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बच्चों के शिकायत करने की आदत 

बच्चों के शिकायत करने की आदत 

आमतौर पर देखा गया है कि कुछ बच्चों को बेवजह हर बात पर बडों से शिकायत करने की आदत पड जाती है। ऐसी स्थिति में यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चे को वास्तव में कोई परेशानी है या उसकी आदत ही ऐसी है।
दो-ढाई साल की उम्र से ही बच्चों में ऐसी आदतें दिखने लगती हैं। यह उनके भावनात्मक विकास का जरूरी हिस्सा है। इस उम्र से ही बच्चों में अधिकार की भावना विकसित हो जाती है। वे किसी के साथ अपनी चीजें शेयर नहीं करना चाहते। इसी उम्र में खुद से उनका जुडाव होता है। जब भी उन्हें ऐसा लगता है कि कोई दूसरा उन्हें नुकसान पहुंचाने वाला है तो वे शोर मचा कर विरोध प्रदर्शित करते हैं। उनका ऐसा व्यवहार सुरक्षा की दृष्टि से बेहद कारगर साबित होता है, लेकिन दिक्कत तब होती है जब बच्चे बेवजह छोटी बातों पर नाराज होकर शिकायत करते हैं या पांच साल की उम्र के बाद भी उनमें यही आदत बनी रहती है।
क्या है असली वजह
दरअसल छोटे बच्चे स्थितियों और व्यवहार से जुडी बातों को समझने में असमर्थ होते हैं। उनके लिए कोई भी बात पूरी तरह सही या गलत होती है। भाई-बहनों और दोस्तों से छोटी-छोटी शिकायतें करते हुए ही बच्चे सही-गलत की पहचान करना सीखते हैं। इसी के साथ उनमें नैतिकता की भावना विकसित होती है। खेलकूद के दौरान होने वाले छोटे-छोटे झगडों से भी कई ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं, जो ताउम्र उसके काम आती हैं। ऐसे में उसे आपके सहयोग की जरूरत होती है। आप उसे समझाएं कि छोटी-छोटी बातों के लिए मम्मी-पापा से शिकायत नहीं करनी चाहिए। अगर किसी दोस्त से तुम्हारा झगडा हो तो उसे अपने आप सुलझाने की कोशिश करो। हां, जब भी तुम्हें किसी से डर लगे या कोई खतरा महसूस हो तो हमें जरूर बताओ।
कैसे निबटें शिकायतों से
सबसे पहले बडों को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या सचमुच उनके बच्चे को कोई परेशानी है? उसकी पूरी बात सुने बिना अपने आप यह मान लेना अनुचित है कि बच्चे तो ऐसा करते ही हैं। चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, दो मिनट रुक कर धैर्यपूर्वक उसकी पूरी बात जरूर सुनें। ऐसा करना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार बच्चे सचमुच बहुत परेशान होते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए बडों का बीच में बोलना जरूरी होता है। बच्चों में यह तय करने की क्षमता नहीं होती कि कौन सी स्थितियां उसकी सुरक्षा की दृष्टि से नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। ऐसे में जो व्यक्ति बच्चों के साथ होता है, उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि उन पर नजर रखते हुए वह समझने की कोशिश करे कि उनके बीच खिलौनों के लिए मामूली छीना-झपटी हो रही है या मारपीट। कुछ बच्चों का व्यवहार बेहद आक्रामक होता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपने बच्चे को समझाएं कि तुम किसी से झगडा मत करना, लेकिन तुम्हें जब भी कोई खतरा महसूस हो तो आसपास मौजूद बड़ों को जरूर बताना।
इस प्रकार समझाएं
यह सच है कि बच्चों के बीच होने वाले छोटे-छोटे झगडे उनकी नासमझी की वजह से होते हैं। ऐसे में उन्हें बडों के सहयोग की जरूरत होती है। अगर कोई दूसरा बच्चा आपके बेटे से उसका मनपसंद खिलौना छीन लेता है और वह रोता हुआ आपके पास शिकायत लेकर आता है तो ऐसी स्थिति में आप उन दोनों को बारी-बारी से खेलने सलाह दे सकती हैं। अगर वे फिर भी न मानें तो वह खिलौना वापस मांग कर अपने पास रख लें और उनसे कोई दूसरा गेम खेलने को कहें। जब भी आपके बच्चे का किसी से कोई झगडा हो तो हल के रूप में उसके सामने कम से कम दो-तीन विकल्प जरूर रखें। इससे वह आसानी से अपने विवाद सुलझाना सीख जाएगा।
 

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