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कोरोनाः न हो कोई ढ़िलाई न दवाई से पहले न बाद दवाई 

कोरोनाः न हो कोई ढ़िलाई न दवाई से पहले न बाद दवाई 

इस सदी की वैश्विक महामारी कोरोना यानी कोविड-19 को दुनिया में दस्तक दिए पूरा एक साल बीत चुका है. हाँ, जागरूकता और संचार क्रान्ति के चलते इतना तो हुआ कि इलाज न होने के बावजूद इसका वो रौद्र रूप देखने को नहीं मिला जो अब तक दूसरी महामारियों में दिखा. कोरोना को लेकर पहली बार नया और दुनिया भर में चर्चित सच भी सामने आया कि यह इंसान के दिमाग का फितूर है जो चीन की प्रयोगशाला की करतूत है. कोरोना से हुई मौतों और दुनिया की मौजूदा आबादी के अनुपात को देखें तो थोड़ी राहत की बात यह है कि यह सजगता ही थी जो महामारी को बिना दवाई के काफी हद तक फैलने से रोक लिया गया. लेकिन मेडिकल साइंस के लिए कोरोना अभी चुनौती बना हुआ है और लगता है कि जल्द इससे पूरी तरह से छुटकारा मिल पाने की सोचना भी बेमानी होगी.
साल भर में ही कोरोना के नए-नए रूप और प्रकार भी सामने आने लगे हैं. लोगों के सामने कोविड के असर, नए आकार-प्रकार और प्रभाव को लेकर निश्चित रूप से हर रोज नई-नई और चौंकाने वालीजानकारियाँ भीसामने आएंगी. स्वाभाविक है कि कई तरह के भ्रम भी होंगे लेकिन सबसे अहम यह कि दुष्प्रभावों और सावधानी का जो असर दिखा उसे ही दवा मानकर बहुरूपिया कोरोना को अब तक मात दी गई और ऐसे ही आगे भी दी जा सकेगी.चिन्ता की बात बस यहीहै कि लोग जानते हुए भी सतर्कता नहीं बरत रहे हैं जो सबसे जरूरी है. यह तो मानना ही होगा कि कोरोना पूरी दुनिया के जीवन का फिलाहाल तो हिस्सा बना ही हुआ है. आगे कब तक बना रहेगा नहीं पता. पता है तो बस यही कि कोरोना जल्द जाने वाला नहीं. सबको यही समझना होगा और कोरोना के साथ रहकर ही जीना होगा.इससे जीतने के लिए दवाई के साथ ही पूरी सावधानी, दक्षता और बदलते तौर, तरीकों को सीखना होगा. 
कब तक लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू  रहे? कब तक हवाई, रेल और सड़क यातायात को रोका जाए? जाहिर है देश, दुनिया की अर्थव्यवस्था की यही तो धुरी हैं. अगर यही बार-बार थमेंगी तो व्यापार-व्यवसाय पर भी तो बुरा असर पड़ेगा जिसका खामियाजा आम और खास सभी को भुगतना होगा.हाँ, यह इक्कीसवीं सदी है, बड़ी से बड़ी चुनौती यहाँ तक कि चाँद और मंगल को भी छू लेने की सफलता का सेहरा बांधे दुनिया अब इस संक्रामक महामारी पर भी जीत हासिल करने की राह पर निकल पड़ी है. यह भी सच है कि किसी बड़े लक्ष्य या चुनौती से निपटने के लिए तैयारियाँ भी काफी पहले से और बेहद लंबी-चौडी करनी पड़ती है.लेकिन यह तो एकाएक आई आपदा है, जिससे निपटने में वक्त तो लगेगा. बस इसी दौर कोहोशियारी से काटना होगा. समय के साथसब ठीक हो जाएगाबशर्ते होशियारी और सतर्कता से कोई समझौता न हो. 
महारमारियों के इतिहास को थोड़ा देखें. 14 वीं सदी में यूरोप में फैले प्लेग और ब्रिटिश राज में भारत में फैली दूसरी वायरस जनित महामारियां कोरोना से कम नहीं थीं. 1347 का अक्टूबर महीना यूरोप के इतिहास का बदनुमा अध्याय है. सिसली बंदरगाह पर व्यापार कर रहे लौट रहे लोगों का उनके  स्वजन इंताजर कर रहे थे. कप्तान की सूझबूझ से जहाज तो लौटा लेकिन जब उससे कोई उतरा नहीं तो किसी ने हिम्मत की और अंदर झाँका तो नजारा भयावह था. चारों तरफ लाशें ही लाशें तो कुछ अधमरे कुछ आखिरी साँसें लेते हुए. तब लोगों को महामारी का अंदाज नहीं था. रिश्तेदार जिन्दा व मुर्दा लोगों को घर ले आए. बस यहीं से ब्लैक डेथ यानी प्लेग संक्रमण फैला और तब 50 लाख लोगों की जान चली गई. इसी तरह 1820 में कॉलरा महामारी ने फारस की खाड़ी सहित जापान, भारत, बैंकाक, मनीला, जावा, ओमान, चीन, मॉरिशस और सीरिया को चपेट में लिया जिससे अकेले जावा में ही1 लाख से ज्‍यादा मौतें हुईं. वहीं थाइलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपीन में भी बड़ी संख्या में लोगों की जान गई.दुनिया जब 1918 में पहले विश्व युद्ध के खौफ से निकल रही थी कि उसी समय स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दे दी. नतीजन जितने लोग उस विश्व युद्ध में मारे गए उससे दो गुना ज्‍यादा फ्लू की चपेट में आकर जान गंवा बैठे. बताते हैं इसमें करीब 5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी और यह मानव इतिहास की सबसे भीषणतम त्रासदीपूर्ण महामारियों में से एक थी.वैसे छिटपुट तौर पर 1994 का न्‍यूमोनिक प्‍लेग,2003 का सार्स,  2014 का इबोला, 2018 का निपाह, 2019 का चमकी बुखार भी वायरस जनित छोटी-मोटी तबाहियों का कारण बना. लेकिन यह खतरनाक होते इससे पहले ही निपट लिया गया. यानी संक्रामक महामारियों और मानव सभ्यता का कटु संबंध सदियों से है.
