YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

भारतीय पत्रकारिता पहले मिशन अब प्रोफेशन 

भारतीय पत्रकारिता पहले मिशन अब प्रोफेशन 

पत्रकारिता को रसातल के मुहांने पर ले जाने के लिए ज़िम्मेदार कौन ? 
मेरे घर में भी किताबों से भरे हैं कमरे 
ज़रा सोच! इसमे भला औज़ार कहाँ रखूंगा 
अपने बच्चों से हर एक ज़ुल्म छुपा लूंगा मग़र 
इस ज़ालिमाना दौर के अखबार कहां रखूंगा।। 
आजकल मैं जहां भी जाता हूँ, तो लोग मुझसे पत्रकारिता के गिरते स्तर और लुप्त हो रही मान मयादा पर चिंता व्यक्त करते हुए बेहद कड़वी-कड़वी बातें कह जाते हैं, जो मुझे न सिर्फ़ नागवार गुज़रती हैं, बल्कि पत्रकारिता को अपने स्वार्थ के लिए रसातल के मुंहाने पर ले जाने वालों के बारे में सोचने पर मज़बूर भी कर देती है। प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया और कामर्शियल मीडिया के गौरखधंधे के बीच देश का आम नागरिक "सच्ची ख़बरों" की तलाश में या तो भटक रहा है या तलाश करते-करते थक कर गुमसुम बैठा "तमाशबीन" बना हुआ है। खोजी पत्रकारिता के नाम पर बेगुनाहों, शरीफ़ों का "चीर हरण" और गद्दारों, गुनाहग़ारों को बेनक़ाब करने के बजाए उनका "महिमा मंडन" किया जा रहा है यानी सच को झूठ और झूठ को सच बनाने का घिनौना खेल खेला जा रहा है। 
भारतीय संस्कृति में जनमानस के लिए बुनियादी सिद्धांत है कि सबकी ख़बरग़िरी सबका भला करना और ऋषि-मुनियों, सूफी संतों, महापुरूषों का भी यही अनमोल वचन है कि एक-दूसरे की ख़बरगिरी किया करो, मदद करो, लेकिन आज देश में लोग इसका उल्टा कर रहे हैं। ख़बरगिरी करने के बजाए झूठी मुख़बिरी कर रहे हैं या फिर कुछ लोग चुपचाप तमाशाई बने बैठे हैं, मग़र मेरा यह कहना है कि जुल्म ओ ना इंसाफ़ी के ख़िलाफ़ हर एक पत्रकार को हमेशा निडर होकर बोलना और लिखना चाहिए, बेबाक बनो और :- 
चुप न बैठो अपने होने की ख़बर देते रहो 
वरना सन्नाटे की तरह बेसदा हो जाओगे 
आजकल के कुछ बड़े घरोनों के अख़बारों और न्यूज़ चैनलों के व्यवसायिक, जनविरोधी और सर्कुलेशन या टी.आर.पी. बढ़ाने की गला काट रेस में आगे निकलने के लिए अपनाए जा रहे ग़ैर ज़िम्मेदाराना तरीका-ए-कार, सत्ता की दलालीनुमा पत्रकारिता की बढ़ती प्रवृत्ति पर मेरी राय है कि:-     
अख़बार में न देख तू कोई फ़साद की ख़बर 
जो हो सके तो अमन की सुर्खी तलाश कर 
मौजूदा हालात में इलेक्ट्रानिक या डिज़िटल मीडिया के झूठे, बेतुके त्मनउमत Sचतमंकपदह च्ंजजतवद यानि अफ़वाहबाज़ी की ख़बरों का घातक सिस्टम जो षडयंत्रपूर्वक चल रहा है, और कुछ तथाकथित पत्रकारों के ज़रिये सरकार परस्ती, नौकरशाहों की चापलूसी करके सच्ची खबरों का जिस तरह से गला घोंटा जा रहा है, इस पर मैं कहना चाहता हूँ कि :-     
न रस्ता है कोई और न कोई डगर है यहाँ 
फिर भी तो कोई मुंतज़र है यहाँ 
जिए जाएंगे झूठी ख़बरों पे लोग 
क्या बस यही एक सच्ची ख़बर है यहाँ? 
