कालजयी, वो युगपुरुष, भारत माँ की शान।
अटलबिहारी जी हुए, सचमुच गुण की खान।।
जनसेवक थे जो प्रखर, लिए दिव्यता ख़ूब।
राजनीति के यज्ञ की, थे जो पावन दूब।।
जिनने संपादित किए, अनगिन चोखे काम।
मानदंड रचकर प्रखर, रचे नए आयाम।।
मूल्ययुक्त थीं नीतियाँ, राजनीति परिशुद्ध।
रहे अटलजी बन सदा, महावीर औ' बुद्ध।।
सेवा और साहित्य के, थे जो ऊँचा नाम।
पद जिनको था हर घड़ी, केवल सेवाधाम।।
कोई भी ना शत्रु था, हर कोई था मित्र।
जीवन महका देशहित, बनकर नेहिल इत्र।।
दूरदर्शिता भाव से, किया देश-उत्थान।
अंतर में अध्यात्म था, भारत का जयगान।।
लेकर के सिद्धांत नव, लाये नवल विहान।
अटलबिहारी जी अटल, सचमुच बने महान।।
दुश्मन को जब मात दी, गूँजा जय-जयगान।
जननायक,सिरमौर तुम, थे गरिमा का मान।।
जब तक सूरज-चाँद है, अटल रहें आबाद।
यही कह रहा है वतन, रहो सदा ज़िन्दाबाद।।
दिया सुशासन दोस्तो, जो सच्चा उपहार।
दिव्यरूप में थे अटल, हम करते जयकार।।
'अटल' अटल थे, ना टले, कैसा भी हो काल।
करगिल के हालात हों, या आए भूचाल।।
थे विनम्र, कमज़ोर ना, थे जो वज्र समान।
कभी नहीं झुकने दिया, भारत का सम्मान।।
रखें विरासत हम युगों, यूँ ही सदा सँभाल।
वचन दे रहे हम तुम्हें, हे लालों के लाल।।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे)