मोतीलाल वोराजी से मेरा संबंध पाच दशकों से भी ज्यादा का रहा। श्री अर्जुन सिंह के यकायक पंजाब का राज्यपाल बनने के बाद मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह कोई नहीं जानता था। यह तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि मोतीलाल वोरा को यह जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। वोरा सर्वप्रथम सन् 1972 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री तथा कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बनाया, इस प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में कोई भी नहीं है। परंतु इस संदर्भ में ऐसा घटनाक्रम याद आ रहा है जिसमें कुछ हद तक हम लोगों की भागीदारी थी। सन् 1985 के आमचुनाव के दौरान वोरा जी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। परंतु चुनाव के ठीक पहले वे पीलिया से पीड़ित हो गए। उसी दौरान राजीव गांधी के मध्यप्रदेश दौरे की खबर आई। यह हर दृष्टि से जरूरी था कि गांधी के भ्रमण के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उनके साथ रहें। परंतु यह लगभग असंभव नजर आ रहा था क्योंकि डॉक्टरों ने वोरा को पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी।
गंभीर बीमारी और कमजोरी के बावजूद, वोरा इस बात पर अडे़ थे कि वे राजीव गांधी के साथ प्रदेश का भ्रमण करेंगे। इस बात को लेकर उनके परिवार के सदस्य (श्रीमती वोरा व उनके पुत्र) काफी चिंतित थे। डाक्टरों के इलाज से कोई विशेष लाभ नहीं हो रहा था। हमने वोरा जी की गंभीर बीमारी की जानकारी भोपाल के प्रसिद्ध यूनानी हकीम अख्तर आलम को दी। हमने उनसे कहा कि वे वोरा का इलाज करें और उन्हें इतना स्वस्थ कर दें कि वे राजीव गांधी के साथ प्रदेश का टूर कर सकें। जिस दिन हम लोग हकीम साहब से यह बात कर रहे थे उस दिन, गांधी के टूर के लिए सिर्फ सात दिन बचे थे। हकीम साहब ने कहा कि पहले उन्हें मरीज की जांच करना पड़ेगी, उसके बाद ही वे इलाज कर पाएंगे। उन्होंने दावा किया कि उनके पास पीलिया का शर्तिया इलाज है। इलाज शुरू होने के तीन दिन बाद मरीज को प्राकृतिक भूख महसूस होगी और वह स्वयं खाने की इच्छा प्रगट करेगा।
जब हमने वोरा जी के परिवार को हकीम साहब के दावे की बात बताई तो उन्होंने कहा कि हम हकीम साहब द्वारा वोरा जी की जांच का इंतजाम करा देंगे। योजना के अनुसार हम हकीम साहब को वोरा जी के निवास पर ले गए। उन्होंने उसी समय से उनका इलाज चालू कर दिया। ठीक 3 दिन के बाद उन्होंने खिचड़ी खाना प्रारंभ कर दिया। इस तरह वे स्वस्थ होकर राजीव गांधी के साथ मध्यप्रदेश के टूर पर गए। इसी दौरान, वोरा जी राजीव गांधी के नजदीक आए और शायद इसी कारण वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए राजीव गांधी की पहली पंसद बने।
सन् 1972 में विधायक बनने के बाद वोराजी को राज्य परिवहन निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया। अपने अथक परिश्रम से उन्होंने इसे एक लाभ अर्जन करने वाला उपक्रम बना दिया।
वोरा जी के कार्यकाल की दो और घटनाओं का उल्लेख महत्वपूर्ण है। सन् 1984 के दिसंबर माह में भोपाल में हुए गैस कांड में कई हजार लोग मारे गए थे। हजारों की संख्या में लोगों ने अपने माता-पिता, पतियों, बेटे-बेटियों को खो दिया था।
