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पर उपदेश कुशल बहुतेरे.....राजनेताओं ने वैक्सीन से परहेज क्यों किया....?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे.....राजनेताओं ने वैक्सीन से परहेज क्यों किया....?

हर समय हर मामले में सब को पीछे ढकेलकर बिना अपनी बारी के आगे आने वाले हमारे आधुनिक कर्णधार राजनेता कोरोना वैक्सीन लगाने के मामले में अपनी बारी का बहाना बनाकर पीछे क्यों रह रहे है, यह रहस्य किसी के भी समझ में नहीं आ रहा है, जो नेता इस वैक्सीन को किसी हानि या ‘‘आॅफ्टर इफैक्ट’’ विहीन बताते नहीं थक रहे वे स्वयं इस वैक्सीन से दूरी बनाकर रख रहे है, यह कहां तक उचित कहा जा सकता है? क्या यह अच्छा होता राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री जी तथा राज्य स्तर पर मुख्यमंत्रीगण पहली वैक्सीन लगवाकर देश तथा राज्यों में इस अभियान की शुरूआत करते, किंतु शुरू से ही इस अभियान की योजना ही ऐसी तैयार की गई जिसके तहत पिछले एक साल से स्वास्थ्य सेवा में अपने आपके जीवन को समर्पित कर देने वाले वर्ग को प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर खड़ाकर दिया गया, इनके बाद दूसरे वर्ग में पचास वर्ष की उम्र से अधिक वाले श्रेष्ठी वर्ग या बुजुर्गों को रखा गया और फिर तीसरे क्रम पर सामान्य वर्ग को रखा गया जिसमें राजनेतागण भी शामिल हो गए, क्या यह कुछ अजीब नहीं लग रहा कि अपने आपको देश में सर्वोपरी मानने और मनवाने वाले राजनेता आज इस स्वास्थ्य रक्षक अभियान में जानबूझकर सबसे पीछे पंक्ति में खड़े हो गए है, यह उनकी कथनी और करनी में अंतर क्यों? इस वैक्सीन की खासीयत गिनाने वालों ने ही इसकी खासीयत की उपेक्षा की और स्वयं को इससे दूर रखा? यह इस देश और उसके वासियों के साथ कैसा न्याय है? क्या उनके दिल-दिमाग में इस वैक्सीन को लेकर कोई शंका या संदेह था? 
खैर, जो भी हो! किंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि यह वैक्सीन जैसे कि त्रैता युग में हनुमान जी द्वारा लक्ष्मण जी का जीवन बचाने के लिए लाई गई संजीवनी बूटी कहा जा रहा है, यह संजीवनी तो तब साबित होगी, जब इसके दोनों डोज़ दे दिए जाएगें और देश से कोरोना की विदाई हो जाएगी? 
वैसे समग्र रूप से देखा जाए तो पूरे देश के डेढ़ सौ करोड़ नागरिकों को यह वैक्सीन लगाना कोई सरल कार्य नहीं है, देश में इस वैक्सीन के शुरूआती दिन केवल दो लाख लोगों को ही यह टीका लग पाया तो अंदाजा लगा लीजिए कि डेढ़ सौ करोड़ लोगों को यह टीका कब तक लग पाएगा, पूरे देश में तीस करोड़ स्वास्थ्य एवं सफाई कर्मी है, प्राथमिकता में उन्हें टीका लगना है, दोनों तरह की वैक्सीन का उत्पादन भी फिलहाल इतना नहीं है कि इस कार्य में शीघ्रता की जा सके फिलहाल जुलाई तक यदि पहला चरण पूर्ण हो जाता है तो वह भी बहुत बड़ी बात व सरकार की सबसे बड़ी सफलता होगी? 
वैसे फिलहाल ये वैक्सीन सिर्फ उम्मीद की किरण के रूप में ही देखी जा रही है, क्योंकि विश्व का कोई भी वैज्ञानिक आज ताल ठोंक कर यह कहने की स्थिति में नहीं है कि ये वैक्सीन ही कोरोना का सफलतम बचाव है, अभी सिर्फ कोरोना के घटाटोप में वैक्सीन का लट्ठ मारा जा रहा है। 
.....और फिर सबसे बड़ी बात यह है कि वैक्सीन के उपयोग को लेकर आम हिचकिचाहट भी दूर नहीं हो पाई है, इस ‘‘आम’’ में चूंकि हमारे राजनेता भी शामिल हो गए है, इसलिए वैक्सीन को लेकर आम आशंका कम नहीं हो पा रही है, यदि हमारे ये आधुनक कर्णधार आगे आकर सबसे पहले इसका उपयोग करते तो इस वैक्सीन को लेकर फैलाई गई आम भ्रांति भी खत्म हो गई होती? फिर सबसे अहम् सवालिया भ्रांति इस वैक्सीन की कीमत को लेकर भी है, केन्द्र या राज्य सरकार अपने खर्च पर आम जनता को निःशुल्क यह टीका लगाने को तैयार नहीं है और इस टीके को ‘‘ट्रायल’’ बताने वाली निर्माता कम्पनियां इसकी भारी कीमत वसूल रही है, इस तरह इस वैक्सीन के उपयोग के साथ इसकी कीमत को लेकर भी भारी भ्रांति फैली हुई है, जिसे सरकार ने दूर करने का प्रयास नहीं किया है। 
इस प्रकार कुल मिलाकर सरकार ने जिस अभियान की बढ़ चढ़कर प्रशंसा की और इसके सायें में देश को कोरोना से सुरक्षित बताया, उसी के बारे में व्याप्त भ्रांतियों को दूर नही किया, अभी भी समय है इस अभियान की सर्वोकृष्ठ सफलता के लिए सरकारों को पूरे देश में यह टीका निःशुल्क लगवाना चाहिए और राजनेताओं को आगे आकर एक अच्छा व अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
 (लेखक- ओमप्रकाश मेहता )

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