देश में पूंजीपतियों, मुनाफ़ाखोरों, लालची और कुछ दंबंग लोगों के ज़रिये हाक़िमों की शह पर मनमाने तरीक़े से दलितों, मज़लूमों, ग़रीबों, किसानों, शोषितों का बात-बे-बात जो खून बहाया जाता है और कुछ तथाकथित पत्रकारों द्वारा सरकारी नुमाइंदा बनकर ऐसी ख़बरों को छापकर दहशत फैलाने का माध्यम बनने का जो तरीक़ा ईजाद किया गया है, उस पर हम कहना चाहते हैं कि :- 
सरे शाम यादों की यलग़ार देखूं 
या अपने मसाईल के अम्बार देखूं 
सभी सुर्खियों में है सुर्खी लहू की 
मैं जब भी कोई ताज़ा अख़बार देखूं             
हम अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं कि बीते कई महीनों से देश में कोरोना का मामला चल रहा है, सरकारी अमले की लापरवाही, समय पर इलाज का अभाव, दवा के बिना और सरकारी अस्पतालों के निकम्मे भ्रष्ट कताधर्ताओं के अमानवीय व्यवहार के कारण हज़ारों लोग बेमौत मारे जा चुके हैं और यह सिलसिला भी अभी तक थम नहीं पा रहा है। इस सुलगते मुद्दे पर हम यह कहना चाहते हैं कि :- 
किसे द़न करूं किस-किस को फूंकने जाऊं 
रही सही मेरी जां भी निकाल देता है 
अंधेरे मुंह कोई ख़बर बांटने वाला 
हज़ार लाशें मेरे दर पे डाल देता है 
देश भर में बढ़ते जा रहे हादसे ख़ास तौर पर सड़क हादसे रोज़ाना कई जगह होते हैं, रोज़ाना लोग मारे जाते हैं, मग़र राज्य सरकारें इस मामले पर अभी भी लापरवाह बनी हुई हैं, इस मौजूं की हक़ीक़त इस शेर से समझने की कोशिश कीजिए:- 
हादसे इतने ज़्यादा होते हैं वतन में मेरे 
ख़ून के छप के भी अख़बार निकल सकता है         
यह डिजिटलाईज़ेशन और तेज़ ऱतार ज़िन्दग़ी जीने का दौर है, इसलिए दोस्तों यह जमाना होशमंद लोगों के लिए है, इसलिए आज के दौर में लोगों को बेख़बर बिलकुल नहीं बल्कि ख़बरदार रहना चाहिये। आप अगर बाख़बर यानी ख़बरदार रहोगे तो कोई भी आपको गुमराह नहीं कर सकेगा, कोई धोखा नहीं दे सकेगा, सुनहरे ख़्वाब दिखाकर या अच्छे दिनों का झूठा वादा करके कोई आपके जज़्+बात आपकी ज़िन्दग़ी से खिलवाड़ नहीं कर पायेगा। 
हक़ीकत तो यह है कि ख़बरनवीस पर दुनियां वाले अब भी भरोसा करते हैं, मग़र अब तो ख़बर नवीस ही ख़बरों का सौदा करते हैं। ख़बरों की दुनियां, कोई बाज़ीगरी या सौदाग़री नहीं होती। पत्रकार का काम न केवल मज़लूमों, दु:खियों की वक़ालत करना होता है, बल्कि उन्हें  इंसाफ़ दिलाना भी होता है। एक ख़ास मुद्दे की तरफ़ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि मीडिया मेन यानी ख़बरनवीस पर आज भी लोग कितना भरोसा करते हैं। मसलन अग़र वाशिंगटन में कोई हादसा होता है और उसकी ख़बर हिन्दुस्तान के किसी अख़बार में छपती है या न्यूज़ चैनल पर दिखाई जाती है, तो लोग यक़ीन कर लेते हैं कि यक़ीनन वहाँ ऐसा हुआ होगा, तभी तो अख़बार में छपा है या न्यूज़ चैनल ने दिखाया