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दिल्ली के तीेनों नगर निगम की हालत राम भरोसे

दिल्ली के तीेनों नगर निगम की हालत राम भरोसे

दिल्ली आज से कुछ वर्ष पहले दिल्ली की पूर्व  मुख्यामंत्री श्रीमति शीला दीक्षित का दिल्ली नगर निगम का विभाजन कर तीन अलग-अलग नगर निगम बनाने का एकमात्र उद्देश्य दिल्ली की जनत्ता को बेहतर सिविक सेवाएं प्रदान करना था। विभाजन के कारण तीनों नगर निगमों का खर्च भी बढ़ गया। इस खर्च की पूर्ति के लिए दिल्ली सरकार नगर निगमों को उनकी आवश्यकता के अनुसार फंड प्रदान करती है। 
नगर निगमों के अधीन कुछ ऐंसे संस्थान हैं, जहां पर सेवाएं आम जनत्ता को मुफ्त में दी जाती हैं। जैसे बड़े-बड़े अस्पताल, डिसपेन्सरी, प्राइमरी स्कूल आादि। क्योंकि तीनों नगर निगमों में इस प्रकार के संस्थानों की संख्या अलग-अलग है, उसके अनुसार तीनों के खर्चे भी अलग-अलग हैं। इन्हीं खर्चों को पूरा करने के लिए निगमों की डिमान्ड के अनुसार दिल्ली सरकार फंड मुहया करती है। जब तक शीला दीक्षित मुख्यामंत्री थीं सब कुछ ठीक-ठाक से चल रहा था, लेकिन जैसे ही दिल्ली में दूसरी पार्टी की सरकार बनीं ये व्यवस्था चरमरा गई। दिल्ली में सरकार और नगर निगम मे दो अलग-अलग पार्टियों की सरकारें शासन करती हैं। हर समय दोनों पार्टियां एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रहतीं हैं और इस कारण नगर निगमों को फंड के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जिस कारण निगमों में वित्तीय संकट हर समय रहता है। जिसका खामियाजा इनके कर्मचाारियों, ठेकेदारों, और विभिन्न सेवाएं देने वालों को भुगतना पड़ रहा है। नगर निगमों की वित्तीय हालत इतनी खराब है कि इनके कर्मचारियों, पेंशनरों, डाक्टरों, टीचरों आदि को कई-कई महीनों तक सैलरी नहीं मिलती। ठेकेदारों और निगमों को विभिन्न सेवाएं देने वालों को भी 2 साल से भुगतान नहीं किया गया। आज हालात इतने बदत्तर हैं कि कर्मचारी अपना कामकाज छोडकर सड़कों पर हडताल कर रहे हैं, सफाई कर्मचारी सफाई नहीें कर रहे हैं, जिससे देश की राजधानी दिल्ली कूड़े के ढेर में तबदील हो रही है, जहां देखो हर जगह कूड़े के ढेर ही ढेर हैं। करोना के इस समय इस तरह की गंदगी जानलेवा हो सकती है। इस गंदगी के कारण मच्छर मखियां पनपने से कई बीमारियां फैल सकती है। कर्मचारी तो हडताल करके दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री और आयुक्त के पास अपना रोष प्रकट कर लेते हैं, लेकिन वे सभी ठेकेदार और विभिन्न सेवा प्रदाता किसके पास जाए जो इन निगमों में काम कर रहा हैं, उनकी सुनने वाला तो कोई भी नहीं है। न तो उनसे मिलने के लिए कोई समय देता है और न ही कोई इनके बारे में सोचता है। देश के राष्ट्रªपति, प्रधानमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री और विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधि हर रोज दिल्ली की सड़को का प्रयोग करते हैं, क्या उन्हें ये सब नहीं दिखाई देता। दिल्ली में राज्य और नगर निगमों में दोनों सरकारें जा अलग-अलग पार्टियों की हैं जनता की समस्याओं को नजरअन्दाज कर अपनी-अपनी राजनितिक रोटियां सेकने में लगी हुंई हैं। इन्हें दिल्ली की जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं। इनके कारण दिल्ली के तीनो नगर निगम अब राम भरोसे ही चल रहे हैं।

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