नई दिल्ली । कोरोना महामारी पर हुए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन में कहा गया है कि आईसीयू में भर्ती मरीजों को श्वांस संबंधी गंभीर परेशानी के मुकाबले दिमाग के ठीक से कार्य नहीं करने की दिक्कत अधिक हुई। इससे मरीजों में मतिभ्रम या उनके कोमा में जाने की स्थिति पैदा हुई।
‘द लैंसेट' पत्रिका में छपे शोध पत्र के मुताबिक कोरोना वायरस ने शुरुआती दिनों में श्वसन तंत्र के मुकाबले मरीजों के मस्तिष्क को ज्यादा नुकसान पहुंचाया। अध्ययन के दौरान 28 अप्रैल से पहले कोविड-19 के 2000 मरीजों में मतिभ्रम और कोमा में जाने की घटनाओं पर नजर रखी गई। यह अध्ययन 14 देशों के 69 आईसीयू के मरीजों पर किया गया। अमेरिका स्थित वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में यह अनुसंधान हुआ। इसमें कहा गया है कि शामक औषधि और परिवार से मिलने पर रोक के कारण इन मरीजों के मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर बुरा असर पड़ा। आईसीयू में मतिभ्रम का संबंध इलाज के भारी खर्च एवं मौत के खतरे से जुड़ा है। लंबे समय तक आईसीयू में रहने से डिमेंशिया हो सकता है।
अध्ययन के मुताबिक, इन मरीजों में 82 प्रतिशत 10 दिनों तक लगभग कोमा की स्थिति में रहे। जबकि 55 प्रतिशत में तीन दिन तक मतिभ्रम की स्थिति बनी रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि आईसीयू में भर्ती मरीजों के दिमाग के गंभीर रूप से काम नहीं करने की स्थिति औसतन 12 दिनों तक बनी रही।
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श्वसन तंत्र के मुकाबले मरीजों के मस्तिष्क को ज्यादा नुकसान पहुंचाया कोरोना ने