आम तौर पर देखा जाता है कि महिलाएं मन से कोमल होती हैं और जरा सी बात पर रोने लगती हैं पर यह कमजोरी नहीं है।
अगर हंसना सेहत के लिए अच्छा है तो रोना भी सेहत के लिए खराब नहीं होता है। हंसने के जितने फायदे हैं, उससे कम रोने के भी नहीं हैं। आंसू भी तीन प्रकार के होते हैं, रेफलेक्सिव, कंटीनिअस, इमोशनल, क्या आपको पता है कि केवल इंसान ही तीसरी तरह से रो सकते हैं। इमोशनल क्राइंग बहुत ही फायदेमंद है।
मूड होता है अच्छा
एक अध्ययन के अनुसार कुछ लोगों को भावनात्मक फिल्म दिखाई गई उसके बाद फिल्म देखकर रोने वाले और नहीं रोने वालों को अलग-अलग बांटा गया। कुछ लोगों पर भावनात्मक तौर पर कोई असर नहीं हुआ जबकि कुछ लोग बुरी तरह रोए हालांकि, 20 मिनट के भीतर रोने वाले लोग सामान्य अवस्था में आ गए और 90 मिनट बीतने के बाद रोने वाले लोग, नहीं रोने वाले लोगों से ज्यादा बेहतर महसूस कर रहे थे।
तनाव होता है कम
हम रोने के बाद इसलिए अच्छा महसूस करते हैं क्योंकि इससे तनाव के दौरान उत्पन्न हुए कैमिकल्स बाहर निकल जाते हैं। आंसुओं में एसीटएच होता है जो तनाव के दौरान बढ़ता है।
यह जरूरी है कि हम कभी-कभार रोएं। इससे तनाव कम होता है और हार्ट और मस्तिष्क को क्षति नहीं पहुंचती है। हमें अपनों बच्चों को रोने से नहीं रोकना चाहिए। हमें खुश होना चाहिए कि उनके अंदर यह क्षमता है.
आंखें होती हैं ठीक
बिना भावुक हुए रोने से भी सेहत को फायदे हैं। जब आप प्याज काटते हैं तो प्याज से एक रसायन निकलता है और आंखों की सतह तक पहुंचता है। इससे सल्फ्यूरिक एसिड बनता है। इससे छुटकारा पाने के लिए आंसू ग्रन्थियां आंसू निकालती है जिससे आंखों तक पहुंचा रसायन धुल जाता है. आंसुओं में लाइसोजाइम भी होता है जो एंटीबैक्टीरियल और एंटी वायरल होता है। ग्लूकोज से आंखों की सतह की कोशिकाएं मजबूत होती हैं.
आंसू शरीर के भीतर अश्रु नलिकाओं से होकर नासिका तक पहुंचते हैं जिससे नाक में जमा गंदगी साफ हो जाती है। रोने के दौरान अक्सर नाक बहने लगती है जिसके पीछे यही वजह है। रोने से नाक में जमा बैक्टीरिया और गंदगी बाहर निकल जाती है। डॉक्टरों के मुताबिक, महिलाएं महीने में औसतन 5.3 बार रोती हैं महिलाओं में प्रौलैक्टीन नामक हार्मोन होता है जो रोने के लिए प्रेरित करता है।
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