यूपी में सपा-बसपा गठबंधन में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सबसे बड़ी परीक्षा होने वाली है क्योंकि पूर्वी यूपी भाजपा का गढ़ है यहां की 27 लोकसभा सीटों पर अगले दो चरणों में 12 और 19 मई को मतदान होना है। अखिलेश अपने ओबीसी वोटों को मायावती की पार्टी बसपा के पक्ष में दिलवा पाएंगे या नहीं, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। मायावती ने 27 में से 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं और इनमें से ज्यादातर सीटों पर मुकाबला भाजपा बनाम महागठबंधन होने जा रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक इन दोनों चरणों में अखिलेश यादव को न केवल अपने लोगों को बसपा को वोट करने के लिए उत्साहित करना होगा बल्कि दशकों पुरानी दलित और ओबीसी शत्रुता को खत्म कराना होगा। इन 17 सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों की जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि अखिलेश यादव अपने परंपरागत वोटों को कितना ट्रांसफर करा पाते हैं। अंतिम दो चरणों की 27 सीटों में से ग्रामीण सीटों पर बसपा लड़ रही है, वहीं शहरी सीटों पर सपा ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। अखिलेश यादव अपनी जाति के लोगों का वोट बसपा को दिलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। जातिगत भावनाओं को मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव बार-बार लोगों को यह याद दिला रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद किस तरह से उनके सीएम आवास से हटने पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरे घर को पवित्र करने के लिए गंगाजल से धुलवाया था। अखिलेश यह भी याद दिला रहे हैं कि योगी ने कहा था कि अगर संविधान नहीं होता तो वह भैंस चरा रहे होते। इस बीच चुनावी नारों और प्रतीकों के बीच सपा चीफ ने अपने वॉर रूम में गतिविधि को बढ़ा दिया है। वह हर संसदीय क्षेत्र की प्रतिदिन की रिपोर्ट पर नजर रख रहे हैं। अखिलेश ने एक बड़ा सा कार्यालय बनाया है जो उन्हें बताता है कि किस जिले में प्रत्याशी को अतिरिक्त लोगों और अन्य संसाधनों की जरूरत है। सपा अध्यक्ष ने टीवी और समाचार पत्रों में इस बार गठबंधन के लिए विज्ञापन देने से परहेज किया है और वह अपने समर्थकों तक सीधी पहुंच के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही नहीं जो लोग गठबंधन को जीत दिलाने में हीलाहवाली दिखा रहे हैं, उन्हें चेतावनी दी गई है कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। खलीलाबाद में अखिलेश ने रैली की और वहां कांग्रेस प्रत्याशी भालचंद्र यादव का समर्थन कर रहे पार्टी के नेताओं को अपने मंच से ही चेतावनी दी।