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...हरिद्वार महाकुंभ को भविष्य में हुए हादसों की पुनरावृत्ति से बचाने की आवश्यकता! 

...हरिद्वार महाकुंभ को भविष्य में हुए हादसों की पुनरावृत्ति से बचाने की आवश्यकता! 

कई महाकुंभ ऐसे भी हुए है जो भीड़ के कारण हुए हादसों,महामारी और लीक से हटकर हुई घटनाओं के कारण हमेशा याद किये जाते है।सन 2020 देश और दुनिया ने लॉक डाउन के साथ बिताया।लेकिन 
लॉक डाउन का इतिहास भी महाकुंभ के साथ जुड़ा है। देवभूमि हरिद्वार में सन 1879 में हुए महाकुंभ के समय भारी गन्दगी फैलने के कारण हरिद्वार महाकुंभ हैजे की चपेट में आ गया था।हैजा फैलने पर  गढ़वाल के सहायक आयुक्त को महाकुंभ में लॉक डाउन लगाने का आदेश देना पड़ा था।हैजा फैलने पर उस समय हरिद्वार महाकुंभ में यात्री अपने बीमार सहयात्रियों और मर चुके सहयात्रियों को छोड़ कर डर के मारे भागने लगे थे। जब इस बदतर हालत की गढ़वाल के सहायक आयुक्त को जानकारी मिली तो उन्होंने अपने कर्मचारियों को सड़कों पर पड़े शवों का अंतिम संस्कार करने के आदेश दिए। साथ ही गढ़वाल सहायक आयुक्त ने कुंभ में आये हुए यात्रियों  को जहां है , वही रुकने का आदेश भी दिया।ताकि हालात पर नियंत्रण किया जा सके। उस समय प्रशासन ने महाकुंभ से लगे गांव में दवाइयां और चिकित्सक भी लोगो के उपचार के लिए भेजे थे। उस समय के लाॅकडाउन में भी एक गांव से दूसरे गांव जाने पर कड़ा प्रतिबंध लगाया गया था।जो कई दिनों तक प्रभावी रहा।उत्तराखंड मामलों के जानकार डॉ अतुल शर्मा को आशंका नजर आ रही है कि इस कोरोना महामारी  संकट के चलते इस  साल का महाकुंभ भी प्रभावित हो सकता है, साथ ही कोरोना का साया  हरिद्वार महाकुंभ पर पड़ने का भी भय बना हुआ है।जिसके लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता है। महाकुंभ के आयोजन की अनुमति तो मिल गई।लेकिन सावधानी के साथ ही महाकुंभ की समय सीमा भी घटा दी गई।जो महाकुंभ जनवरी में आरंभ होने वाला था वह अब मार्च में होगा। महाकुंभ की घटनाओं के अतीत में झांके तो पता चलता है कि हरिद्वार कुंभ के दौरान जब जब भी हैजा फैला उसका विस्तार देश के अन्य हिस्सों में भी हुआ और  साथ ही गढ़वाल मंडल के लिये  संक्रामक बीमारियां आमजन के लिए महा मारक सिद्ध हुई।
इतिहास के पन्नो को पलट तो पता चलता है कि गढ़वाल मण्डल क्षेत्र में सन् 1857, सन1867 एवं सन1879 में हैजा  महामारी बनकर आया था,जिसने सैकड़ो लोगो को असमय मौत दे दी थी। लेकिन अधिकांश रूप में हरिद्वार महा कुंभ के बाद महा कुंभ क्षेत्र में हुई भारी गन्दगी ही हैजा फैलने का कारण बनी थीं। सन् 1857 एवं सन 1879 का हैजा धार्मिक नगरी हरिद्वार से लेकर उत्तर भारत के आखिरी गांव माणा तक फैल गया था। जिसके मूल में हरिद्वार महाकुंभ के बाद शुरू हुई चार धाम यात्रा में संक्रमित तीर्थयात्रियों के शामिल होने से हैजा नामक महामारी फैल गई  थी। सन् 1897 में हैजा की रोकथाम के लिए महामारी रोकथाम अधिनियम  अस्तित्व में लाया गया था।