डेढ माह से अधिक हो गए नाहक तने तने ।
आठ चक्र से अधिक हुए चर्चा करते करते
कड़ी ठंड में घर से बाहर सड़कों पर रहते
हल न समस्या का निकला कोई आपस में लड़ते
नये नए मुद्दे और उलझते जाते दिन बढते
नाम किसानों का आन्दोलन " किन्तु बात कुछ और
घुस आए वे , काम है जिनका लड़ना ही हर ठौर
भिन्न बहाने करते प्रस्तुत , मन में है दुर्भाव
कई कारणों से बढता आया द्वेष दुराव ।
हिंसा से कब मिला कभी भी कोई सार्थक हल
और समस्या बढती जाती नई-नई प्रतिपल
हल पाने होती जब भी है मन में में सच्ची चाह
आपस में सद्भाव समन्वय से मिल जाती राह
मन में मैल जहाँ भी होता, होती ही नित भूल
सोच अगर सीधी सच्ची हो तो खिलते हैं नित फूल
हिंसा से हुई कभी न होती कोई समस्या दूर
जहां अहिंसक भाव है मन में वहीं शान्ति भरपूर
मन को स्वतः टटोलो अपना और करो वह बात देश के निर्दोषी लोगों को हो न कोई व्याघात
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(लेखक-प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘)