हमारे समाज में अधिकांश उत्सव प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े हैं। मकर संक्रान्ति का उत्सव भी इनमें से एक है ।यों तो इस उत्सव मनाने के अनेक कारण और कहानियां हैं । कुछ लोग इसका सम्बन्ध भीष्म पितामह की मृत्यु से स्थापित करते हैं तो कुछ की दृष्टि में इस उत्सव का सम्बंध सूर्य को उनके पुत्र शनि के श्राप से है। यह कथा प्रचलित है कि सूर्य को शनि ने कुष्ठ का श्राप इस कारण दिया था कि सूर्य अपनी पत्नी संज्ञा को अधिक महत्व देते थे और शनि की मां छाया की उपेक्षा करते थे ।सूर्य के दो पुत्र थे यम और शनि ।यम ने पिता सूर्य को समझाया तो वे इसके लिए तैयार हुए कि जब शनि मकर में प्रवेश करेंगे तो वे ( सूर्य ) उसके घरजाएंगे । सूर्य के आगमन से प्रसन्न होकर शनि ने यह कहा था कि इस दिन वे ( शनि ) उसके घर को धन धान्य से भर देंगे जो इस दिन सूर्य की पूजा करेगा । भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वर दान था और उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी । जब सूर्य उत्तरायण हुए अर्थात वह (सूर्य ) मकर राशि में गये तब भीष्म पितामह ने मृत्यु का वरण किया ।
यह तो हुए मकर संक्रांति मनाने के धार्मिक कारण हैं । लेकिन इसके प्राकृतिक कारण भी हैं ।
यह उत्सव प्राकृतिक पृष्ठभूमि भी लिए हुए है ।यह सब जानते हैं कि वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को तीन काल्पनिक रेखाओं में बांट रखा है। ये रेखाएं हैं भूमध्य रेखा , कर्क तथा मकर रेखा ।इन रेखाओं में से कर्क रेखा भारत से बहुत दूर है । भूमध्य रेखा अवश्य पास है लेकिन यह भी भारत में स्थित नहीं है । मकर रेखा भारत को दो भागों में बांटती है । इस कारण इसका हमारे जीवन में विशेष महत्व है। यह रेखा मौसम में परिवर्तन का
प्रतीक है ।इस दिन से ग्रीष् ऋतु का धीरे धीरे प्रकृति में प्रवेश होता है ,शीत लहर से मुक्ति मिलती है।मौसम में बदलाव का स्वागत पतंग उड़ाते हुए किया जाता है। यह कहा जाता है कि इन दिनों वायु प्रवाह पतंग बाजी के अनुकूल रहता है । गुजरात की पतंगबाजी मशहूर है । वैसे पतंग सभी क्षेत्रों में उड़ाई जाती है मकर संक्रांति में यह प्रथा है कि खिचड़ी खाई जाती है और गुड तथा तिल का दान किया जाता है ।यह
माना जाता है कि तिल मिली वस्तुयें खाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसी प्रकार की मान्यता खिचड़ी की है । अलग अलग प्रदेशों की अलग-अलग प्रथायें हैं।
यह भी विश्वास है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्यावस्था में खेल खेल में ,कंस द्वारा उनकी हत्या के लिए भेजी गई , लोहिता राक्षसी का वध इस दिन किया था अत: कुछ क्षेत्रों में इस घटना की याद में भी यह उत्सव मनाया जाता है । भारत लोक विश्वास का देश है इस कारण अनेक मान्यताएं उत्सवों को लेकर प्रचलित हैं । लेकिन मकर संक्रान्ति का सम्बन्ध प्रकृति की विविधताओं से है । खरीफ सीजन की समाप्ति
पर यह उत्सव किसानों में आनन्द भर देता है । कहीं यह उत्सव पोंगल के रूप में मनाया जाता है तो कहीं यह लोहड़ी का रूप लेता है । असम में इसे बिहू पर्व के रूप में मनाया जाता है । यह प्राचीन लोक मान्यताहै कि जो पदार्थ जिस काल खंड में होता है उसका सेवन कभी हानि कारक नहीं होता अपितु वह लाभ दायक और स्वास्थ्य वर्धक होता है ।गुड़ और तेल तथा खिचड़ी का मकर संक्रान्ति में उपयोग और दान इसी लोक विश्वास के कारण होता है । चांवल दाल की खिचड़ी इस पर्व की पहचान बन गई है।
मकर संक्रांति का पारंपरिक उत्सव प्रकृति के इन उपादानों के प्रति हमारे कृतज्ञता का परि -चायक है। इस दिन सूर्य उपासना का महत्व है।यह भी उल्लेखनीय है कि आम त्यौहारों के समान यह उत्सव चंद्र वर्ष के अनुसार नहीं मनाया बल्कि सौर चक्र के अनुसार होता है। यह उत्सव प्रति वर्ष १३ ,१४ या १५ जनवरी को होता है। यह भी लोक विश्वास है कि इस दिन से शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं।इसी कारण इस दिन का चयन भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए किया था।
(लेखक- हर्षवर्धन पाठक)
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प्रकृति से जुड़ाव का उत्सव है मकर संक्रांति