इसके आने के बाद सन 1882 में फिर से फैले हैजे के दौरान तत्कालीन गढ़वाल मंडल आयुक्त ने सन 1879 की तर्ज पर पुनः इलाके में लाॅकडाउन लागू करते हुए एक संक्रमण वाले जिले के लोगों के दूसरे जिले में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इस बात का उल्लेख हिमालयन गजेटियर के अंक 3 में भी मिलता है। जिसमे ई.टी. एटकिन्सन ने उल्लेख किया  है कि हैजे के दौरान गढ़वाल के चारधाम यात्रा मार्ग पर अगर कोई हैजा पीड़ित मर जाता था तो उसके सहयात्री उसके शव को वहीं सड़क पर छोड़कर आगे बढ़ जाते थे और सहयात्री की मौत को नियति का आदेश मान लेते थे। इसी प्रकार संक्रमित यात्रियों के सामान को  ढोने  वाले देवभूमि के पोर्टर यानि माल वाहक जब अपने गांव में जाते थे तो वे वहां भी संक्रमण फैला देते थे। जिस कारण पूरा का पूरा गांव ही संक्रमित हो जाता था।जिससे बड़ी संख्या में गांव के लोग भी मर जाते थे।क्योंकि उस समय स्वच्छता की तरफ गांव के लोगो का  ध्यान नहीं होता था। किसी भी गांव में हैजा फैलने पर गांव के लोग बीमार को बिना इलाज के ही  मरने के लिए  जंगल अकेला छोड़कर भाग जाते थे।उस समय जो लोगगांव में मर जाते थे उनके शवों को जलाया तक नहीं जाता था। शवो के सड़ने के कारण उसके  विषाणु वातावरण में फैल जाते थे।जिससे हवा दूषित हो जाती थी और पेयजल भी प्रदूषित हो जाता था।जो आबादी में रह रहे लोगो के लिए जानलेवा साबित हो जाता था। उस समय महाकुंभ के साथ साथ चारधाम यात्रियों  के द्वारा कई कई दिनों का पकाया हुआ  बासी खाना खाने और प्रदूषित जल पीने के कारण भी हैजा जैसी महामारियां फैल जातीं थीं। सरकार केगजेटियर के मुताबिक हैजे की महामारी से गढ़वाल मंडल में वर्ष 1903 में 4017 लोगो की मौत हो गई थी।इसके बाद हैजे की बीमारी से सन 1904 में 188 लोगो की,सन 1906 में 3429 लोगो की,सन 1908 में 2924 लोगो की, सन1909 में 1736 लोगो की, सन1910 में 782 लोगो की और सन1911 में 76 लोगो की मौत हुई थी।हालांकि इसके बाद भी संक्रमण के कारण देवभूमि हरिद्वार में आए यात्रियों और स्थानीय लोगो की बड़ी संख्या में मृत्यु हुई ,साथ ही हादसों के कारण भी लोगो की जाने गई है। जिस तरह से मौजूदा समय मे कोरोना ने विश्व स्तर पर लोगो को अपना शिकार बनाया है।उससे  देवभूमि हरिद्वार नगरी भी अछूती नही है।हरिद्वार जिले में पहले से ही कोरोना प्रभावित लोगो के मिलते रहने से यह संकट कम नही हुआ है।जिसका प्रभाव हाल ही में हो रहे महाकुंभ पर भी पड़ना अवश्यसम्भावी है।
यदि हम चाहते है कि यह महाकुंभ निर्विघ्न सम्पन्न हो तो उसके लिए कोरोना से सावधानी की विशेष तैयारियां करनी होगी और सामाजिक दूरी की बाबत कड़े नियम लागू करते हुए इस महाकुंभ को सरकार की निगरानी में सम्पन्न कराना होगा।तभी महाकुंभ भविष्य में हुए हादसों की पुनरावृत्ति से बच सकता है। 
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )
 

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