है। इस हक़ीकत का फ़ायदा बेईमान, भ्रष्ट राजनेताओं और घोटालेबाज़ नौकरशाहों ने उठाना शुरू कर दिया और तथाकथित पत्रकार का नक़ली मेकअप करके अख़बारों और चैनलों में बैठे ख़बरों के सौदाग़रों के जरिये करप्ट और बदनाम लोगों को जनता का मसीहा बनाकर पेश किया जाने लगा और अब भी ऐसा करके जनता को निरंतर गुमराह किया जा रहा है, मग़र याद रखिए युवा पीढ़ी बेहद समझदार हो गई है। राजनेताओं के इशारे पर पत्रकारिता के पवित्र पेशे से खिलवाड़ करने वालों को पहचानने लगी है, क्योंकि सियासत में कोई बेगुनाह नहीं होता। सबके राज़ होते है, किसी के छिप जाते हैं, किसी के छप जाते हैं। 
यह सच है कि हर ख़बर का असर होता है, दुनियां में कोई ख़बर कभी बेअसर नहीं होती है, यह भी याद रखिए कि ख़बर सच्ची होती है- झूठी तो अफ़वाह होती है, जो बहुत तेज़ी से फैलती है, जिसमें सोशल मीडिया का बेहद दुउZपयोग किया जाने लगा है। बाकायदा आई.टी. सेल बनाकर, उसमें पेशेवर लोगों को शामिल करके अनेक राजनैतिक दलों के साज़िशी ज़ेहनियत वाले राजनेताओं द्वारा "अफ़वाह" को "ख़बर" के रूप में "वायरल" करके जो घिनौना खेल खेला जा रहा है, उस पर अंकुश लगाया जाना अब बेहद ज़रूरी हो गया है। ख़बरें तो कम ही होती हैं और अफ़वाहें ज़्यादा होती हैं, मग़र अफ़सोस आजकल लोग अफ़वाह को ही ख़बर समझ रहे हैं। तो अब हमें ज़माने में सच्ची ख़बरों को फैलाना होगा और अफ़वाहों को दफ़नाना होगा, तभी "सत्यमेव जयते" का सिद्धांत पूरा होगा यानी लोग सच के साथ जियेंगे।  
सबको याद दिला दूं कि हिन्दुस्तान में हिन्दी पत्रकारिता के संस्थापक राजा राममोहन राय ने "मुर्रातुल अख़बार" के नाम से पहला अख़बार कोलकाता से निकाला, उसके बाद महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने "स्वराज" और "केसरी" अख़बार निकाला। महाशय खुशालचंद ने दिल्ली से "उम्दातुल अख़बार" और फिर उनके वारिसों ने "मिलाप" निकाला। गुजराज से मोहनदास करमचंद गांधी "महात्मा गाँधी" ने "यंग इंडिया" अख़बार निकाला था और "हरीजन" नामक अख़बार भी शाया किया था। मशहूर मुसन्निफ़, साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने भी "जमीदार" के नाम से एक परचा शाया करके किसानों, मज़दूरों, ग़रीबों, दलितों की आवाज़ को बुलंद किया था। यह बताना ज़रूरी है कि अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अख़बारों के ज़रिये समाज को सही दिशा देने का काम किया था।  