गैस पीड़ितों की समस्याएं बहुत गंभीर थीं। वोरा जी ने गैस पीड़ितों को राहत पहुंचाने के व्यवस्थित प्रयास प्रारंभ किए। सर्वप्रथम उन्होंने गैस राहत सलाहकार समिति बनाई। इस समिति में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया गया। समिति में मंत्री, सांसद, विधायक, पत्रकार, गैस पीड़ित संगठनों के प्रतिनिधि, अन्य सामाजिक कार्यकर्ता और अधिकारियों को शामिल किया गया। स्वयं वोरा जी इस समिति के अध्यक्ष बने। एक पृथक गैस राहत विभाग की स्थापना की गई। गैस पीड़ितों के लिए अलग अस्पताल खोले गए। स्वयं वोरा जी गैस पीड़ित इलाकों में बार-बार जाते रहे। वोरा जी के कार्यकाल में गैस पीड़ितों की पीड़ा दूर करने के लिए जितना काम किया गया, उतना उनके बाद किसी ने भी नहीं किया।
वोरा जी की कार्यप्रणाली की कुछ और विशेषताएं थी। जैसे वे समय के काफी पाबंद थे। कुछ मुख्यमंत्री अपनी लेटलतीफी के लिए जाने जाते हैं। पर वोरा जी की ख्याति समय की पाबंदी के लिए थी। वैसे तो वोरा जी के कार्यक्रमों में समय पर पहुंचने के कई किस्से मुझे याद हैं परंतु इंदौर की एक बहुत ही दिलचस्प घटना का मैं यहां जिक्र करना चाहूंगा। वोरा जी के साथ मुझे भी इंदौर विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में भाग लेना था। वोरा जी के साथ मैं भी शासकीय गेस्ट हाउस रेसीडेन्सी कोठी में ठहरा था। ज्यों ही विश्वविद्यालय के कार्यक्रम का समय हुआ वोरा जी विश्वविद्यालय के लिए रवाना हो गए। यद्यपि मैंने उनसे कहा कि थोड़ी देर से चलें तो उचित होगा। पर वोरा जी नहीं माने। नतीजे में जब हम विश्वविद्यालय पहुंचे तो देखा कि वहां अभी कुर्सियां ही जम रहीं थीं। वोरा जी की एक और विशेषता थी। जब भी उनके टेलीफोन की घंटी बजती थी तो यथासंभव वे स्वयं ही रिसीवर उठाते थे।
उनकी कार्यप्रणाली का एक और पहलू था। जब भी प्रधानमंत्री राजीव गांधी मध्यप्रदेश की यात्रा पर आते थे उनकी यात्रा की तैयारी का मुआयना करने वे खुद ही जाते थे। एक दिन मैंने उनसे कहा कि यह काम तो आपको अधिकारियों पर छोड़ देना चाहिए। उनका उत्तर था कि यह बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री की यात्रा ठीक से संपन्न हो यह मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। कुछ दिनों बाद वोरा जी का फोन आया, यह जानने के लिए कि क्या अगले दिन मैं उनके साथ अमलाई चल सकता हू। मैंने चलने की सहमति दे दी।
हम लोग अमलाई में हवाई जहाज से उतर कर कारों में आगे बढ़े। थोड़ी देर में हमने देखा कि 400-500 लोग रास्ता रोके खड़े हैं। मुख्यमंत्री का काफिला रूक गया। वोरा ने अपने साथ गए अधिकारियों से कहा कि वे पता लगाएं कि ये लोग सड़क क्यों रोके हुए हैं। थोड़े समय के बाद मुख्यमंत्री स्वयं भी उन लोगों के पास गए। उन सबने एक स्वर में बताया कि वे बिजली बोर्ड के लिए काम करने वाले एक ठेकेदार के मजदूर हैं। ठेकेदार ने उन्हें कई दिनों से मजदूरी का भुगतान नहीं किया है। मजदूर काफी गुस्से में थे। वोरा जी ने मजदूरों की बात सुनकर अधिकारियों को आदेश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि मजदूरों का भुगतान आज ही हो जाए। वोरा ने यह भी कहा कि वे थोड़ी देर में इसी सड़क से वापिस होंगे, तब तक भुगतान हो जाना चाहिए।
