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चार  जैन तीर्थंकरों की जन्म स्थली  वाराणसी 

चार  जैन तीर्थंकरों की जन्म स्थली  वाराणसी 

भारत  में काशी /बनारस /वाराणसी बहुत प्राचीन ,ऐतहासिक ,पुरातात्विक ,धार्मिक स्थली रही हैं। गंगा नदी के किनारे बसने से इसकी प्राचीनता हैं। जहाँ यहाँ पर अनेकों विद्वानों के साथ अनेक धर्मों का संगम स्थल रहा हैं। वर्तमान में बारह ज्योतिलिंगों में बनारस का भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। भगवान बुद्ध ,गुरुनानक ,जैन तीर्थंकरों की जन्म भूमि और तपःस्थली रही वहीँ वहां बहुत दर्शनीय स्थल हैं।
चार जैन तीर्थंकरों का जन्म यहां हुआ था ------
(7) सुपार्श्वनाथ : सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के पिता का नाम प्रतिस्थसेन तथा माता का नाम पृथ्वीदेवी था। आपका जन्म वाराणसी में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की बारस को हुआ था। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आपको कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की सप्तमी के दिन आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- स्वस्तिक, चैत्यवृक्ष- शिरीष, यक्ष- विजय, यक्षिणी- पुरुषदत्ता है।
इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष सम्बन्धी काशीदेश में बनारस नाम की नगरी थी उसमें सुप्रतिष्ठित महाराज राज्य करते थे। उनकी पृथ्वीषेणा रानी के गर्भ में भगवान भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के दिन आ गये। अनन्तर ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन उस अहमिन्द्र पुत्र को उत्पन्न किया। इन्द्र ने जन्मोत्सव के बाद सुपार्श्वनाथ नाम रखा
(8) चन्द्रप्रभु : आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु के पिता का नाम राजा महासेन तथा माता का नाम सुलक्षणा था। आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की बारस के दिन चन्द्रपुरी में हुआ। पौष कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष 7 को आपको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- अर्द्धचन्द्र, चैत्यवृक्ष- नागवृक्ष, यक्ष- अजित, यक्षिणी- मनोवेगा है
चन्द्रप्रभ प्रभु आठवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध है। चन्द्रप्रभ जी का जन्म पावन नगरी काशी जनपद के चन्द्रपुरी में पौष माह की कृष्ण पक्ष द्वादशी को अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। इनके माता पिता बनने का सौभाग्य राजा महासेन और लक्ष्मणा देवी को मिला। इनके शरीर का वर्ण श्वेत (सफ़ेद) और चिह्न चन्द्रमा था।
(11) श्रेयांसनाथजी : ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथजी की माता का नाम विष्णुश्री या वेणुश्री था और पिता का नाम विष्णुराज। सिंहपुरी नामक स्थान पर फागुन कृष्ण पक्ष की ग्यारस को आपका जन्म हुआ। श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को सम्मेद शिखर (शिखरजी) पर आपको निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- गैंडा, चैत्यवृक्ष- पलाश, यक्ष- कुमार, यक्षिणी- महाकाली है।
इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर का स्वामी इक्ष्वाकुवंश से प्रसिद्ध ‘विष्णु' नाम का राजा राज्य करता था। उसकी वल्लभा का नाम सुनन्दा था। ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी के दिन श्रवण नक्षत्र में उस अच्युतेन्द्र ने माता के गर्भ में प्रवेश किया। सुनन्दा ने नौ मास बिताकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन तीन ज्ञानधारी भगवान को जन्म दिया। इन्द्र ने उसका नाम ‘श्रेयांसनाथ' रखा।
सारनाथ में एक स्तूप के दक्षिण मे ऊची चार दीवारियो से घिरा एक जैन मंदिर है। जो जैनियों के 11 वे तीर्थंकर श्रेयांशनाथ जी के इसी स्थल पर संन्यास लेने एवं मृत्यु होने की पुण्य स्मृति में सन् 1824 ईसवीं में बनवाया गया था।
23) पार्श्वनाथ : तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता का नाम राजा अश्वसेन तथा माता का नाम वामा था। आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को वाराणसी (काशी) में हुआ था। चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी है।
उनका जीवन जहां तापस युग का अंत था तो दूसरे बौद्धिक साधना का प्रारम्भ। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। ... बचपन में पार्श्वनाथ का जीवन राजसी वैभव और ठाटबाठ में व्यतीत हुआ।
इस प्रकार वाराणसी के वैभव में जैन तीर्थंकरों का बहुत बड़ा योगदान रहा और हैं  स्थानीय /प्रदेश और केंद्र सरकारों से अपेक्षा हैं की उन बहुमूल्य स्थानों का भी शासकीय स्तर पर संरक्षण और महत्व दिया जाय।
आज विश्व स्तर पर सम्मान मिल रहा हैं अन्यथा काशी चार चीज़ों के लिए प्रसिद्ध रही हैं।
रांड ,सांड, साधु, सन्यासी,  इनसे बचे तो काशी न्यारी।  
(लेखक-वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन)

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