मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में मानपुर छैरा गाँव में देशी शराब के पीने से लगभग 24 लोगों की मौत हो चुकी है। अभी भी यह संख्या अंतिम नहीं है बल्कि और भी बढ़ सकती है।
मानपुर छैरा की घटना जहरीली शराब से मरने वालों की कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएँ घटती रहीं है। न केवल मध्यप्रदेश में बल्कि समूचे देश में और लगभग सभी प्रकार की विचार धाराओं की सरकार में।
आमतौर पर जब जहरीली शराब से मरने वालों की घटनायें हुई हैं, वे राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में उलझकर रह जातीं हैं, और कुछ दिन छापने के बाद जब मीडिया को कोई नया मुद्दा मिल जाता है, तब वो धीरे-धीरे जन चर्चा से बाहर हो जाती है।
अमूमन जाँच करने के लिये कुछ कमेटियां बनाई जाती हैं उनकी माह और सालों के बाद रपट आती है। तब तक जनता उन्हें भूल जाती है और सरकार की प्राथमिकताएं बदल जाती है। यह एक अनन्त कहानी है जो दशकों से चली आ रही है।
मानपुर छैरा की घटना के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कुछ बड़े अधिकारियों यानी कलेक्टर, एसपी को हटाया है। कुछ पुलिस वालों के तबादले किए हैं और एक दो पुलिस या आबकारी विभाग के छोटे अधिकारियों को निलंबित किया है। कोई भी सरकार घटना घटने के बाद जो बेहतर कर सकती है वही इस सरकार ने भी किया है। इसीलिए बाद की प्रशासनिक कार्यवाही के प्रति मैं कोई आरोप या कोई शिकायत नहीं कर रहा। शराब से मरने वालों में शराब बेचने वाले परिवार के भी लोग हैं और शराब बेचने वाले अपराधी गिरोह के व्यक्ति भी मौत का शिकार हुए हैं।
इसका मतलब हुआ कि शराब बेचने वालों को भी यह जानकारी नहीं थी कि यह शराब कितनी जहरीली हो चुकी हे। इसीलिए मैं मानपुर छैरा शराब कांड और इस प्रकार की सच्ची घटनाओं को दो भिन्न संदर्भें की कसौटी पर देखना चाहूगा। एक समाज चेतना और सामाजिक दायित्व दूसरा शराब बंदी के बारे में। जहाँ तक पहले बिन्दु का प्रश्न है वह भी एक गंभीर और विचारणीय विषय है। शराब बंदी और समाज सुधार को लेकर कई प्रकार के प्रयोग सामाजिक स्तरों पर पहले भी होते रहे हैं। कुछ जातीय संगठन और उनके धार्मिक गुरू शराब के खिलाफ, दहेज आदि कुरीतिओं के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं, जिनसे फौरी तौर पर कुछ परिणाम भी आए परंतु वे टिकाऊ या दीर्घकालिक साबित नहीं हुए। कुछ अन्य धर्म गुरूओं ने भी अपने-अपने अनुयायी समूहों में जनचेतना अभियान चलाये और धर्म के प्रचार के प्रयोग के साथ-साथ शराबबंदी के अभियान भी चलाएं लेकिन यह भी सफल और टिकाऊ नहीं हुए। मेरी राय में कोई भी धर्म शराब का समर्थक नहीं है। परंतु धर्म संगठन इन असामाजिक अपराधियों पर कोई कार्यवाही करने में असमर्थ है। धर्म गुरूओं के लिये भी धार्मिक मूल्य या उपदेश अमूमन केवल धर्म सभाओं तक सीमित है। उनके अनुयायी उन मूल्यों का पालन कर रहे हैं, या नहीं यह कसौटी उनकी नहीं होती।
