नासा ने करीब 12 हजार तस्वीरों का अध्ययन करने के बाद खुलासा किया है कि पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा लगातार सिकुड़ता जा रहा है। इससे उसकी सतह पर किसी इंसानी चेहरे की तरह झुर्रियां पड़ती जा रही हैं। नासा ने अपने लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर से ली गई तस्वीरों के अध्ययन के बाद यह जानकारी प्रकाशित रिपोर्ट में दी है। 12 हजार से अधिक तस्वीरों के विश्लेषण के बाद नासा ने पाया कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास चंद्र बेसिन 'मारे फ्रिगोरिसÓ में दरार बन रही है, जो अपनी जगह से खिसक भी रही है। बता दें, चंद्रमा के कई विशाल बेसिनों में से एक 'मारे फ्रिगोरिसÓ को भूवैज्ञानिक नजरिए से मृत स्थल माना जाता है। यही नहीं धरती की तरह चंद्रमा पर कोई कोई टैक्टोनिक प्लेट नहीं है। इसके बावजूद यहां टैक्टोनिक गतिविधि होने से वैज्ञानिक भी हैरान हैं। विशेषज्ञों—वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा में ऐसी गतिविधि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया में 4.5 अरब साल पहले हुई थी। इस वजह से चंद्रमा की सतह छुहारे या किशमिश की तरह झुर्रीदार हो जाती है और इसी वजह से वहां भूकंप भी आते हैं।
150 फीट तक सिकुड़ चुका है चांद
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया की वजह से ही चंद्रमा पिछले लाखों सालों से करीब 150 फीट (50 मीटर) तक सिकुड़ चुका है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरी लैंड के भूगर्भ वैज्ञानिक निकोलस चेमर ने कहा कि इसकी संभावना काफी ज्यादा है कि लाखों साल पहले हुईं भूगर्भीय गतिविधियां आज भी जारी हों। बता दें कि सबसे पहले अपोलो मिशन के अंतरिक्ष यात्रियों ने 1960 और 1970 के दशक में चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधियों को मापना शुरू किया था। उनका यह विश्लेषण नेचर जिओसाइंस में प्रकाशित भी हुआ था। इसमें चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन था।
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सिकुड रहा है चंद्रमा, कम हो रहा आकार नासा ने कहा, सतह पर किसी इंसानी चेहरे की तरह झुर्रियां पड़ती जा रही