कोलकाता । पश्चिम बंगाल की चुनावी जंग हालांकि तृणमूल और भाजपा के बीच ही सिमटती नजर आ रही है लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे वामदलों की उम्मीदें भी अभी कायम हैं। वामदलों का मानना है कि ममता बनर्जी के खिलाफ लोगों में सत्ता विरोधी लहर है जिसका लाभ उन्हें राज्य में नए सिरे से खड़े होने में मिल सकता है। वामदलों की यह उम्मीद पिछले दो चुनावों के नतीजों के उलट दिखती है। यदि 2016 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो वह स्पष्ट दिखाते हैं कि भाजपा, कांग्रेस और वामपंथियों का सफाया कर राज्य में आगे बढ़ी है। जबकि ममता को मिलने वाला मत प्रतिशत करीब-करीब कायम रहा है। इसे वामपंथियों की खुशफहमी कहें या अति आत्मविश्वास, वह तो समय बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि माकपा ने त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार को अभी से बंगाल में चुनाव के मोर्चे पर लगा रखा है। वह राज्य में यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि त्रिपुरा में भाजपा की सरकार से लोग परेशान हैं। एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने भी कह दिया कि वोट देने से पहले माणिक सरकार की बात को लोग जरूर सुनें। दरअसल, 2019 के लोकसभा सीटों की जीत के आधार पर हुए एक विश्लेषण के अनुसार भाजपा को 121, तृणमूल को 164 तथा कांग्रेस को 9 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी जबकि वामपंथी दलों को किसी भी सीट पर बढ़त नहीं मिली। लेकिन माकपा का मानना है कि स्थिति अब बदल चुकी है।
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तृणमूल और भाजपा के बीच ही सिमटती नजर आ रही बंगाल की चुनावी जंग