श्रीलंका में पवित्र ईस्टर पर हुए धमाके के बाद दहशत बरकरार है पर जनजीवन अब सामान्य गति से आगे बढ़ रहा है। लोगों को ऐसा लग रहा है कि शायद जीवन के सबसे बुरे दौर को पीछे छोड़कर वह आगे निकल चुके हैं। जब लिट्टे का खात्मा श्रीलंका में हुआ था तब भी वहां के निवासियों को लगा था कि दशकों के गृहयुद्ध जैसी हिंसक परिस्थितियां अब खत्म हो गई हैं। हालांकि, ईस्टर हमले में 253 लोगों की मौत और सैंकड़ों लोगों के घायल होने की घटना ने लोगों को सकते में डाल दिया। इस हिंसक आतंकी वारदात के बाद हर श्रीलंकाई नागरिक के मन में एक ही सवाल है कि हमारा देश श्रीलंका ही क्यों?
यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार, सुरक्षा एजेंसी और सरकारी संगठनों से लेकर आम आदमी तक पूछ रहे हैं। हालांकि, इस भयानक घटना से उबरकर इस द्वीप देश के लोग फिर से जिंदगी को संभालने की कोशिश में जुट गए हैं। हालांकि, इस वक्त ज्यादातर अंगुली इंटेलिजेंस विभाग की असफलता की ओर ही उठ रही है। साथ ही इंटेलिजेंस सूचना के बाद भी राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने समय पर एक्शन नहीं लिया, इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। श्रीलंका आर्मी के पूर्व कमांडर आरएम दयान रत्नायक का कहना है, 'घटना ने इस लोगों के विश्वास को बुरी तरह से झिंझोरकर रख दिया है। इस अविश्वास को और बढ़ाने का काम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के बीच चल रही राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने बढ़ाया है।' हमले से 2 सप्ताह पहले ही भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी ने श्रीलंकाई सरकार को चेतावनी जारी की थी।
तमिलनाडु के 9 मुस्लिम युवाओं से हाल ही में श्रीलंका घटना को लेकर संदिग्ध गतिविधियों के अंदेशा पर हिरासत में लेकर पूछताछ हुई है। इन युवकों के श्रीलंका के आतंकी संगठन तौहीद जमात के आतंकी और धमाकों के मास्टरमाइंड जाहरान हाशिम से संपर्क होने के शक में पूछताछ की गई है। अभी तक मिली सूचना के अनुसार, हाशिम तमिलनाडु और केरल के कई युवाओं के साथ टेलिग्राम के जरिए संपर्क में था। आतंकी संगठन आईएसआईएस के मीडिया विंग अल फुरकान ने भी दावा किया है कि फेसबुक के जरिए भारतीय युवा संपर्क में थे।
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श्रीलंका में ईस्टर पर हुए धमाके के बाद अभी भी दहशत, सामन्य नहीं हुए लोग