इसी माह से यानि मकरसंक्रांति से हरिद्वार के गंगातट पर हो रहे महाकुम्भ में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। हांलाकि सरकार इस कुम्भ डुबकी को लेकर कोरोना के चलते संशय में है। भव्य कुम्भ के सरकारी स्तर पर दावे तो हो रहे है ,लेकिन व्यवस्था कही दिखाई नही देती।हो सकता है केंद्र से मिले कुम्भ बजट का हिसाब बराबर करने के लिए बार बार कुंभ को सफ़ल बनाने के दावे किए जा रहे हो।जबकि सच यह है कि अभी तक न कोरोना गया है और न ही सरकार कुंभ पर लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं की कोरोना गाइड लाइन के अनुरूप व्यवस्था करने में सक्षम दिखाई दे रही है।अलबत्ता कुम्भ में भीड़ के दावे हर बार की तरह ही इस बार भी पहले की ही तरह किये जायेंगे और एक ही दिन में करोडो लोगो को आस्था की डुबकी लगवा दी जाएगी। इस कुम्भ स्नान में साधु संत तो भाग लेंगे ही यह सुनिश्चित है।साथ ही नागा साधुओं की शोभायात्रा भी जरूर देखने को मिलेगी। कुंभ में देश विदेश से कितने लोग आएंगे यह तो अभी से कह पाना मुश्किल है।लेकिन जितने भी लोग इस कुम्भ में आ रहे है। वे अपने पाप तो कुम्भ में हरकी पौड़ी पर आस्था की डुबकी लगाकर धुल ही लेंगे। परन्तु उनके डुबकी लगाने से गंगा कितनी मैली होगी इसकी किसी को फिक्र नही है। लोगो के कुंभ में डुबकी लगाने से उनके शरीर का मैल और कीटाणु गंगा के जल को मैला और प्रदुशित करेंगे इससे इंकार नही किया जा सकता। इस प्रदुशित होने वाले गंगा जल को साफ करने के कोई वैज्ञानिक उपाय अपनाने पर भी कोई विचार नही किया जा रहा है। जिसकारण दूसरे लोगो को प्रदुषित जल में स्नान करने को विवश होना पडेगा।गंगा में स्वच्छ जल की कमी को पूरा करने के लिए निरन्तर गंगा की सफाई आवश्यक है।जिसकी शुद्धता के लिए अभी तक कोई ठोस उपाय नही किये गए है।
जिससे कुम्भ में आकर स्नान करने और आचमन की चाह रखने वाले श्रद्धालुओं को निराशा ही होगी।त्रेता युग में अवतरित हुई गंगा से जनकल्याण तो होता ही है ,धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु पाप मुक्त भी हो जाते है और उनके मन व शरीर दोनो निर्मल हो जाते है। राधाकृष्ण की महारास लीला से स्वर्ग में जन्मी मां गंगा भगीरथ की तपस्या से खुश होकर जनकल्याण के लिए बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को स्वर्ग का सुख छोडकर भगवान शिव की जटाओं से होती हुई धरती पर आई थी, कहा जाता है कि मां गंगा के ही भरोसे भगवान शिव ने समुन्द्र मंथन से निकले विष का पान किया था। ताकि गंगा की शीतलता उन्हे विष के ताप से मुक्त कर सके। जिस गंगा ने भगवान शिव की जटाओ में आकर उन्हे शीतलता प्रदान की ,वही गंगा आम भक्तो के लिए भी मोक्षदायिनी बन गई है।
तभी तो गंगा की गोद में डूबकी लगाते ही भक्त स्वयं को पाप मुक्त समझने लगता है। एक तरफ हम मां गंगा को महिमा मंडित करते है और मां गंगा की पवित्रता के लिए किसी भी ऐसे व्यक्ति को हरकी पौडी पर व गंगा आरती में प्रवेश नही करने देते जो हिन्दू न हो और हिन्दू परम्पराओं का आचरण न करता हो । वही हम लोग मां गंगा को प्रदुषित करने में भी पीछे नही है।अब तो गंगा के उदगम स्थल के बाद से ही सीवरेज का गंदा पानी, नालियों के पानी की निकासी ,मूर्तियां,धार्मिक कलेण्डर,हवन की राख और जले अधजले शवों को बहाकर हम मां गंगा को अपवित्र बना देते है। इन सबके प्रति आवाज उठाने के बजाए गंगा से उर्जा पैदा करने को लेकर राजनीति हो रही है।कुछ वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड में राज्यपाल रहे अजीज कुरेशी को धर्म का हवाला देकर मां गंगा से दूर करने की कौशिश की गई थीै। जिसे लेकर वे ही नही मां गंगा भी आहत हुई होगी। पौराणिक ग्रन्थों में कही भी ऐसा कोई उल्लेख नही है कि गंगा के जल का किसी भी रूप में किसी भी धर्म के व्यक्ति द्वारा उपयोग करने से गंगा की पवित्रता प्रभावित होती हो। इस लिए गंगा नदी पर प्रस्तावित केन्द्रिय एंव निजी उपक्रमों की विभिन्न परियोजनाओं से गंगा की पवित्रता कम होने का सवाल ही नही उठता। इसी तरह अगर कोई गैर हिन्दू श्रद्धाभाव से मां गंगा को प्रणाम करता है, मां गंगा केपावन जल से पवित्र होना चाहता है तो उसका स्वागत होना चाहिए, न कि उसे प्रतिबन्धो के तहत मां गंगा से दूर कर दिया जाए। बस जरूरत है तो इस बात की कि हम स्वंय गंगा में ऐसा कुछ न डाले जिससे गंगा प्रदुषित हो और दूसरो के लिए मोक्ष के बजाए कष्ट का कारण बन जाए। वैसे भी गंगा का अवतरण जनकल्याण के लिए ही हुआ है। तभी तो मां गंगा संकट मोचक मानी जाती है। गंगा जल का आचमन हमारी देह को ही नही, आत्मा को भी पवित्र करता है। यह गंगा जल की विषेशता ही है कि यह वर्षो तक रखा रहने पर भी कभी खराब नही होता। यही विशेषता आबे जम जम की भी है। हमे विचार करना होगा कि गंगोत्री से गंगा सागर तक के 2500 किमी लम्बे सफर में मां गंगा की हालत क्या से क्या हो गई। लेकिन इस हालत पर कोई भी कुछ बोलने को तैयार नही है। अलबत्ता नमामि गंगे के सहारे मां गंगा को शुद्ध करने के दावे जरूर किये गए।इससे गंगा तो साफ नही हुई लेकिन राजनीतिक हित जरूर सध गए।
(लेखक- डॉ. श्रीगोपालनारसन एडवोकेट)
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पाप कैसे धुलेंगे कुम्भ की डुबकी से !