उसी दौर में मेरे पिता हज़रत शहीद आसिफ़ शाहमीर चिश्ती साहब ने भी "जम्हूर" अख़बार भोपाल से निकाला और फिर "नया राज" के नाम से एक अख़बार शाया किया। अंग्रेज़ हुकुमत ने उनके अख़बारों को इसलिए ज़प्त कर लिया था, क्योंकि उन्होंने अपने अख़बार में इक़लाबी मज़मून "जुल्म-ओ-सितम का राज ख़त्म किया जाए" के शीर्षक से छाप कर आज़ादी की तहरीक़ के शोलों को गरमा दिया था, इंक़लाब की ज्वाला को भड़का दिया था। ऐसे हज़ारों इंक़लाबी पत्रकार थे, जिन्होंने अख़बारों के ज़रिये आज़ादी की मशाल को रोशन किया था। हालांकि आज यह नई नस्ल जिनको राजनेता मान रही है, वो सभी दरअसल अख़बार नवीस यानी पत्रकार ही थे। चाहे लोकमान्य तिलक हो, गाँधी जी हों, शहीद भगत सिंह हों, शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल हों, पंडित जवाहरलाल नेहरू हों या मौलाना हसरत मोहानी या मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद हों, लाला लाजपतराय हों या शहीद अशफ़ाक उल्लाह ख़ॉ या शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद हों, इनके इंकलाबी लेखों (आर्टिकल्स) ने ही हिन्दुस्तान को आज़ादी दिलाने में अहम रोल अदा किया है।  
यह एक ऐसा सच है, जिसे दरक़िनार नहीं किया जा सकता। देश की आज़ादी के बाद के दौर में कई अख़बार शाया हुए, मग़र एक जमाने में "इंकलाब अख़बार" और "करंट" फिर "बिल्टज़" ने भी काफ़ी तहलका मचाया था। मुम्बई के इन अख़बारों ने हिन्दुस्तानी सियासत की फ़िज़ा बदल दी थी। मुम्बई में बाला साहेब ठाकरे ने "सामना" अख़बार निकाल कर लोगों को सच्चाई का आईना दिखाया और इसी अख़्बार के ज़रिये अपने संगठन शिवसेना का विस्तार किया। इसी प्रकार कांग्रेस का नेशनल हेराल्ड, नवजीवन क़ौमी आवाज़ भी कई वर्षों प्रकाशित होते रहे, इसी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पांचजन्य तो अभी भी प्रकाशित होता है, जो संघ का मुखपत्र माना जाता है। 
पत्रकार का काम है सच को सामने लाना, साज़िशों को उजागर करना और बेईमानी, करप्शन, जनविरोधी काम करने वाले सियासतदानों, हुकमरानों, अफ़सरानों को हक़ीकत का आईना दिखाना। उन्हें ग़लत काम करने से अपनी लेखनी या अपनी वाणी से रोकना होता है, मग़र अफ़सोस आज इसका उल्टा हो रहा है, क्योंकि चाटूकार, मक़्कार मुखौटा लगाकर अब पत्रकार बन बैठे हैं। जो बेड़ागर्क़ करने पर आमादा हैं। ऐसे दौर में जनता की आवाज़ बुलंद करने वाले "सचमुच" के अख़बारों की बेहद ज़रूरत है, जो जनता को अपनी जनहितैषी लेखनी से इंसाफ़ दिला सके।  
आज के दौर के तेज़ तर्रार असली पत्रकारों से कहना चाहता हूँ कि आप तो हरफनमौला हैं, आपमें जोश एवं जज़्बा है, आप अपने अखबार या न्यूज़ चैनल के ज़रिये थोड़ी सी मेहनत करके भी बहुत मशहूर हो सकते हैं। "प्रसिद्ध होना तो आसान है, मग़र सिद्ध होना कठिन है" खुद को सिद्ध करने में सालों बीत जाते हैं। आपसे पहले तरूण तेजपाल नामी एक नौजवान पत्रकार ने दिल्ली में तहलका डॉटकाम के नाम से कई बड़े-बड़े घोटालों को उजागर किया है। बहुत शौहरत, प्रसिद्धी हासिल की थी, मग़र वक़्त की ऱतार के साथ वह चल नहीं पाया, लेकिन मुझे यक़ीन है कि आप अगर जनता के प्रवक्ता