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पिता की डांट के डर से घर छोडकर भाग रहे बच्चे बाल कल्याण समिति के पास आ रहे ऐसे मामले

पिता की डांट के डर से घर छोडकर भाग रहे बच्चे बाल कल्याण समिति के पास आ रहे ऐसे मामले

राजधानी में बाल कल्याण समिति के पास इन दिनों ऐसे मामले आ रहे हैं जिनमें पिता की डांट से डर बच्चे घर छोडकर भाग रहे हैं। अपेक्षानुसार रिजल्ट नहीं आने अथवा बच्चों द्वारा पढाई में लापरवाही बरतने जैसे मामले में पिता की डांट से बचने के लिए बच्चे घर छोडने जैसा कदम उठा रहे हैं। दसवीं के एक छात्र ने बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की काउंसलिंग के दौरान कहा कि पिता दिनभर पढ़ने के लिए दबाव बनाते हैं। जिससे परेशान होकर वह घर से भाग गया। समिति में आजकल कई ऐसे बच्चों के मामले आ रहे हैं जो रिजल्ट में कम नंबर आने या पढ़ाई के डर से घर से भाग रहे हैं। समिति के पास एक माह में करीब 7 से 8 मामले सामने आए। ऐसे मामलों में काउंसलिंग के दौरान बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों को भी समझाया जा रहा है। काउंसलर का कहना है कि आजकल अभिभावक भी बच्चों पर पढ़ाई करने और अधिक नंबर लाने का दबाव बनाते हैं। इससे बच्चे परेशान होकर गलत कदम उठाते हैं। बच्चों को दिनभर पढ़ने और अच्छे अंक लाने का दबाव डालते रहते हैं। अगर बच्चे पढ़ाई छोड़कर दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं तो उन्हें प्यार से समझाना चाहिए। देवास से 16 साल का बालक घर से इसलिए भाग गया था, क्योंकि उसके माता-पिता हमेशा उस पर रिजल्ट में अधिक नंबर लाने का दबाव डाल रहे थे।
     रेलवे चाइल्ड लाइन ने बच्चे को सीडब्ल्यूसी के समक्ष काउंसलिंग में पेश किया तो बच्चे ने बताया कि उसने दसवीं की परीक्षा दी है, डर लग रहा है अगर कम नंबर आए तो पिता बहुत डाटेंगे। कांउसलिंग के बाद बच्चे को उसके पिता के साथ भेजा गया। नागपुर से 15 साल की बालिका ने समिति को बताया कि माता-पिता उसे मोबाइल पर चैटिंग नहीं करने देते, बल्कि हमेशा पढ़ने का दबाव डालते हैं। जिससे परेशान होकर वह घर से भाग गई। समिति ने उसके माता-पिता को बुलाकर काउंसलिंग की और बच्ची को उसके अभिभावकों को सौंपा। हेल्पलाइन नंबरों पर चार माह में 38 हजार से अधिक कॉल आ चुके हैं। इस समय विद्यार्थी सबसे अधिक प्रश्न रिजल्ट से संबंधित पूछ रहे हैं, साथ ही विषय व कॅरियर चयन से संबंधित प्रश्न भी पूछे जा रहे हैं। हेल्पलाइन में प्रदेश भर से विद्यार्थियों के कॉल आ रहे हैं। इस बारे में सीडब्ल्यूसी के सदस्य कृपाशंकर चौबे का कहना है कि ऐसे मामलों में बच्चों को और उनके अभिभावकों को समझाते हैं। अभी उनके खेलने-कूदने के दिन हैं, इसलिए उन पर अनावश्यक दवाब न डालें। अभिभावक बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास पर ध्यान दें।

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