अब ब्रिटेन में कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन बेकाबू हो गया है. दुनियाभर में फिर हड़कंप और दहशतफैल है.भारत सहित 40 से ज्यादा देशों ने ब्रिटेन से किसी के आने-जाने पर रोक लगा दी है. ये नया कोरोना वायरस दिसंबर 2020 में ब्रिटेन में मिला जिसे वैज्ञानिकों ने वीयूआई-202012/01 नाम दिया. यह मॉडीफाइड वेरिएंट 70 प्रतिशत तेज फैलता है और वैज्ञानिक यह भी खोज कर रहे हैं कि क्या यह म्यूटेट यानी वायरस के जेनेटिक मटेरियल में बदलाव हो रहा है?नया स्ट्रेन अपनी संरचना के चलते ज्यादा खतरनाक है. इसमें 8 रूप जीन में प्रोटीन बढ़ाने वाले हैं जिनमें 2 सबसे ज्यादा चिंता पैदा करने वाले हैं. पहला एन501वाय रूप जो खतरनाक है इससे शरीर की कोशिकाओं पर तेजी से हमले की संभावना बनती है और दूसरा एच69/वी70वाला रूप जो शरीर की इम्युन यानी प्रतिरोधक क्षमता को जबरदस्त नुकसान पहुंचाता है.अब लग रहा है कि कोरोना के बदलते स्वरूप से महामारी और संक्रमण तेजी से फैल सकता है. 
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रेयान भी मान चुके हैं कि भारत, चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों से जंग जीतने की दुनिया में एक मिशाल है. चेचक से हुई मौतें विश्व इतिहास में लड़े गए सारे युध्दों से ज्यादा है.इसी लिहाज से दुनिया भर की निगाहें एक बार फिर हमारी ओर है. हालांकि कोविड-19 के टीके को लेकर दुनिया भर में परीक्षण चल रहे हैं. लेकिन आबादी के लिहाज से एक बार फिर सभी भारत पर टकटकी लगाए हैं. भारत में  एक ही समय में अलग-अलग इलाकों की तासीर अलग होती है. ऐसे में टीके की सफलता और खरे परीक्षण लिए हर दृष्टि से भारत को ही लोग उपयुक्त मानते हैं. ऐसा हो भी रहा है.
देश में संभावित टीके को जनवरी में बाजार में उतारने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं. भारतीय औषधि नियामक की नजर ब्रिटेन पर है जो ऑक्सफोर्ड निर्मित कोविड-19 के टीके को इसी हफ्ते मंजूरी दे सकता है. यदि ऐसा हुआ तो केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ में कोविड-19 विशेषज्ञ समिति की बैठक होगी जिसमेंदेश-विदेश में क्लिनिकल ट्रायल से प्राप्त सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा क्षमता के आंकड़ों की गहराई से समीक्षा होगीउसके बाद ही भारत में टीके के आपात इस्तेमाल संबंधी मंजूरी मिल सकेगी.हालाकि वायरस के नए प्रकार के सामने आने से संभावित एवं विकसित होते टीकों पर किसी भी तरह के प्रभाव की संभावना से वैज्ञानिक फिलाहाल इंकार कर रहे हैं. लेकिन सारा कुछ टीकेके आने व उपयोग में लाने के बाद ही साफ हो पाएगा. फिलाहाल दवा में सुअर की चर्बी के उपयोग की चर्चा के बीच नया विवाद भी उफान पर है. कुछ उपयोग के खिलाफ तो कुछ परिस्थितियों के देखते हुए उपयोग के पक्ष में.वहीं इतिहास बताता है कि कोई भी महामारी इतने जल्दी कभी खत्म नहीं हुई है. हाँ फैलाव सतर्कता से ही रोका गया. बस कोविड-19 के साथ भी ऐसा ही जरूरी है. वैक्सीन आने के बाद सब तक पहुँचने और किसे पहले किसे बाद की प्राथमिकताओं के चलते लंबा वक्त लगना सुनिश्चित है.साथ ही कई बदलाव, प्रभाव और दुष्प्रभावों का भी दौर चलेगा. कोरोना के नित नए रूप, वैक्सीन और उसके उपयोग की ऊहापोह बीच बिना किसी साइड इफेक्ट के कोरोना से निपटने का कारगर मंत्र दो गज की दूरी मास्क जरूरी ये तो सबकोपता है.फिर नहीं लगाने की कैसीबड़ी खता है? बस यही समझना और समझकर जंग जीतना होगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)
 (लेखक- -ऋतुपर्ण दवे )

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