लोहडी का जिक्र होते ही यह लोकगीत बरबस ही मुह से निकल पडता हैं पौष माह की अंतिम रात्रि को पंजाब और हरियाणा में धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार लोहडी के दिन यह लोकगीत बडे चाव सें गाया जाता हैं
सुन्दर मुन्दरिये -हो
तेरा कौण विचारा -हो
दुल्ला भटटीवाला-हो
दुल्ले धी बयाई-हो
सेर शक्कर पाई -हो
कुडी दे बोझे पायी -हो
लोहडी के संवध में प्रचलित लोक कथा के मुताबिक पंजाव के गंजीवार इलाके में रहने वाली एक ब्राहाण सुदरी पर शाही शासको की कुद्वष्टि पडी तो उसे हर हाल में हासिल करने के लिए उन्होनें उसके पिता पर दबाब डाला , स्वाभिमानी पिता व पुत्री ने जंगल में रहने वाले डाकू दुल्ला के पास जाकर अपनी परेषानी बता कर सहायता कि फरियाद की दुल्ला भटटी भले ही डाकू था, लेकिन वह आम जनता का षुभचितक और उनका बेताज बादषाह था । दुल्ला भटटी ने रातों रात ब्राहाण लडका तलाष कर आग के अलाव को साक्षी बनाकर सुन्दरी का विवाह कर दिया और सुंदरी कार्धमपिता बना सयोग से उस दिन उसके पास लूट का माल नहीं था इसलिए उसने सेर भर षक्कर और तिल सुंदरी के दुपट्टे में बांध दिए जब षाही सेना को इसकी भनक लगी तो उन्होने गंजीवार पर चढाई कर दी ,दुल्ला भटटी और वह की जनता ने षाही सेना का मुकाबला कर विजय हासिल की बाद में गंजीबार की जनता ने आग का अलाव जलाकर उसके इर्द गिर्द नाच गाकर खुषी मनायी और तिल व षक्कर बाटे तभी से लोहडी के दिन अलाव के इर्द गिर्द नाचने गाने की परंपरा है,
ऐसी भी मान्यता है कि हमारे बुजुर्गो ने पौश माह की ठंड से बचने के लिए एक मंत्र पढा था। इस मंत्र में सूर्य देव से प्रार्थना की गई थी कि वह पौश में अपनी किरणों से इस पृथ्वी को इतना गर्म कर दे कि लोगों को पौश की ठंड नुकसान न पहुचा सके। वे लोग इस मंत्र को पौश माह की आखिरी रात को आग के सामने बैठकर बोलते थे कि सूरज ने ठंड से बचा लिया है। लोहडी की आग एक तरह से सूरज का धन्यवाद करने के लिए हवन की आग कही जा सकती है।कहते हैं कि इसी मंत्र से लोहडी का त्योहार षुरू हुआ ।
बुखारी -बुखारी कहां गया?
सुनेर पर्वत की तरफ।
सुनेर पर्वत कहां गया?किरण की तरफ ।
किरण कहां गयी? सूरज की तरफ।
सूरज कहां गया? अग्नि की तरफ ।
अग्नि जलती है, किरण तपाती है और हिम को निगल कर षीत समाप्त करदेती है।
उनका विचार था कि अलाव की उWची उWची लपटे सूरज को संदेष पहुचा देती हैं,इसीलिए लोहडी की अगली सुबह सूरज की किरणें खून को गरमाना षुरू कर देती हैं
लोहडी से कुछ दिन पूर्व ही लडके लडकियाँ अपनी पृथक-पृथक टोलियॉ बनाकर गली गली में सुन्दर मुन्दरिये के गीत गाते लकडी और उपले इकटठे करते हैं,
दे माई लोहडी तेरी नीवे जोडी,
खोल माई कुडा तेरा जीवे मुडा
इतना ही नही जिस घर से उन्हें लोहडी नही मिलती ,उस घर के बाहर हुक्का लगाने से भी नहीं चूकते ,
हुक्का भाई हुक्का ए घर भुक्खा
इस दिन गॉव के चौराहे मुहल्ले घर आंगन या किसी खुली जगह पर आग जलाईजाती हैसभी लोग लोहडी की आग से वंष बढने की प्रार्थना करते है।अग्नि में तिल फैक कर पुत्र के वर मॉगे जाते हैं, इसलिए आग में तिल फैकते हुए औरते गाया करती हैं-
जेठानी जितने तिल फैकेगी,देवरानी उतने ही पुत्र जनेगी।
इसीलिए नवजात षिषुओं और नवविवाहित लडके की खुषी में लोहडी जलायी जाती है। गुड और तिल बॉटे जाते हैं। लोहडी को षायद इसीलिए तिलोडी अर्थात तिल और रोडी गुड का त्योहार कहा जाता है। लोहडी से यह वर भी मॉगा जाता है कि घर का तवा और चूल्हा तपता रहे- यानी घर में सुख सुविधा रहे। अग्नि को रेवडी मक्के के भुने दाने चिवडा मूगफली और तिल भेट किए जाते है फिर इन्ही का प्रसाद बांटा जाता है इसके बाद देर रात तक ढोलक की थाप पर गाना बजाना नाच गाना भांगडा मौज मस्ती का आलम चलता रहता है। घर लौटते समय लोहडी में से दो चार दहकते कोयले या राख को प्रसाद के रूप में घर भी ले जाते है,इस राख को कुल की वृद्धि करने वाला माना जाता है,ऐसी भी मान्यता है कि उपलों की यह राख सामूहिक जीवन सुरक्षा कुल की वृद्धि और जीवन की खुषियों का प्रतीक है, अगले दिन स्नान व दान करने की भी पंरपरा हैं इस दिन को उत्तर प्रदेष के पूर्वाचल में खिचडवार महाराश्ट्र में संक्रांति दक्षिण भारत में पोगल के रूप में मनाया जाता है,
यू तो लोहडी पूरे समुदाय का त्योहार है पर विवाह के बाद पहली लोहडी पडने पर या घर में पुत्र प्राप्ति हुई हो तो बच्चे की पहली लोहडी बडी धूमधाम से मनाने का चलन हैं लोहडी का त्योहार महाराजा रणजीत सि हके षासन काल में भी इतने धूमधाम से मनाया जाता था इस दिन षेर ए पंजाब रणजीत सिह स्वयं जनता में तिल और षक्कर बांटते थे तिल और षक्कर बाटने की परपरा मकर संक्रांति पर पूरे महाराश्ट्र में भी तिल गुड बाटकर निभाई जाती है ं।लोहडी से जमीदारों का आर्थिक वर्श षुरू होता है। जमीन की कटाई आदि इसी दिन की जाती है। यह सिर्फ षरद ऋतु का ही त्योहार ही,नहीं नव विवाहित लडकियों का भी त्योहार है। लोहडी के दिन नव विवाहिता लडकियों को वाबुल के घर से उपहार भेजे जाते हैं। लोहडी सिख समुदाय का प्रमुख त्योहार है।पंजाब में रबी की फसल पकने की खुषी में यह त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाता हैं।लोहडी की षाम को सिख समुदाय के लोग उपले और लकडियों को जलाते है और उसमें अनाज की बालिया ,मूगफली और तिल डालते है और एक दूसरे को बधाइयां देते है।
(लेखक-मुकेश तिवारी )