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सर्दी की कुंडलिया 

सर्दी की कुंडलिया 

(1)
सर्दी का आतंक है,घबराया इनसान।
कुहरा तो अब बन गया, जीवन का अवसान।।
जीवन का अवसान, मंद अब जीवन सारा।
कम्बल,स्वेटर हीन, बना मानव बेचारा।।
पहन सताती शीत, बर्फ की मोटी वर्दी।
करती कत्थक नाच, आज मदमाती सर्दी।।
(2)
भीषण ठंडी पड़ रही, हवा मारती मार।
मौसम कैसा कर रहा, देखो अत्याचार।।
देखो अत्याचार, काम चौपट है सारा।
गया आदमी हार, आज बस आग सहारा।।
वर्फ दिखे हर ओर, काँपता है अब हर कण।
कौन भगाये मार, शीत जो सचमुच भीषण।।
(3)
धंधा मंदा पड़ गया, ठंड मारती ज़ोर।
जनजीवन ढीला हुआ, करे न कोई शोर।।
करे न कोई शोर, भयंकर ठंडी आई।
जो हैं घर से हीन, मौत की ख़बरें लाई।।
है सब कुछ ग़मगीन, नगर लगता है अंधा।
कुहरा करता आज, देख सर्दी का धंधा।।
(4)
डंट जाए फुटपाथ पर, हो बिलकुल असहाय।
बाक़ी सब घर में घुसे, तज रोज़ी,निज आय।।
तज रोज़ी निज आय, शीत की माया न्यारी।
साहस से सब दूर, आज हिम्मत है हारी।।
कोय नहीं है वीर, ठंड जिससे पट जाए।
लेकर ताक़त आज, समर में जो डँट जाए।।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे)

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