जब हम लोग लौटकर आए तब तक भुगतान हो चुका था। मजदूरों ने मुख्यमंत्री को देखकर “वोरा जी जिन्दाबाद“ के नारे लगाए। इस के बाद वोरा जी ने कहा कि अब आप समझ ही गए होंगे कि मैं क्यों प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों के लिए की गई तैयारियों का स्वयं निरीक्षण करता हू। कल्पना करें यदि ये ही मजदूर प्रधानमंत्री के काफिले को रोक लेते तो क्या होता। मुझे वोरा जी द्वारा बरती गई सावधानी का महत्व समझ में आ गया।
एक और अवसर पर मुझे वोरा जी के साथ दतिया जाना था। वोरा जी के साथ श्रीमती वोरा तथा उनके नवविवाहित पुत्र व पुत्रवधू भी जा रहे थे। उन्हें दतिया स्थित पीताम्बरा पीठ के दर्शन करने थे। परंतु जब हम हवाई अड्डे पहुचे तो हमने देखा कि एक तथाकथित पत्रकार पहिले से ही हवाई जहाज में बैठे थे। मूल रूप से इन पत्रकार का नाम उस सूची में नहीं था जिन्हें मुख्यमंत्री के साथ दतिया जाना था। इन पत्रकार के कारण हवाई जहाज में यात्रियों की संख्या सीटों की संख्या से एक ज्यादा हो रही थी। वोरा जी ने अपनी सज्जनता के कारण उन पत्रकार को हवाई जहाज से बाहर नहीं निकाला। उसके बजाय उन्होंने अपने पुत्र व पुत्रवधु को उतरने की सलाह दी।
वोरा जी से संबंधित दो और मनोरंजक प्रसंग याद आते हैं। एक बार मैं उनके साथ ग्वालियर गया हुआ था। जब मुख्यमंत्री उस कार के समीय पहुंचे जिसमें उनका बैठना निर्धारित था, तब उन्होंने पाया कि उस कार में पहले से ही बहुत से लोग बैठे हुए हैं और उनके बैठने के लिए कार में जगह ही नहीं है। मुख्यमंत्री के साथ उनकी कार में बैठना प्रतिष्ठा की बात होती है। इस पर वोरा जी ने कहा, “आप लोग चलें। मैं दूसरी गाड़ी से आता हूं।“ यह सुनकर सभी लोग कार से उतर गये और फिर मैं व वोरा जी उस कार में बैठकर आगे बढे।
वोरा जी के कार्यकाल की दो घटनायें ऐसी हैं जिनसे मेरा सीधा संबंध था। उस समय वर्षों से सरकारी कालेजों में लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई थी। कई वर्षो से कालेजों में एडहाक (अस्थायी) शिक्षक नियुक्त हो रहे थे। शिक्षकों को अस्थायी रूप से काम करते-करते 10 से 15 वर्ष बीत गये थे। उसके बाद उनसे कहा जा रहा था कि स्थायी होने के लिए उन्हें लोकसेवा आयोग द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। परंतु इन शिक्षको का प्रयास था कि उन्हें प्रशासनिक आदेशों से स्थायी कर दिया जाए। परंतु तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री चित्रकांत जायसवाल, मुख्य सचिव के. सी. एस. आचार्य और अन्य उच्च अधिकारियों को यह बात उचित नहीं लग रही थी। इन शिक्षकों ने एक कांग्रेसी नेता को अपने संगठन का संरक्षक बना लिया। पर यह काम करवाने के लिए वे शिक्षकों से मोटी रकम मांग रहे थे। उस समय मैं टेªड यूनियन गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। इस बीच कुछ शिक्षक मेरे पास आये और मुझसे उनके संगठन का संरक्षक बनने का अनुरोध किया। पहले तो मैंने उन्हें टाला। परंतु बाद में मैंने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। अंततः वोराजी ने सभी को स्थायी करने का आदेश दे दिया।
इंदौर के दंगे
