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चमोली त्रासदी गाद से रुकी ऑक्सीजन तब हुई दर्दनाक मौत

चमोली त्रासदी गाद से रुकी ऑक्सीजन तब हुई दर्दनाक मौत

चमोली । तपोवन परियोजना की सुरंग में दबे लोगों के फेफड़ों और पेट में कीचड़ व गाद भरी मिली है। डॉक्टरों का कहना है कि गाद की वजह से फेफड़े बहुत जल्दी खराब हो गए होंगे और ऑक्सीजन की आपूर्ति रुकने से लोगों की मौत हो गई होगी।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अधिकांश शवों के फेफड़ों और पेट तक गाद पहुंचने की पुष्टि हुई है। डॉक्टरों का कहना है कि गाद से ऑक्सीजन का प्रवाह रुक गया होगा जिससे लोगों की मौत हो गई। तपोवन सुरंग में सोमवार को तीन शव मिले। इन शवों का डॉ अनूप सोनी ने पोस्टमार्टम किया है। उन्होंने बताया कि पानी में बहने की वजह से लोगों के मुंह और नाक में पानी भर गया होगा। इसके साथ ही मिट्टी, कीचड़ उनके फेफडों व पेट तक पहुंच गया। चमोली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुमान सिंह राणा ने बताया कि पानी में डूबने से लोगों की नाक और मुह में गाद चली जाती है। उन्होंने कहा कि पानी और गाद के फेफडों में जाने से सांस में मुश्किल होती है। ऐसे में दम घुटने से मौत हो जाती है। दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ आशुतोष सयाना ने बताया कि शरीर में गाद और पानी घुसने की वजह से ही दम घुटने वाली मौत की पुष्टि होती है। उन्होंने कहा कि पेट में पानी के साथ कीचड़ जाने से उतना नुकसान नहीं है। लेकिन फेफडों को कीचड़ बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाता है। तपोवन पावर प्रोजेक्ट की सुरंग में दूसरे दिन तीन और शव मिले। इन्हें मिलाकर दो दिन में इस सुंरग से नौ शव मिल चुके हैं। जबकि एक शव श्रीनगर डाम और मैठाना में एक धड़ भी बरामद हुआ है। आपदा प्रभावित क्षेत्र में अब तक 56 शव मिल चुके हैं। जिनमें 30 की पहचान हो पाई है। इस बीच बचाव दल ने पावर प्रोजेक्ट के दूसरी तरफ ओर भी मलबे की सफाई को तेजी से करना शुरू कर दिया है। बीते रोज सुरंग में बचाव दल ने कीचड़ में दबे छह शव बरामद किए थे। उसके बाद आधी रात के बाद 1.30 बजे और फिर सुबह सात बजे दूसरा शव बरामद हुआ। कुछ देर बार एक शव तक बचाव दल पहुंच गया था। आज मिले शवों में दो उत्तराखंड के लोगों के हैं। जबकि एक की शिनाख्त मध्यप्रदेश निवासी गजेंद्र के रूप में हुई है। सुरंग के भीतर खोज अभियान अब भी जारी है। आपदा के वक्त इस सुरंग में 25 से 35 लोग काम कर रहे थे। दोपहर डीएम स्वाति भदौरिया और एसएसपी यशवंत सिंह चौहान ने एनडीआरएफ-एसडीआरएफ अधिकारियों के साथ तपोवन बैराज क्षेत्र का मुआयना किया। ऋषिगंगा पर बनी झील के साफ पानी को देखते हुए कई विशेषज्ञ झील काफी पुरानी होने की संभावना जता रहे थे। लेकिन क्षेत्र का अध्ययन कर लौटी वाडिया और उत्तराखंड अंतरिक्ष केंद्र के विशेषज्ञों का कहना है कि झील घटना की रात ही बनी। कुछ देर पानी एकत्र होने के बाद उससे अचानक डिस्चार्ज हो और बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो एमपीएस बिष्ट ने कहा कि आपदा की घटना के समय से कुछ पहले रोंठी गदेरे से आए मलबे ने ऋषिगंगा का रास्ता रोक दिया और उससे झील बन गई।
 

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