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राहुल की इटली यात्रा के निहितार्थ 

राहुल की इटली यात्रा के निहितार्थ 

कांग्रेस में विरासती पृष्ठभूमि के आधार पर राजनेता बने राहुल गांधी की बयानबाजी तो सदैव चर्चा की विषय बनती ही हैं, साथ ही उनकी विदेश यात्राओं पर भी चटकारे लिए जाते हैं। सुनने में आया है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी इटली में अपनी नानी से मिलने ननिहाल गए हैं। राहुल गांधी की इस यात्रा पर कई प्रकार के प्रश्न उपस्थित हो रहे हैं, और कांग्रेस के अन्य नेता राहुल का बचाव कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि नानी से मिलने जाने में कोई हर्ज नहीं है। यहां मुख्य सवाल यह उठ रहा है कि इटली जाने के लिए राहुल गांधी ने अंग्रेजी नव वर्ष का समय ही क्यों चुना? क्या वे अंग्रेजियत के समर्थक हैं? ऐसे सवालों के जवाब आज देश की जनता जानना चाहती है। क्योंकि एक तरफ अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस द्वारा समर्थित किसान आंदोलन चलाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित कांग्रेस पार्टी का स्थापना दिवस मनाया गया। इन दोनों महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से किनारा करके राहुल गांधी का इटली के लिए प्रस्थान करना एक प्रकार से यही सिद्ध करता है कि उन्हें देश की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है, वे पहले भी देश में उत्पन्न हुईं कठिन परिस्थितियों के बीच विदेश यात्राओं पर गए हैं। यहां सबसे विचारणीय तथ्य यह है कि राहुल गांधी बिना प्रचारित किए विदेश यात्रा पर जाते हैं और उनके जाने के बाद ही पता चलता है कि वे विदेश यात्रा पर गए हैं। विदेश यात्रा निजी हो सकती है, लेकिन इस विदेश यात्रा में वे करते क्या हैं, यह देश जानना चाहता है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एक राजनेता का व्यक्तिगत जीवन कुछ नहीं होता, राजनेता जितना सार्वजनिक जीवन जिएगा उतना ही वह देश के बारे में जान सकता है। राहुल गांधी कौन सा जीवन जीते हैं, यह सभी को पता है। इतना ही नहीं कभी-कभी कांग्रेस के अंदर ही राहुल गांधी को लेकर सवाल उठते हैं, कभी गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष बनाए जाने की बात की जाती है तो कभी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की कवायद की जाती है। आज कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि गांधी परिवार के अलावा कोई नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए स्वीकार योग्य नहीं है। इसके पीछे कारण यही माना जा सकता है कि कांग्रेस में किसी भी राजनेता का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रभाव नहीं है। कांग्रेस में जो राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हैं, वह भी केवल प्रादेशिक क्षत्रप ही हैं। इसलिए राहुल गांधी का न चाहते हुए भी समर्थन करना उनकी विवशता है। जबकि कांग्रेस के कई नेता यह समझते हैं कि राहुल गांधी कभी-कभी बचकानी हरकत भी कर जाते हैं। इतना ही नहीं वे अपने झूठे बयान पर सर्वोच्च न्यायालय में माफी भी मांग चुके हैं। इससे यह समझा जा सकता है कि राहुल के राजनीतिक बयानों में कितनी सच्चाई होती है।
वर्तमान में राजनीतिक अस्तित्व के लिए जमीन तलाश रही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बारे में कितनी भी सफाई प्रस्तुत करें, लेकिन इतना तो उजागर हो ही चुका है कि जब से राहुल गांधी मुख्य भूमिका में आए हैं, तब से कांग्रेस निरंतर अवनति की ओर कदम बढ़ा रही है। राहुल गांधी की इटली यात्रा के बारे में एक कांग्रेस नेता का स्पष्ट कहना है कि पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। उनके इस बयान का आशय यही निकाला जा रहा है कि अभी कांग्रेस का भविष्य सुरक्षित नहीं है। कांग्रेस की राजनीति की सबसे बड़ी विसंगति यह भी है कि वह मुस्लिम परस्त राजनीति को ही धर्म निरपेक्ष मानती है, इसी श्रेणी में हिन्दू विरोध को भी रखा जाता है। जबकि संवैधानिक दृष्टि से सभी धर्मों को समान रूप से देखना और समान रूप से व्यवहार करना ही धर्म निरपेक्षता है। जबकि भारत के बारे में सत्य यही है कि भारत सदैव धर्म के सापेक्ष ही रहा है, निरपेक्ष नहीं।
हम जानते हैं कि कांग्रेस को लोकसभा के चुनावों में अपनी अब तक की सबसे बड़ी पराजय का सामना किया है, लेकिन इसके बाद कांग्रेस को आत्ममंथन की मुद्रा में आना चाहिए था, लेकिन वहां आत्ममंथन की बात तो दूर केवल राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर कैसे स्थापित किया जाए, इसी पर पूरी राजनीति केंद्रित होती जा रही है। जबकि यह सत्य है कि जब से राहुल गांधी कांग्रेस में मुख्य भूमिका में आए हैं, तब से कांग्रेस पतन की ओर ही जा रही है। कांग्रेस के पतन का एक कारण यह भी माना जा रहा है कि वह आज सिद्धांतों की राजनीति से बहुत दूर होती जा रही है। वह केवल मोदी के विरोध तक ही सीमित हो गई है।
(लेखक -सुरेश हिन्दुस्थानी)

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