समाज में भी इस गंभीर बीमारी के प्रति कोई चेतना नहीं है। परिवार या समाज अपने दायित्व के प्रति सजग नहीं है। और अब तो स्थिति इतनी चिंताजनक हो गई है कि, शराब का प्रचलन, बहुत दूर तक फैल गया है। शराब विक्रेताओं ने स्कूलों के बच्चों के लिये 5-10 रूपये वाले, पाऊच (जिन्हें छोटू कहा जाता है) शुरू किये हैं। बच्चों को उनके अभिभावक जो पैसा स्कूल जाने पर जेब खर्च के लिये देते हैं, उस पैसे से बच्चे शराब के पाऊच खरीद रहे हैं तथा स्कूल में पढ़ने के बजाय आसपास के पार्क या सड़कों के पास बैठकर सामूहिक मधपान करने लगे है।
मुझे कानपुर के एक मित्र ने दिल्ली वि.वि. के छात्र संघ चुनाव का एक अनुभव सुनाया, जिसे सुनकर मैं हैरान भी हुआ तथा तभी से निरंतर मानसिक चिंतन में ग्रस्त भी हू। उनकी बेटी दिल्ली वि.वि. छात्र संघ का चुनाव जीती थी। तथा उनके अनुसार उस चुनाव पर उन्होंने 70 लाख रूपया खर्च किया था। उन्हीं ने बताया कि मैं प्रतिदिन 2-3 पेटी शराब (व्हिस्की) छात्रावासों के छात्रों के लिये तथा लगभग इतनी ही बियर की पेटियां, कन्या छात्रावास के लिये भेजता था। उनकी बेटी के दलीय समर्थक छात्र -छात्रायें भी शराब की माँग करती थी और विलंब होने पर शिकायत व सूचना भेजती थी तथा पहुंच जाने पर संदेश भेजकर धन्यवाद अदा करती थीं। अगर छात्रसंघों की यह स्थितियां हो गई हैं, स्कूलों के बच्चों की यह स्थिति हो गई है, तो इसकी भयावहता समझी जा सकती है। और समाज का भविष्य किस पतन के गर्त में जा रहा है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
सरकारें शराब को आमदनी का जरिया बनाती हैं, तथा म.प्र. सरकार ने तो बाकायदा अन्य राज्यों के आबादी व शराब की दुकानों की तुलना करते हुए कहा कि प्रति 1 लाख की आबादी पर राजस्थान में 17 महाराष्ट्र में 21 और उत्तर प्रदेश में 12 वैध दुकानें हैं जबकि म.प्र. में मात्र चार दुकानें हैं, याने म.प्र. में दुकानें कम हैं और मुरैना के मानपुर छैरा की घटना की वजह शराब की सरकारी वैध दुकानों की कभी है। म.प्र. सरकार ने तुलना तीन ही राज्यों से की है राजस्थान जहाँ कांग्रेस सरकार है- महाराष्ट्र जहाँ शिवसेना के नेतृत्व वाली उद्धव सरकार है, तथा उ.प्र. जहाँ भा.ज.पा. की सरकार है। उन्होंने गुजरात की तुलना नहीं की, क्योंकि वह प्रधानमंत्री का प्रदेश है तथा उनकी नाराजगी महँगी पड़ सकती है।
दूसरे जहाँ दुकाने ज्यादा है, क्या वहाँ, अवैध शराब की बिक्री या शराब से मौतें नहीं हो रही? महाराष्ट्र, राजस्थान व उ.प्र. में तो कुछ ही दिनों पूर्व जहरीली शराब पीने से मौतें हुई थीं।
अत: मूल प्रश्न है कि, अवैध शराब को कैसे रोका जाये व क्या शराब का व्यापार सरकार को करना चाहिये? 20 फरवरी को मुख्यमंत्री जी ने बयान दिया
है कि शराब माफिया को खत्म करो वरना बर्खास्त कर देंगे“। मुख्यमंत्री जी का बयान अधिकारियों को कड़ा संदेश हो सकता है, परंतु क्या वह वास्तव में कड़ा व टिकाऊ है, यह भी देखना होगा? कड़ा पर प्रश्न चिन्ह है? क्योंकि किसी अधिकारी को उसके जिले के प्रभार से स्थानांतरित करना क्या वास्तव में कोई दंड है? ट्रांसफर क्या वास्तव में कोई दंड है? जो भ्रष्ट अधिकारी होते हैं, उन्हें कुछ चिंता अवश्य होगी क्योंकि भ्रष्टाचार के बँधे स्त्रोत छूट जायेंगे। परंतु भ्रष्टाचार तो अपना रास्ता बना ही लेता है। जहाँ जायेंगे वहाँ मार्ग खोज लेंगे अन्यथा कुछ दिनों के बाद किसी मलाईदार स्थान पर पुन: पहुंच