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बेटियो के लिए वरदान बने लोटनी,फतेहपुर बेरी गांव! (बालिका दिवस 24 जनवरी पर)  

बेटियो के लिए वरदान बने लोटनी,फतेहपुर बेरी गांव! (बालिका दिवस 24 जनवरी पर)  

देश का लोटनी गांव 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के नारे को सार्थक कर सकता है।हरियाणा राज्य का यह गांव  लिंगानुपात के मामले में सबसे अच्छा है । सन 2013 के सर्वे के अनुसार, यहां जन्म के समय एक हज़ार बेटो पर 1909 बेटियां हैं। 
जबकि हरियाणा के ही हरिपुर गांव को लिंगानुपात के मामले में प्रदेश का सबसे पिछड़ा गांव माना जा सकता है। यहां एक हज़ार लड़कों पर सिर्फ 250 लड़कियां ही हैं। वही दिल्ली के निकट फतेहपुर बेरी एक ऐसा गांव भी है,जहां के गांव लोगो ने पूरे देश के लिए एक मिशाल पेश की है. इस गांव के लोगों ने सरकार के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान से  प्रेरित होकर अपनी जमीनें  दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) को  दान कर दी है।  ताकि दिल्ली में पढ़ने आई बेटियो को  उच्च शिक्षा का फायदा मिल सके।
फतेहपुर बेरी गांव के लोगों ने देश के  'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान को साकार करने के लिए अपनी जमीन दान में देकर एक डिग्री कॉलेज की व्यवस्था कर दी है. गांव वालों ने अपने क्षेत्र में महिला डिग्री कॉलेज बनाने के लिए 40 बीघा जमीन दिल्ली विश्वविद्यालय को दान में दी है.जो प्रेरणादायक है।
इस कॉलेज के निर्माण का उद्देश्य दिल्ली से जुड़े दूरदराज के गांवों की छात्राओं को ऐसा कॉलेज उपलब्ध कराना था ,जिससे उन्हें पढ़ाई के लिए इधर उधर भटकना न पड़े.
 गांव की जमीन पर कॉलेज बनाने. साथ ही कॉलेज परिसर में हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग ग्रामीणों द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से की गई है, ताकि छात्राओं को रहने की समस्या न हो. और न हीं कॉलेज के स्टाफ और फैकल्टी के लोगों के लिए कोई परेशानी होने पाए।
एक तरफ बेटियो के लिए गांव स्तर पर प्रेरक प्रयास हो रहे है।वही भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल औसतन 90 हजार बच्चों के गुम हो जाने की रपट थानों तक पहुंचती है ,जिनमें से 30 हजार से ज्यादा का पता ही नहीं लग पाता। संसद में पेश एक आंकड़े के अनुसार, सन 2011-14 के बीच सवा तीन लाख बच्चे लापता हो गये थे। जब भी बच्चों के गुम होने के तथ्य सामने आते हैं, तो सरकार समस्या के समाधान के लिए नए उपाय करने की आश्वासन नुमा बातों के अलावा कुछ नहीं कर पाती। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर साल 24,500 बच्चे गुम हो जाते हैं। सबसे ज्यादा बच्चे महाराष्ट्र में गुम होते है। यहां 2011-14 के बीच 50,947 बच्चों के गुम हो जाने की खबर पुलिस थानों तक पहुंची थी। मध्य प्रदेश से 24,836, दिल्ली से 19,948 और आंध्र प्रदेश से 18,540 बच्चे लापता हुए थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि गुम हुए बच्चों में बेटियों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। सन् 2011 में गुम हुए कुल 90,654 बच्चों में से 53,683 लडकियां थीं। सन् 2012 में कुल गुमशुदा 65,038 में से 39,336 बच्चियां थीं, 2013 में कुल 1,35,262 में से 68,869 और सन् 2014 में कुल 36,704 में से 17,944 बच्चियां थीं। यह बात भी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है कि भारत में लगभग 900 संगठित आपराधिक गिरोह हैं जिनके सदस्यों की संख्या पांच हजार के आसपास है। जो बच्चों से सम्बंधित अपराध में संलिप्त है।जिनका निशाना अधिकांश लड़कियां ही होती है।
