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श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग  कौए को श्रीराम द्वारा दो अद्भुत वरदान

श्रीराम कथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग  कौए को श्रीराम द्वारा दो अद्भुत वरदान


श्रीराम के राज्य में प्रजा सुखी-सम्पन्न थी तो दूसरी तरफ उनके राज्य में पशु-पक्षी भी निर्भय रहते थे। श्रीराम छोटे से छोटे प्राणी पर भी प्रेम करते थे तथा उसकी रक्षा भी करते थे। ऐसा ही एक प्रसंग आनन्दरामायण के राज्यकाण्डम् पूर्वार्द्ध चतुर्थ सर्ग में कौए के बारे में प्रसिद्ध है। एक दिन की बात है कि श्रीराम अपने दरबार की सभा में बैठे थे। तब ही उन्होंने बड़े ध्यान से देखा कि अंगूर की लताओं के बीच बैठा कौआ एक ही नेत्र से दोनों नेत्रों का काम ले रहा है। कौआ अपनी आकृति से अत्यन्त दीन, व्यग्र दृष्टि से ऊँचे स्वर वाला और चंचल दिखता है। श्रीरामचन्द्रजी ने देखा कि वह कौआ बार-बार उनकी ओर देख रहा था तथा काँव-काँव करता ही जा रहा था। उसकी यह दशा देखकर श्रीराम के हृदय में दया आई और अपने किए गए पूर्व कर्म के कोप (जयन्त पर कोप) का स्मरण हो गया। श्रीराम ने कौए से कहा कि- हे काक! यहाँ मेरे पास आओ। इतना सुनकर कौआ अंगूर की लताओं के बीच से उड़कर श्रीराम के आगे आकर बैठ गया। सभा में वह श्रीराम को देखता हुआ जोर-जोर से काँव-काँव करने लगा तथा-
तदा तं राघव: प्राह तत्कृपाविष्टमानस:।
नेत्र विरा व रानन्यान काक याचस्व मां प्रति।।
आनन्द रामायण राज्यकाण्डम् पूर्वार्द्ध सर्ग ४-५
श्रीराम ने कौए से कहा कि तू अपने नेत्रों के सिवाय (अतिरिक्त) जो कुछ भी वर माँग ले। इस प्रकार की बातें सुनकर पृथ्वीपति श्रीराम से कौआ कहने लगा- हे राम! मेरे ऊपर इसी तरह सदा आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे। केवल इस लोक में सुख देने वाले अन्य वरदानों को लेकर मैं क्या करूँगा। कौए की बात सुनकर श्रीराम ने कहा- किसी द्वीपान्तर में भी होने वाले भूत-भविष्य और वर्तमान की सब बातें तुम्हारी आँख के सामने रहेगी अर्थात् इन तीनों कालों के सब कार्यों को तुम मेरे वरदान से जान सकोगे।
मनुष्य कहीं घर से जाते समय सदा तुमको देखकर शकुन का विचार करेगा। जब तुम बैठे दिखोगे तब देखने वाले पथिक का कार्य रूक जाएगा और तुम उन्हें चलते रहते दिखोगे तब देखने वाले पथिक का कार्य शीघ्र पूर्ण हो जाएगा। इस प्रकार लोग तुमको देखकर शगुन का विचार कर कार्य करेंगे। जब तुम नगर ग्राम में प्रवेश या गृहप्रवेश के समय जिस व्यक्ति के दाहिनी ओर से निकल जाओगे तो वह परम मंगलकारक शगुन हो जाएगा। प्रेत (मृत व्यक्ति) के दशाहपिण्ड को जब तक तुम नहीं छू लोगे तब तक उस प्रेत की सद्गति कदापि नहीं होगी। यदि प्रेत के दशाहपिण्ड को नहीं छुओगे तो उसके घरवाले (परिवार के) लोग समझ ले कि अभी प्रेत की इच्छा पूर्ण नहीं हुई है। प्रेत का कोई वंशज, तुम जिन जिन चीजों को नहीं छुओगे उनकी अधूरी इच्छा समझकर पूर्ण करेगा। तभी जाकर उस प्रेत को सद्गति प्राप्त होगी। तुम भी उस मृतात्मा के दशाहकर्म के पिंड को छूना जब जाकर प्रत्येक अंग पूर्ण हो जाए। तुम्हें दूसरा वरदान यह भी देता हूँ कि-
यत् किंचिल्लेखकैश्व विस्मृतं तत्र मद्वरात्।
कुर्वन्तु पदचिन्हं ते सर्वत्र जगतीतले।।
आनन्द रामायण राज्यकाण्डम् पूर्वार्द्ध सर्ग ४-६
जो लेखक लिखते समय कुछ भूल जाएंगे तब वे वहाँ पर तुम्हारे पैर का चिन्ह बना दिया करेंगे। पुस्तक के पार्श्वभाग में तुम्हारे पैर का चिन्ह देखकर लोग समझ जाएंगे कि वहाँ पर कुछ भूल (छूट) जाना है। इस प्रकार उस कौए को वरदान देकर श्रीरामचन्द्रजी हँसते हुए चुप हो गए। कौआ भी भगवान् श्रीरामजी को प्रणाम करके उड़ गया। इस प्रकार श्रीराम विविध प्रकार से लीलाएँ किया करते थे।
श्रीराम अत्यन्त ही दयालु तथा करुणा के सागर थे। एक समय की बात है जयन्त जो कि इन्द्र का पुत्र था, वह कौए का रूप धारण कर श्रीरामजी की शक्ति तथा बल को देखना चाहता था। अत: जयन्त ने कौए के रूप में-
सीता चरन चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा।
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधान।।
श्रीरामचरितमानस अरण्यकाण्ड दो. १-४
वह मूर्ख मंदबुद्धि के कारण से श्रीराम के बल की परीक्षा लेने के लिए कौए का रूप धारण करके सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तब श्रीरामजी ने जाना और धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण संधान कर भगवान श्रीराम ने-
सुनि कृपाल अति आरत बानी। एक नयन करि तजा भवानी।।
श्रीरामचरितमानस अरण्यकाण्ड १-७
शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं कि हे पार्वती! कृपालु श्रीरामजी ने उसकी अत्यन्त आर्त (दु:खभरी) वाणी सुनकर एक आँख का काना करके छोड़ दिया। श्रीराम को आनन्दनारायण में यही बताता है कि पूर्व में इस प्रसंग का स्मरण हो जाने से उन्होंने दया करके कौए को दो वरदान दिए हैं। इसलिए वाल्मीकि रामायण में बताया गया है-
अलंकारों हि नारीणां क्षमा तु पुरुषस्य वा
वाल्मीकिरामायण बा.का. ३३-७
स्त्री हो या पुरुष, क्षमा ही उसका (सर्वश्रेष्ठ) आभूषण है।
(लेखक- डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता )

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