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शरीर से मॉरीशस के और आत्मा से हिंदी के रहे अभिमन्यु अनत 

शरीर से मॉरीशस के और आत्मा से हिंदी के रहे अभिमन्यु अनत 

मॉरीशस में जन्म लेने व वही रहने पर भी मॉरीशस की मात्र भाषा को छोड़कर हिंदी साहित्य के बड़े साधक रहे अभिमन्यु अनत एक ऐसा जीवन्त उदाहरण है जिन्होंने कबीर की तरह स्कूली शिक्षा के बजाए साहित्यकारों को जीकर और उन्हें आत्मसात करके साहित्य की पगडंडियों पर चलना सीखा।इसी अनवरत साधना के बल पर वे एक परिपक्व साहित्यकार के रूप में लब्धप्रतिष्ठ हुए।हालांकि उनका जन्म 9 अगस्त सन1937 को मारीशस की धरती पर हुआ परन्तु उनके शरीर का खून हिंदुस्तानी होने के कारण उनका दिल भारत के लिए ही धड़कता रहा।अभिमन्यु अनत ने हिंदी भाषा मे
 उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध, बाल साहित्य, यात्रावृत्तान्त
लिखकर हिंदी साहित्य को उन्नत किया।उनके द्वारा लिखे गए उपन्यासो में ,लहरों की बेटी, मार्क ट्वेन का स्वर्ग, फैसला आपका, मुडि़या पहाड़ बोल उठा और नदी बहती रही, आंदोलन, एक बीघा प्यार, जम गया सूरज, तीसरे किनारे पर, चौथा प्राणी, लाल पसीना, तपती दोपहरी, कुहासे का दायरा, शेफाली, हड़ताल कब होगी, चुन-चुन-चुनाव, अपनी-अपनी सीमा, गांधीजी बोले थे, शब्द, भंग, पसीना बहता रहा, आसमान अपना आँगन, अस्ति-अस्तु, हम प्रवासी, अपना मन उपवन शामिल है ।वही 
कहानी श्रंखला भी उनकी कम नही है।उनकी कहानियों में खामोशी की चीत्कार, एक थाली समंदर, इनसान और मशीन, वह बीच का आदमी, अब कल आएगा यमराज शामिल है।जबकि उनके नाटको में विरोध, तीन दृश्य, गूँगा इतिहास, रोक दो कान्हा चर्चित रहे तो यात्रा संस्मरण रूप में, यादों का पहला पहर  ख़ासा मशहूर रहा।साथ ही उनके कविता संग्रह , गुलमोहर खौल उठा, नागफनी में उलझी साँसें, कैक्टस के दाँत की रौचकता देखते ही बनती है।
तभी तो उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, यशपाल पुरस्कार, जनसंस्कृति सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान का सम्मान प्राप्त हुआ।
 अभिमन्यु के पूर्वज बीते जमाने मे अंग्रेज़ों द्वारा गन्ने की खेती के लिए श्रम करने हेतु लाये गए थे। मज़दूरों के रूप में मॉरीशस आये भारतीय अंतत: वहीं पर बस गए।  अभिमन्यु की भारतीय सोच ने उन्हें हिन्दी की सेवा के लिए प्रोत्साहित किया और उन्होंने अपने पूर्वजों की मातृभूमि का ऋण अच्छी तरह से चुकाया है। वे मॉरीशस धरती के भारतीय कथा-शिल्पी कहे जाते हैं। उन्होने हिन्दी कविता को एक नया आयाम दिया। अठारह वर्षों तक हिन्दी विषय मे अध्यापन करने के बाद तीन वर्षों तक अभिमन्यु अनत युवा मंत्रालय में नाट्य प्रशिक्षक रहे। मॉरीशस के ‘महात्मा गांधी इंस्टीटयूट’ में भाषा प्रभारी के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद  अभिमन्यु अनत ने वहीं के ‘रवींद्रनाथ टैगोर इंस्टीटयूट’ का निदेशक पद ग्रहण किया था। सदा ही शांत व  सौम्य व्यक्तित्व के धनी अभिमन्यु हिन्दी जगत् के शिरोमणि माने गए।  अपनी लेखनी को सशक्त बनाने के लिए कई बार उन्होंने पद को भी ठोकर मार दी थी।  मॉरीशस में हिन्दी साहित्य और अभिमन्यु को एक दूसरे के पूरक कहे तो अतिश्योक्ति नही होगी ।
 किसी भी भारतीय साहित्यकार के साथ अभिमन्यु अनत का तुलनात्मक अध्ययन कर शोध का विषय हो सकता है। उनकी लेखनी ने हमेशा मॉरीशस के आमजन की परेशानियों को उकेरा जाता रहा है। उन्हें कभी भी सत्ता का भय आक्रांत नहीं कर पाया। उन्होंने कई बार अपनी लेखनी के माध्यम से सत्ता को चुनौती दी।  भारत की सांस्कृतिक संपन्नता मॉरीशस की तुलना में अधिक है, भारत में उनकी प्रतिष्ठा का अपना अलग महत्व है। 
 साहित्य की विभिन्न विधाओं में 60 से अधिक पुस्तकों के रचयिता अनत का उपन्यास ‘लाल पसीना’ कालजयी कृति के रूप में विख्यात  है।मॉरीशस के उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले अभिमन्यु अनत के कुल 29 उपन्यास छप चुके हैं। पहला उपन्यास ‘और नदी बहती रही’ सन 1970 में प्रकाशित हुआ था तथा उनका आखिरी उपन्यास ‘अपना मन उपवन’  प्रकाशित हुआ है। उनका एक उपन्यास ‘लाल पसीना’ सन 1977 में छपा था, जो भारत से गये गिरमिटिया मज़दूरों की मार्मिक कहानी है। अब इसका अनुवाद ‘फ्रेंच भाषा’ में भी हो चुका है। इस दृष्टि से वे हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने वाले हिंदी भाषा के साहित्यकार कहे जा सकते है। जो अपने आप मे हिंदी के लिए गौरवशाली है।
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट)

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