आज भी जन्म के बाद बेटियों को कई तरह के भेदभाव से गुजरना पड़ता है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, खान-पान, अधिकार आदि दूसरी आवश्यकताओं , जो लड़कियों को भी प्राप्त होनी चाहिये,उन्हें नही मिल पाती है।वास्तव में महिलाओं को सशक्त करने के बजाय अशक्त किया जा रहा है। महिलाओं को सशक्त बनाने और जन्म से ही अधिकार देने के लिये सरकार ने कई योजनाओ की शुरुआत की हुई है। महिलाओं के सशक्तिकरण से सर्वांगीण प्रगति होगी खासतौर से परिवार और समाज में सुधार आएगा। लड़कियों के लिये मानव की नकारात्मक पूर्वाग्रह को सकारात्मक बदलाव में परिवर्तित करने के लिये ये योजनाए एक रास्ता हो सकता है।  संभव है कि इस तरह बेटियो के उत्थान सम्बन्धी योजनाओ से लड़कों और लड़कियों के प्रति भेदभाव खत्म हो जाये तथा कन्या भ्रूण हत्या का अन्त करने में सफलता प्राप्त हो।
 हमारा मूल मंत्र हो ‘बेटा बेटी एक समान’
“आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर हम पेड़ भी लगा सकते है।” 
बेटी का ख्याल रखने से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है।  लोगों को  संवेदनशील और जागरूक बनाकर तथा सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया जा रहा है।सरकार भी कन्या शिशु के प्रति समाज के नजरिए में परिवर्तनकारी बदलाव लाने का प्रयास कर रही है। प्रधान  पहल की शुरूआत की।  भारत और दुनिया के कई देशों के लोगों ने बेटियों को अपना अभिमान समझा और यह उन सबके लिए एक गर्व का अवसर बन गया जिनकी बेटियां हैं।
'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 'योजना के तहत पिथौरागढ़ जिले ने बालिका शिशु को बचाने और उनकी शिक्षा के विभिन्न उपाय किए हैं। जिला कार्यबल और ब्लॉक कार्यबल गठित किए गए हैं। इन संगठनों की बैठकें आयोजित की गई हैं और शिशु लिंग अनुपात से संबंधित स्पष्ट रूपरेखा तैयार कर ली गई है। बड़े स्तर पर समुदाय के लोगों से संपर्क करने के लिए और इस योजना का व्यापक रूप से प्रचार करने के लिए जागरूकता बढ़ाने से संबंधित कार्यकिलाप चलाए जा रहे हैं। विभिन्न स्कूलों, सैनिक स्कूलों तथा सरकारी विभागों कर्मचारियों इत्यादि की प्रमुख भागीदारी से विभिन्न रैलियां आयोजित की गई हैं। जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से पिथौरागढ़ में नुक्कड नाटक भी आयोजित किए जा रहे हैं। ये नुक्कड नाटक केवल गांव में ही नहीं बल्कि बाजारों में भी आयोजित किए जाते हैं ताकि दर्शकों के एक बड़े वर्ग को जागरूक बनाया जा सके। कहानियों के मंचन के माध्यम से लिंग आधारित गर्भपात की समस्या के प्रति लोगों को जागरूक बनाया जा रहा है। शिशु बालिका से संबंधित मुद्दों तथा उसे अपने जीवन काल में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है उन्हें इन नुक्कड नाटकों में बहुत अच्छी तरह से दिखाया जाता है। हस्ताक्षर अभियान, संकल्प और शपथ समारोह के माध्यम से स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के 700 विद्यार्थियों और अनेक सैन्य कर्मियों तक बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश पहुंचा है।वही पंजाब के मानसा जिले ने एक पहल शुरू की है जिसमें वह जिले के लोगों को अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं। ‘उडान – सपने दी दुनिया दे रूबरू के तहत मानसा में छठी से बारहवीं कक्षाओं की छात्राओं के बीच चलाया जा रहा है।जिससे बेटियों को पढ़ने व आगे बढ़ने में मदद मिल रही है।
 (लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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