आज जग दिखता है जैसा फिर कभी दिखता न कल
बदलता है रूप अपना हर समय प्रत्येक पल
फूल सा हंसता सुहाना और जाता शीघ्र ढ़ल
तेज है धारा समय की चलना पड़ता है संभल
राह में कठिनाइयां कई , देखकर आगे निकल
जब मिले मुश्किल कोई समझ करके खोज हल
होता है दलदल वहीं प्रायः जहां खिलते कमल
व्यर्थ आकर्षण में फंस ना, लक्ष्य पाने चला चल
लोभ लालच में न फंस रख भावना पावन विमल
यदि जरूरी लक्ष्य पाने रास्ता अपना बदल
हो निडर गंतव्य पाने सतत आगे बढ़ा चल
सोच यदि होती सही तो मिल के ही रहता है हल
मन को अपने वश में रख ध्यान ना जाए मचल
गहन हो संकल्प तो वह खुद करेगा समुचित पहल
लेखक- प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध