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राजधानी के आवारा कुत्ते और कितनी जानें लेंगे आक्रामक कुत्तों को मारने का नहीं है प्रावधान

राजधानी के आवारा कुत्ते और कितनी जानें लेंगे आक्रामक कुत्तों को मारने का नहीं है  प्रावधान

राजधानी में आवारा कुत्तों का आतंक इतना बढ गया है कि लोगों का रास्ता चलना दूभर हो गया है। दिन में तो ये थोडा शांत रहते हैं लेकिन रात के समय में और हिंसक हो जाते हैं। इन हिंसक कुत्तों को मारने का भी कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में लोग जान हथेली पर लेकर चलने को मजबूर है। पता नहीं रात के समय किस जगह पर कुत्ते आक्रमण कर दे। अवधपुरी इलाके में शुक्रवार शाम को छह साल के मासूम संजू जाटव को आवारा कुत्तों द्वारा नोच-नोचकर मार डालने की घटना ने शहरवासियों को झकझोर दिया है। इस घटना के बाद लोग खुद को आवारा कुत्तों से असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। शनिवार को रीगल टाउन के पीछे शिव संगम नगर में एक ओर मृतक मासूम को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था तो दूसरी ओर निगम अमला कुत्तों की धरपकड़ में जुटा था। मृत संजू को देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं। लोगों के मन में बस यही सवाल था कि आखिर कितनी जानें और गंवानी पड़ेंगी? खूंखार आवारा कुत्तों की सुरक्षा के लिए एक तरफ पशु सुरक्षा के कानून हैं और दूसरी तरह नागरिकों की जान पर बन आई है। निगम अमले की दो टीमों ने दोपहर तक करीब 15 कुत्तों को पकड़कर एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटर पहुंचाया। इनकी नसबंदी और एंटीरेबीज वैक्सीनेशन के बाद डॉग रूल्स के प्रावधानों के तहत उन्हें वापस उसी स्थान पर तीन-चार दिनों में छोड़ दिया जाएगा। सरकार के अधिकारियों का कहना है कि आक्रामक कुत्तों को मारने का प्रावधान नहीं है। बता दें कि फरवरी 2018 में पुराने शहर के डीआईजी बंगले के पास मासूम रजा को कुत्तों ने नोचकर मार डाला था। इसके एक साल बाद यह दूसरी बड़ी घटना है। उस दौरान खूब हंगामा हुआ और निगम अमले ने आसपास के कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाया था। परिषद में हंगामें के बाद एबीसी सेंटर बढ़ने और शेल्टर होम्स बनाने पर सहमति बनी, लेकिन जिला प्रशासन से जमीन नहीं मिली। अब एक साल बाद दूसरी बड़ी घटना हो गई।
     नवंबर 2014 में इंदौर शहर के सबसे बड़े इंदौर के एमवाय अस्पताल में चूहों ने मरीजों को कुतरना शुरू कर दिया था। मरीजों की जान बचाने के लिए इंदौर के तत्कालीन संभागायुक्त संजय दुबे ने चूहों को मारने के निर्देश दिए थे। चूहों से निपटने के लिए मैनेजमेंट ने पेस्ट कंट्रोल कंपनी को 55 लाख रुपए का कॉन्ट्रेक्ट दिया था। इसके बाद 10 हजार चूहों को मारा गया था। इसके बाद एनिमल संरक्षण से जुड़ी समितियों का प्रशासन पर कार्रवाई के विरोध में दबाव बनाने का प्रयास किया था। लेकिन प्रशासन ने किसी की एक नहीं सुनी। इससे पहले चूहों से मुक्ति दिलाने के लिए 1994 में अभियान चलाकर 12 हजार चूहों को एक साथ जलाया गया था। मई 2018 में भोपाल में घोड़ों में ग्लैंडर्स नामक बीमारी फैल गई थी। जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने नगर निगम के सहयोग से घोड़ों के नमूने लिए थे। इसके बाद ग्लैंडर्स से ग्रसित घोड़ों को जहर देकर मारने का अभियान शुरू किया गया था। यह बीमारी घोड़ों से मानव तक पहुंचती है। इस संबंध में चेरिटेबल वेलफेयर सोसायटी फॉर ह्यूमन काइंड एंड एनिमल की अध्यक्ष नीलम कौर का कहना है कि नगर निगम एबीसी प्रोग्राम चला रहा है, लेकिन कुत्तों के आक्रामक होने की वजह उन्हें खाना-पानी नहीं मिलना है। भूख और प्यास से गर्मी में कुत्ते चिड़चिड़े हो जाते हैं। पहले लोग घर का बचा हुआ खाना मवेशियों व कुत्तों को देते थे, अब यह प्रवृति कम हो गई है। स्वच्छता अभियान में मवेशियों व कुत्तों को खाने को नहीं मिल रहा। इंसान तो खाना और पानी का इंतजाम कर लेता है, लेकिन ये कहां जाएं। इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इस तरह की समस्याएं बढ़ेंगी। हमने तो पहले ही महापौर, कलेक्टर से शेल्टर होम्स की जगह मांगी है, जिसमें आक्रामक कुत्तों व घायल मवेशियों को रखने की व्यवस्था हमारी समिति करेगी। लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। सभी को जीने का हक है। उधर नगरीय विकास एवं विभाग  प्रमुख सचिव संजय दुबे का कहना है कि पशु प्रेमियों के विचारों का हम सम्मान करते हैं कि पशुओं की हत्या न हो। लेकिन जब जनता को इनसे खतरा हो जाए तो दोनों में बैलेंस बनाना जरूरी है। कानून है कि ऐसे आवारा कुत्ते जो हमला कर रहे हैं उन्हें मार नहीं सकते। लेकिन संविधान में लोगों की सुरक्षा का अधिकार दिया गया है। कुत्तों की संख्या बढ़े नहीं इसके लिए अधिक से अधिक नसबंदी सुनिश्चित हो। कानून आड़े आता है, इसलिए नई नीति बनाएंगे। मासूम की घटना दुखद है। जनता की सुरक्षा हमारे लिए सबसे अहम है।

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