जायेंगे। सरकारों को कैसे खरीदना-उपयोग करना-बिगाड़ना व खुश रखना यह सब नौकरशाही का, शास्वत अभ्यास है। कड़ी कार्यवाही तो तब होगी जब वे किन्हीं बड़े अधिकारियों को बर्खास्त करें, जिन्हें वे स्वत: जवाबदार मानते है। अभाव सूचना तंत्र का नहीं है वरन नियत का है। जब शराब माफियायों का या अन्य असामाजिक अपराधियों से नियमित पैसा नीचे से ऊपर तक जाता है तो यह तो सूचना तंत्र का अभाव नहीं वरन सक्षमता है। बताया जाता है कि वैध शराब की निर्धारित 75/- की बोतल वैध दुकानों पर 110/- में बिकती है तथा अवैध शराब की बोतल पच्चीस रूपये में।
दरअसल समस्या का निदान शराब बंदी है। शराब के पक्ष में सरकार निम्न तर्क देती है। एक शराबबंदी से सरकार की आमदनी कम हो जायेगी तथा विकास को पैसा कम होगा। दूसरे अवैध शराब बिकेगी, तीसरा पड़ोसी राज्यों से अवैध शराब आयेगी। सरकार की आय के बारे में विचार करते हुए मैं राष्ट्रपिता, महात्मा गाँधी के कथन से ही बात शुरू करॅगा :-
1. ”मैं भारत का कंगाल होना पसंद करॅगा लेकिन यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि हजारों लोग शराबी हों।“ (यंग इंडिया - 15/09/1927)
2. ”अगर मुझे घंटे भर को भारत का सर्वाधिकारी (डिक्टेटर) बना दिया जाये तो सबसे पहले मैं तमाम शराबखाने मुआवज़े दिये बगैर बंद करा दूगा।“
3. ”यह याद रखने की बात है कि शराब और जहरीली चीजों में पैदा होने वाली आय एक अत्यंत नीचे गिराने वाला कर है। सच्चा कर तो वह है जो कर दाता को आवश्यक सेवाओं के रूप में दस गुना बदला चुका दे। किंतु यह आबकारी आय क्या करती है? लोगों को अपने नैतिक मानसिक और शारीरिक पतन और भ्रष्टता के लिये कर देने को मजबूर करती है। शराबबंदी से राष्ट्र को जो जबरदस्त फायदा होगा उसके अलावा आर्थिक लाभ भी हागा। (हरिजन सेवक 31/07/1937 पृ. 190)
मैं समझता हू कि बापू के उपरोक्त उद्धरणों के बाद शराबबंदी के खिलाफ आय के मुद्दे का उत्तर मिल जाता है। दूसरा तर्क अवैध शराब बिकने का है। तो क्या उन सभी कानूनों को समाप्त किया जाये, जो अपराध रोकने के लिये बनाये गये थे। क्योंकि कानूनों के बावजूद भी अपराध हो रहे है, - यथा - हत्या - डकैती बलात्कार आदि। इन जधन्य अपराधों संबंधी कानूनों के द्वारा सख्त दंड के बावजूद भी ये अपराध हो रहे है तो क्या कानून ही खत्म कर दिया जाये। कानून अकेले दंड नहीं वरन देश व समाज के मान्य सिद्धांत व संकल्प भी होते हैं। तीसरा बिंदु अन्य राज्यों से अवैध शराब आने का है तो, यह भी तो संभावना है कि यहाँ के प्रयोग को देखकर पड़ोसी राज्य भी वैसा ही शराबबंदी का कदम उठाये और भारत सरकार भी सम्पूर्ण शराबबंदी लागू कर बापू को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करें।
म.प्र. सरकार ने तो बापू की पुण्यतिथि पर जो संदेश दिया है, वह बहुत ही चिंताजनक है। 30 जनवरी 2021 को बापू की पुण्यतिथि के दिन दैनिक भास्कर में खबर छपी कि म.प्र. सरकार के आबकारी मंत्री के पास देवास प्रस्ताव पहुंच चुका है कि शराब की होम डिलेवरी शुरू की जाये। मैं बापू की पुण्यतिथि पर उम्मीद करता हू कि प्रदेश सरकार को सद्बुद्धि आयेगी तथा ऐसा समाज विरोधी, आपराधिक निर्णय सरकार नहीं करेगा।
(लेखक- रघु ठाकुर )