बनकर पत्रकारिता करेंगे, तो ज़रूर कामयाब होंगे। मेरी दुआयें हमेशा आपके साथ रहेंगी। आज मैं आपके सामने ग़लतफहमी दूर करना चाहता हूँ कि कई लोग यह सोचते हैं कि जर्नलिस्ट यानी पत्रकार तो प्उचंतजपंस यानी निष्पक्ष होता है, ऐसा नहीं है। बल्कि पत्रकार हमेशा इंसाफ और सच्चाई का पक्षधर होता है, वो हमेशा मजलूम की हिमायत एवं तरफ़दारी करता है। इसी को ही थ्ंपत श्रवनतदंसपेउ कहते हैं। ख़बर नवीस कभी भी सबर का गला नहीं घोटता, जैसा कि आजकल प्रिट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के धंधेबाज़, चाटूकार, फितरत वाले नक़ली पत्रकारों के ज़रिये किया जा रहा है। इंसाफ और सच्चाई की पैरवी करने वाले को ही असली पत्रकार कहते हैं। 
दोस्तों, मैं अपनी बात को ख़त्म करते हुए यही कहना चाहता हूँ कि हम सबको जागरूक और खबरदार होना चाहिये और अपना हक़ हासिल करने के लिए निडर होकर मैदान में आकर खुलकर यह कहना चाहिये कि हम स्वतंत्र हैं, हम मुर्दादिल या बेज़मीन नहीं हैं। हम सभी पत्रकारों को झूठ के अंधेरों में सच्चाई की क़लम को शमां की तरह रोशन रखते हुए ज़िंदा दिल होने का सुबूत पेश करना चाहिए। कुछ इस तरह से :- 
 
ख़बरदार करना काम है मेरा खबरदारी करता हूँ।  
मै पत्रकार हूँ, हमेशा सच ही लिखता हूँ। 
अब तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो 
क्या सच लिखने से पहले इज़ाज़त लूंगा तुमसे ? 
अब तुम ये ग़लतफहमियाँ पालना छोड़ दो 
क्या मैं भी बिक जाऊंगा चांदी-सोने के सिक्कों में? 
तुम ऐसा मत सोचे मेरी क़ीमत लगाना छोड़ दो 
यह सच है कभी एक वक़्त की ही रोटी मिलेगी, 
मग़र तुम मेरे निवालों का हिसाब लगाना छोड़ दो 
मैं करूंगा पर्दाफाश सब गुनाहों और घोटालों का 
बेईमानों सच पे झूठ की कालिख़ लगाना छोड़ दो 
किसी दिन काटा जाऊंगा कभी रौंदा भी जाऊंगा, 
ज़िन्दग़ी में कभी ज़हर तो कभी गालियां भी खाऊंगा, 
अग़र मैं मारा जाऊंगा, तो क्या खामोश हो जाऊं गा, 
क्या तुम रोक लोगे मुझे, ये झूठे ख़्वाब सजाना छोड़ दो 
अचानक सीने से लगी गालियों में, ज़िस्म में धंसे खंजर में 
तो कभी ख़ून में फैले ज़हर में, चीखें सुनाई देंगी मेरी 
लेकिन तुम मेरी आवाज़ को कफ़न में दबाना छोड़ दो 
सच्ची ख़बरों का ख़जाना लेकर घूमता हूँ, ग़र न लौट पाया? 
अरे घरवालों मेरे इंतज़ार में नज़र बिछाना छोड़ दो 
इक दिन मेरे ख़ून की धार ही बनेगी स्यसही मेरी क़लम की, 
समझौता नहीं करूंगा ज़ालिमों से कभी ये आस लगाना छोड़ दो 
मैं पत्रकार हूँ हमेशा सच ही लिखता हूँ  और सच ही लिखूंगा, 
झूठ के तराजू में मुझे तुम तौलना तुलाना छोड़ दो 
खुर्रम की क़िस्मत में ख़बरगिरी करके बाखबर करना लिखा है ....  
इसलिये मेरे दुश्मनों मेरी क़िस्मत को आज़माना छोड़ दो। 
(लेखक-लेखक - डॉ. औसाफ़ शाहमीर खुर्रम )
 

Related Posts