वोरा जी के कार्यकाल में इंदौर में दो बार साम्प्रदायिक दंगे हुये। दोनों बार अनेक लोग मारे गए और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ। दंगे शुरू होने के दूसरे दिन मैं इंदौर गया था। मेरे साथ ‘हितवाद‘ के संपादक एन.राजन और संवाददाता मजहरउल्ला भी थे। हम सभी मुख्यमंत्री के साथ रेसीडेन्सी में ही ठहरे थे। हम दंगे के दौरान 3-4 दिनों तक इंदौर में ही रहे। वोराजी उस समय तक इंदौर में रहे जबतक पूर्णतः शाति स्थापित नहीं हो गई।
वोरा जी का कार्यकाल तनाव रहित था। उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी का नुकसान नहीं किया और ना ही बदले की भावना से उन्होंने किसी राजनेता या नौकरशाह को दंडित किया। वोरा जी सन् 13 मार्च 1985 से 13 फरवरी 1988 तक और फिर 25 जनवरी 1989 से 8 दिसंबर 1989 तक दुबारा मुख्यमंत्री बने। सन् 1988 में उन्हें एकाएक मुख्यमंत्री के पद से हटाकर दिल्ली भेजा गया और उनके स्थान पर अर्जुन सिंह को पुनः मुख्यमंत्री बना दिया गया।
यह परिवर्तन क्यों हुआ, यह अभी तक रहस्य के घेरे में है। उस दिन रात को हम लोग एक मित्र के यहां से खाना खाकर लौट रहे थे। जब हम पुराने जी. ए. डी. चौराहे पर पहुंचे तो वहां हमने ट्रैफिक कांस्टेबल को खड़ा देखा। गाड़ी रोककर हमने उससे पूछा कि आप इतनी रात (लगभग 12 बज चुके थे) में यहां क्यों खड़े हैं। उसने बताया थोड़ी देर में नये मुख्यमंत्री हवाई जहाज से आ रहे हैं। यह जानकारी मिलते ही हम लोग हवाई अड्डे की ओर बढ़ लिये। हवाई अड्डे पर हमने भारी भीड़ देखी। हवाई अड्डे के भीतर घुसने पर हमें बताया गया कि अर्जुन सिंह विशेष विमान से आ रहे हैं और वे कल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। थोड़ी देर में अर्जुन सिंह आ गये। उनके साथ सीताराम केसरी, हरकिशनलाल भगत आदि केन्द्रीय नेता भी आये। केसरी ने हम लोगों को बताया कि कल 10 बजे मध्यप्रदेश कांगे्रस विधायक दल अपने नए नेता का चुनाव करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि वोरा मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे रहे हैं और उनकी जगह नया नेता मुख्यमंत्री बनेगा।
सन् 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव ने वोराजी को उत्तरप्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया। उस दरम्यान मुझे दो बार लखनऊ जाने का मौका मिला। दोनों बार मुझे यह महसूस हुआ कि वे उत्तरप्रदेष में अत्यधिक लोकप्रिय हो गए हैं। मुझे बताया गया कि राजभवन परिसर से होकर एक आम रास्ता जाता था जिसे पूर्व के राज्यपाल ने बंद करवा दिया था। इसके कारण उस मार्ग का इस्तेमाल करने वालों को दो किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती थी। वोराजी ने इस रास्ते को पुनः खुलवा दिया।
वोराजी अपने कार्यकाल में ऐसे अनेक संगठनों से जुड़े रहे जिनसे मैं भी जुड़ा था। ये संगठन थे भारत-सोवियत मैत्री संघ, अफ्रीकी-एषियाई एकता संगठन, साम्प्रदायिकता विरोधी कमेटी एवं कौमी एकता ट्रस्ट। हमने मिलकर सेक्युलर डेमोक्रेसी नामक पत्रिका हिन्दी व अंग्रेजी में निकाली। इन संगठनों के पदाधिकारी के तौर पर हम दोनों ने विदेश यात्राएं भी कीं।
एक विषेष उल्लेखः सन् 1989 में यह एक दिलचस्प संयोग हुआ कि मध्यप्रदेश में जन्मे श्री शिवचरण माथुर राजस्थान के मुख्यमंत्री थे और राजस्थान में जन्मे वोराजी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
(लेखक- एल. एस. हरदेनिया )