस्सा भी प्रभावित रहता है, हम सभी प्रभावित हैं।’’ इसलिए पहले से कहीं अधिक एकजुटता और एकता हमारे प्रमुख सिद्धांत होने चाहिए। वास्तव में एकता ही कोरोना वायरस को खत्म करने का रामबाण है। कोरोना का टीका विकसित करने और उसे ज्यादा से ज्यादा पाने को लेकर दुनिया के धनी देशों के बीच होड़ मची हुई है, जबकि गरीब देश इस दौड़ में पिछड़ गये हैं। ऐसे में विश्व के सभी देशों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे सभी देशों के नागरिकों के बीच वैक्सीन के एक समान वितरण की कार्य योजना बनायें, ताकि विश्व के प्रत्येक मानव जाति को इसके दुष्प्रभाव से बचाया जा सके।
(3) उदार चरित्र वाले लोगों के लिये सम्पूर्ण धरती एक परिवार हैः-
पिछले कुछ दशकों में इंसान ने विज्ञान की दुनियाँँ में तो बहुत तरक्की कर ली किन्तु सामाजिकता और आध्यात्मिकता से दूर होता चला गया। विनाश के सामान तैयार करते-करते वह भूल गया कि स्वयं भी विनाश के कगार पर आ खड़ा हुआ है। वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कारों ने पूरे विश्व को एक कर दिया है लेकिन यह भूल गया कि अयं निजः परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। अर्थात् यह मेरा है, यह उसका है, ऐसी सोच संकुचित चित्त वाले व्यक्तियों की होती है, इसके विपरीत उदार चरित्र वाले लोगों के लिये तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी है।
(4) शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी सारी मानवजाति में एकता स्थापित करनाः-
परमात्मा ने हमें इस पृथ्वी पर आये हुए सभी अवतारों- कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद साहब, गुरू नानक की शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण करते हुए इस युग के अवतार बहाउल्लाह की हृदयों की एकता की शिक्षा के माध्यम से विश्व के सभी परिवारों, राष्ट्रों, धर्मों एवं जातियों में एकता स्थापित करने के लिए भेजा है। इसलिए इस युग में दी जाने वाली शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी सारी मानवजाति में एकता स्थापित करने वाले विश्व नागरिकों का निर्माण करना होना चाहिए। इसके लिए हमें दुनियाँ भर के बच्चों को स्कूल के माध्यम से बचपन से ही उन्हें सर्वश्रेष्ठ भौतिक ज्ञान देने के साथ ही साथ मानवीय और आध्यात्मिक ज्ञान देकर उन्हें सारे विश्व की मानवजाति के कल्याण के लिए काम करने हेतु प्रेरित करना चाहिए। उन्हें वसुधैव कुटुम्बकम्’, जय जगत, विश्व एकता एवं विश्व शांति की गुणात्मक शिक्षा देकर उनका विश्वव्यापी, वैज्ञानिक तथा मानवीय दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।
(5) परमात्मा ने हमें यह शरीर ईश्वरीय काम के लिए दिया हैः-
प्रभु कहता है कि तुमने अपने शरीर रूपी यंत्र का अगर गलत उपयोग किया तो तू नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा और अगर तुमने मेरी आज्ञाओं को माना तो तुम्हारा जीवन सुख, समृद्धि और प्रसन्नता से भर उठेगा। परमात्मा कहते हंै कि तेरा हृदय मेरे गुणों का खजाना है। तेरे स्वार्थ रूपी गंदे हाथ कही मेरा खजाना लूट न लें। मैंने तुझे प्रेम के प्रतीक स्वरूप तुमको हाथ दिये। इन हाथों को मैंने इसलिए तुझे दिया कि तेरे इन हाथों में मेरे द्वारा समय-समय में विभिन्न अवतारों के द्वारा भेजे गये गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू गंथ साहिब, किताबे अकदस आदि पवित्र पुस्तकें हों। और तू इन पवित्र पुस्तकों में दी गई मेरी न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग और हृदय एकता की शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण कर। ये सभी पवित्र पुस्तकें मेरी कृपालुता की प्रतीक हैं।
(6) प्रार्थना की शक्ति में विश्वास रखेंः-
मैं विगत 4 अगस्त 2020 को कोरोना पाॅजिटिव हो गया था। इस बीमारी के इलाज के लिए मैं 31 दिनों तक संजय पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट््यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई), लखनऊ में भर्ती रहा। इस दौरान मैंने अपने वार्ड के कम से कम 10 लोगों को कोरोना वायरस से जंग हारते हुए देखा। इन संक्रमित अधिकांश लोगों से मेरी दोस्ती थी। इस घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया कि एक व्यक्ति जिसके साथ मैं कल हँस-बोल रहा था, आज वह नहीं था। 4 अगस्त को कोरोना वायरस से संक्रमण की रिपोर्ट आने के बाद मुझे एसजीपीजीआई ले जाने के लिए एम्बुलेंस आ गयी। उसी समय से मैंने अपना सारा ध्यान अपने भगवान ‘बहाउल्लाह’ की प्रार्थना पर केन्द्रित कर दिया, जिनकी ‘धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है’ की शिक्षाओं को मैंने अपने जीवन मंे आत्मसात् कर रखा है। मैंने उनसे इस वायरस से लड़ने के लिए शक्ति और उनका आशीर्वाद मांगा। मुझे विश्वास था कि वे मेरी सहायता जरूर करेंगे और उनके आशीर्वाद से मैंने कोरोना वायरस के संक्रमण को हरा दिया। मैं सभी लोगों को यह संदेश देना चाहता हूँ कि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। दुनियाँ में प्रार्थना से बड़ी कोई भी शक्ति नहीं है।
(7) अपने काम से नहीं प्रभु के काम से जियोः-
इस संसार में प्रत्येक मनुष्य का जन्म एक महान उद्देश्य के लिए हुआ है। हमारे प्रत्येक कार्य रोजाना प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने। आज सारे संसार में मनुष्य की अज्ञानता के कारण सारे संसार में अनेकता एवं विद्वेष फैला हुआ है। हमारी आत्मा का पिता परमात्मा अपनी सभी मानव संतानों के बीच एकता, प्रेम एवं सौहार्द चाहता है। यहाँ तक कि हमारे शरीर का पिता भी अपनी सभी संतानों के बीच प्रेम एवं एकता चाहता है। इसलिए मर्यादा, न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग, हृदय की एकता आदि ईश्वरीय गुणों को धारण करते हुए हमें सारे संसार में एकता स्थापित करना है। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विश्व एकता की शिक्षा में आज के युग की सभी समस्याओं का समाधान निहित है। आइये, हम प्रथम चरण में वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के ईश्वरीय सूत्रधार बने ताकि द्वितीय चरण में संसार में आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करने का मानव जाति का अंतिम लक्ष्य पूरा होने का मार्ग प्रशस्त हो।
- वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत -
(लेखक- डॉ जगदीश गाँधी )
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परमात्मा ने हमें यह शरीर ईश्वरीय काम के लिए दिया है!