हमारा शरीर पंच महाभूतात्मक (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश ) से बना हैं। इस शरीर की रचना में सात धातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र ) तीन दोष (वात, पित्त कफ )और अठारह प्रकार के मल से बना हैं। आयुर्वेद शब्द आयु और वेद से बना हैं। आयु यानी शरीर आत्मा मन और इन्द्रियों के संयोग को आयु कहते हैं और जिस वेद /विज्ञान में इन विषयों का अध्ययन किया जाता हैं उसे आयुर्वेद और आयुर्विज्ञान कहते हैं।
आयुर्वेद में स्वास्थय की परिभाषा अद्वितीय हैं ----
सम दोषः समाग्नि सम धातु मलाः क्रियाः।
प्रस्सनेह आत्मानेन्द्रियः मनः स्व्स्थभिधीयते।।
यानी जिसके सम मात्रा में दोष, धातुएं और १८ प्रकार के मल समान मात्रा के साथ जिसकी आत्मा, मन, इन्द्रियां प्रसन्न हो उसे स्वस्थ्य कहते हैं। वैसे शरीर रोगों का घर होता हैं शरीर में ही शारीरिक और मानसिक रोग होते हैं। रोग कुछ निज और कुछ आगन्तुज होते हैं। निज रोग प्रकृति के साथ/जन्मजात भी होते हैं। और कुछ आगन्तुज होते हैं जो जन्म के बाद और संसर्ग से होते हैं। निजरोग प्रकृति के साथ होते हैं और सामान्यतःप्रकृति के साथ ही ठीक हो जाते हैं पर आगन्तुज रोगों का संक्रमण होने से घातक के साथ जनपदोध्वंशजनक होते हैं।
इसको समझने के लिए एक प्राकृतिक जन्य बाँध होता हैं उसमे विस्तार प्रकृति के अनुसार होता हैं और वह अधिक नुक्सान नहीं पहुंचाता हैं, और जो बाँध बनाये जाते हैं यदि उनमे दरार, या बांध फूटने से बंटाधार होता हैं कारण जल का स्वाभाव बहना /प्रवाह होता हैं और अधिक समय तक रोकना नुकसानदेह होता हैं।
आज की तारीख में जो भी विषाणु मानवजन्य विकसित किये गए हैं उनका इलाज़ नैसर्गिक नहीं होता, कारण उसको नुक्सान के लिए बनाया गया हैं। उसका इलाज़ मानव द्वारा खोजा जाता हैं और खोजने में बहुत समय लगता हैं सफलता और असफलता के बीच झूलता रहता हैं तब तक मृत्यु दर बढ़ जाती हैं, वे सब इलाज रसायनों से किये जाते हैं और किसी किसी में विषम परिस्थितियां निर्मित होती हैं जो जान लेवा तक हो जाती हैं। कोरोना के पहले अनेक संकरण जन्य बीमारियां आयी और उनका इलाज़ नहीं मिला और वैक्सीन ने संतोषजनक समाधान नहीं मिला, कुछ में सफलता जरूर मिली। इस समय कोरोना का इलाज़ नहीं मिल पाया, रोगियों को लाक्षणिक इलाज़ देकर बचाया गया और करीब करी लाखों लोग देश विदेश में मरे।
इसके बाद ब्रिटैन से दूसरा संक्रमण प्रसारित हुआ अब जब तक इलाज़ नहीं मिलेगा मौतों का सिलसिला चलेगा और फिर नै वैक्सीन की खोज होगी, इसी बीच बर्ड फ्लू नामक रोग का पदार्पण हो गया जो मांसके सेवन से हो रहा हैं। अब सरकार मांसाहार खड्यो पर प्रतिबन्ध लगा रही हैं। इससे यह समझ में आया की ये सब रोग हवा, पानी, अग्नि आकाश और पृथ्वी के माध्यम से फेल रहे हैं और इनमे हमारे आहार, खान पान, हमारी रहन सहन आदत, जीवन शैली पर बहुत निर्भर कर रहा हैं ।
आज पूरा विश्व इन कारणों के कारण नए नए रगों से ग्रस्त हो रहे हैं और बचाव के साधन के अलावा चिकित्सा की खोज की जा रही हैं, वैज्ञानिक अपनी अपनी सफलता की हामी भर रहे हैं तो दूसरा उन्हें अमान्य कर रहा हैं। एक बात यहाँ जरूर कहना चाहूंगा की कोई भी औषधि हर व्यक्ति को हर देश में लाभकारी नहीं होती कारण औषधि का प्रभाव व्यक्ति, प्रकृति, जलवायु पर निर्भर करती हैं, जैसे कोरोना का संक्रमण श्वाश जन्य होता हैं और सर्दीले देशों में इसका संक्रमण बहुत शीघ्रता से फैला और दूसरा आयुर्वेद औषधियां वातिक पित्तज कफज प्रकृति के साथ आयु वर्ग के हिसाब से किया जाता हैं तब लाभकारी होती हैं।
आज हम भारत देश की बात करे तो कश्मीर क्षेत्र में अलग औषधियां प्रभावकारी होती हैं कुछ औषधियां मध्य या उत्तर क्षेत्र में, कुछ उत्तर पूर्व में तो कुछ दक्षिण क्षेत्र में प्रभावकारी होती हैं। इस समय जो संक्रमण आ रहा हैं उसमे सबसे अधिक प्रभाव हमारे आहार के कारण हो रही हैं। रोगों का मुख्य कारण विषम आहार विहार होता हैं और उसके बाद हीन योग, अतियोग और मिथ्या योग का उपयोग होना।
विगत एक वर्ष में हमें कोरोना रोग से बहुत सीख मिली, जैसे क्या खाये, कैसे रहें, संपर्क कितना लाभदायक या हानिकारक होता हैं, यह भी समझ में आया की इस दौरान धन, जन कोई मदद कितनी मदद देता हैं। इस समय हमें अपना आहार शाकाहार अपनाना चाहिए कारण सूचनओं के आधार पर मांसाहार, शराब इन रोगों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, इस समय सादा जीवन उच्च विचार की जरुरत हैं। सात्विक आहार लेना और रसायन युक्त आहार का सेवन न करना लाभकारी हैं।
प्रकृतिजन्य रोगों का इलाज़ संभव हैं पर आगन्तुज रोगों के लिए पहले शोध, फिर इलाज मिलता हैं तब तक अनेकों की मृत्यु हो जाती हैं। हम जितने अधिक प्रकृति के नज़दीक रहेंगे उतने सुरक्षित होंगे। इस बात को हम इस तरीके से समझ सकते हैं जैसे हम बाह्य शत्रु से शास्त्रों के साथ लड़ सकते हैं पर निजियों से लड़ना कठिन होता हैं, इसलिए हमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की जरुरत हैं और इसके लिए हमें ऐसे खाद्यों का सेवन अनिवार्य हैं जो हमारे लिए लाभप्रद हो।
(लेखक- विद्यावाचस्पति वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन )
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