नई दिल्ली । तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, कांग्रेस की धड़कनें तेज हो रही हैं। क्योंकि एक तरफ जहां पार्टी की चुनाव को लेकर कोई तैयारी नहीं है, वहीं डीएमके का रुख भी पार्टी की चिंता बढ़ा रहा है। डीएमके लगातार संकेत दे रहा है कि वह गठबंधन में ज्यादा सीट देने के लिए तैयार नहीं है। बिहार की तरह तमिलनाडु में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। वर्ष 2011 के चुनाव में पार्टी ने 63 सीट पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 5 सीट जीती थी। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 41 सीट पर चुनाव लड़ा और 8 सीट जीती। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 8 सीट पर जीत दर्ज करते हुए करीब 13 फीसदी वोट हासिल किया। तमिलनाडु के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2016 के मुकाबले इस वक्त कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। मुस्लिम और क्रिश्चियन मतदाता कांग्रेस के साथ हैं। प्रदेश में करीब 17 फीसदी मुस्लिम और ईसाई मतदाता हैं और विधानसभा की करीब 90 सीट पर असर डालते हैं। इसलिए पार्टी के पिछले चुनावी प्रदर्शन या बिहार चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इन सबके बावजूद पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है। प्रदेश प्रभारी दिनेश गुंड्डराव के साथ बैठक प्रदेश नेताओ के साथ बैठक में यह मुद्दा पूरी शिद्दत के साथ उठा।
प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि सभी पार्टियां चुनाव तैयारी शुरू कर चुकी है, पर हमारी अभी चुनाव से सम्बंधित समिति तक नहीं बनी है। रजनीकांत के पार्टी नहीं बनाने के ऐलान से भी विपक्ष की स्थिति मजबूत हुई है। रजनीकांत के सियासत में कदम रखने के बाद सरकार विरोधी वोट कटने के खतरा बढ़ सकता था। पर अब ऐसा नहीं है। यही वजह है कि वह पुडुचेरी में अलग राह पकड़कर डीएमके तमिलनाडु में संकेत देने की कोशिश कर रहा है।
तमिलनाडु प्रदेश कांग्रेस नेता मानते हैं कि मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में डीएमके पिछले चुनाव के मुकाबले कुछ कम सीट पर भी समझौता कर सकती है। पर डीएमके ने ज़्यादा दबाव डालने की कोशिश की तो कांग्रेस लेफ्ट पार्टी, मुस्लिम लीग और दूसरी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने पर विचार कर सकती है।
रीजनल साउथ
तमिलनाडु में डीएमके के रुख से बढ़ रही कांग्रेस की टेंशन, पर रजनीकांत के फैसले से मिल रही राहत