अंधकार में हम साहस से, दीप जलाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
चंद्रगुप्त की धरती है यह,
वीर शिवा की आन है
राणाओं की शौर्य धरा यह,
पोरस का सम्मान है
वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
शीश कटा, क़ुर्बानी देकर,
जिनने वतन सजाया
अपने हाथों से अपना ही,
जिनने कफ़न सजाया
भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
ख़ून बहा,क़ुर्बानी देकर,
जिनने फर्ज़ निभाया
वतनपरस्ती का तो जज़्बा,
जिनने भीतर पाया
हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
सिसक रही थी माता जिस क्षण,
तब जो आगे आए
राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह
बिस्मिल जो कहलाए
ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण गँवाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
आज़ादी पाई जो हमने,
उसको पोषित करना
हर जन,नित सुख से रह पाए,
सबका दुख है हरना
हर भारत के वासी में हम,देशभाव पाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
संविधान है मान हमारा,
जन-जन का अरमान है
भारत माँ का वंदन है वह,
जन-गण-मन का गान है
आर्यवर्त की पुण्यभूमि को, तीन रंग भाते हैं।
आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे )