केन्द्र सरकार किसी भी विदेशी को कभी भी देश छोड़कर जाने के लिए कह सकती है, चाहे उसके पास वैध वीजा ही क्यों न हो। यह जवाब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक पाकिस्तानी महिला के मामले में हाईकोर्ट में दिया है। गृह मंत्रालय ने इस महिला को १५ दिन के भीतर देश छोड़कर जाने का आदेश दिया था। इस आदेश को पहले एकल पीठ और उसके बाद खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी है। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की खंडपीठ के समक्ष केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जवाब पेश किया गया। खंडपीठ ने अगली सुनवाई के लिए १३ मई की तारीख तय की है। केंद्र सरकार ने सुरक्षा पर गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर महिला को ८ फरवरी को नोटिस जारी कर १५ दिन में भारत से जाने का आदेश दिया था। इस महिला ने वर्ष २००५ में भारतीय नागरिक से शादी की थी और वह अपने परिवार के साथ रह रही थी। महिला के पति ने इसे चुनौती दी, लेकिन उसकी याचिका एकल पीठ ने २८ फरवरी को खारिज कर दी थी। उसने इस आदेश को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दे रखी है। खंडपीठ के समक्ष गृह मंत्रालय की ओर से पेश हलफनामे में स्थायी अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया ने दलील रखी कि किसी भी विदेशी को बाहर भेजने के मामले में गृह मंत्रालय के पास अप्रतिबंधित अधिकार है। सरकार किसी भी विदेशी को कभी भी बगैर नोटिस जारी किए देश छोड़कर चले जाने को कह सकती है। जब सरकार किसी विदेशी को नोटिस जारी कर देती है तो उसे किसी भी हालत में, वैध वीजा होने के बावजूद, देश में रहने का अधिकार नहीं है। भारत छोड़ने का नोटिस अपने आप वीजा की वैधता को समाप्त कर देता है।
सरकार का कहना है कि सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से महिला के खिलाफ कई आपत्तिजनक सूचनाएं मिली थीं। इसलिए उसे देश छोड़कर जाने को कहा गया है। कोर्ट महिला के पति की उस याचिका को निरस्त कर दे, जिसमें उसने पत्नी को भारत में रहने देने की अनुमति मांगी है। महिला का कहना है कि उसे बगैर किसी गलती के देश छोड़ने को कहा जा रहा है। इससे उसका अधिकार प्रभावित हो रहा है। इसलिए सरकार के आदेश को खारिज कर उसे परिवार के साथ भारत में रहने दिया जाए।
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किसी भी विदेशी को देश से जाने को कह सकती सरकार