सर्व विदित है कि 19 47 में विभाजन के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया, जिसे पाक-अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। जम्मू एवं कश्मीर का लगभग 35 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है, जहां से पाकिस्तान दिवस पर इमरान खान अपने भारत विरोध का बिगुल फूक रहे हैं।दूसरी ओर, भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन कानून में जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा क्षेत्र के लिए 90 सीटों के अलावा पाक-अधिकृत कश्मीर क्षेत्र के लिए 24 सीटों का विशेष प्रावधान किया गया है। पाक-अधिकृत कश्मीर के नाम पर ही कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी जैसे नेता संसद में यू एन का अजब सुर अलाप रहे थे। मणिशंकर अय्यर और अधीर रंजन को संसद में सन 1964 के रिकॉर्ड का अध्ययन करना चाहिए, जब अनुच्छेद 370 की समाप्ति के लिए संसद में पेश प्राइवेट बिल को कांग्रेस के सात सांसदों का समर्थन मिला था। उसके बाद कांग्रेस की पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के समय भारत की संसद ने प्रस्ताव पारित कर पाकिस्तान से पाक-अधिकृत कश्मीर वापस लेने की मांग भी की थी। अब गृहमंत्री अमित शाह ने पाक-अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की मांग को संसद में दोहराया है. तो क्या पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय के बाद ही जम्मू एवं कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा...? अब तो गेंद पूर्ण रूप से केंद्र सरकार के पाले में है और अब अनुच्छेद 370 और 35 ए का अवरोध भी नहीं है। और तो और अब तो नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह राणा ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किये जाने के बारे में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान का शनिवार को स्वागत किया और कहा कि यह लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये उठाया जाने वाला कदम होगा।हम जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किये जाने के बारे में दिये गए गृह मंत्री के बयान का स्वागत करते हैं। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिये। सभी दलों को राजनीति से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर को इसकी पहचान वापस दिलाने की दिशा में काम करना याहिये। पर उन्होंने पार्टी के अनुच्छेद 370 के पुराने स्टैंड के बारे में कुछ नहीं कहा।
खैर अनुच्छेद 370 अब इतिहास हो चुका है क्योंकि पिछले 70 सालों के दौरान इस अनुच्छेद के प्रवधानों में इतनी बार फेरबदल किये गये कि इसका वजूद नाम भर को ही रह गया था। मगर 35 ए को इसके साथ ही समाप्त करने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को वे मूलभूत अधिकार प्राप्त हुए जो देश के किसी भी अन्य राज्य के नागरिकों को प्राप्त हैं। विशेष रूप से दलित व अनुसूचित जाति के लोगों को। अतः मानवाधिकारों की वकालत करते हुए हमें जम्मू-कश्मीर के इस पक्ष की भी चर्चा करनी चाहिए। जहां तक इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने का सवाल है तो भारत की संसद यह कार्य कभी भी कर सकती है, सवाल सिर्फ परिस्थितियों में सुधार होने का है। राज्य के लोगों को पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने अधिकार सम्पन्न बनाने के साथ उनके विकास में सीधी भागीदारी की नीयत दिखाई है उसका दिल खोल कर स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इस व्यवस्था में आम कश्मीरी अपने विकास के लिए सीधे सक्रिय होगा। भारत में अर्ध राज्यों से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का एक महत्वपूर्ण इतिहास भी मौजूद है। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा पंजाब से इसके अलग होने के कई वर्षों बाद दिया गया था। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व भारत के राज्यों को भी यह दर्जा रातों-रात नहीं मिला। बेशक जम्मू-कश्मीर इस मामले में पहला उदाहरण है जिसे पूर्ण राज्य से अर्ध राज्य का दर्जा दिया गया मगर इसके पीछे वे ठोस कारण हैं जिनकी वजह से केन्द्र को एेसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इनमें सबसे महत्वपूर्ण इस राज्य का भारतीय संघ में समावेशी तरीके से विलय था। अलग संविधान होने की वजह से शेष देशवासियों की नजरों में इसका भारतीय संघ में विलय ऊपर से गुंथा हुआ महसूस होता था जबकि पूरा देश एक स्वर में हमेशा यह आवाज बुलन्द करता रहता था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न व अटूट अंग हैं।
पिछले वर्ष की राज्यसभा की कार्यवाही में यह हकीकत संसद के रिकार्ड में दर्ज है कि स्वयं गृहमन्त्री ने इसका पुनर्गठन विधेयक रखने के बाद कहा था कि अनुच्छेद 370 इस राज्य में आतंकवाद को बढ़ावा देने, खास कर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को, सहायक रहा है। पाकिस्तान की नामुराद फौजें इस अऩुच्छेद का लाभ उठा कर कश्मीरियों में अलगाववाद की भावनाएं पनपाने के प्रयास करती रही हैं। जबकि दूसरी तरफ यह पुख्ता इतिहास है कि कश्मीर नागरिक शुरू से ही पाकिस्तान के निर्माण के विरुद्ध रहे हैं। यदि और बारीकी से हम विश्लेषण करें तो इसे केन्द्र शासित राज्य का दर्जा देकर श्री शाह ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने की हिम्मत तब दिखाई जब घाटी में आतंकवादी गतिविधियां कम नहीं हुई थी। किसी भी राज्य का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके राजनीतिक नेतृत्व की नीयत क्या है। कमोबेश इस राज्य में अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार ने ही भारत के लोकतन्त्र की परिपाटी का लाभ उठाया और राज्य में इन परिवारों से बाहर कोई नेतृत्व उभर ही नहीं सका। इसमें लोगों का दोष बिल्कुल नहीं है क्योंकि उन्हें क्षेत्रीय नेतृत्व ने 370 के मायाजाल में ही उलझाये रखा। इस मायाजाल को तोड़ने का काम जब गृहमन्त्री श्री शाह ने किया तो इन नेताओं में बगावती सुरों तक की झलक देखने को मिली परन्तु यह केवल ‘वक्ती उबाल’ था जो उबल कर बाहर आ गया और ख़तम भी हो गया।
(लेखक- अशोक भाटिया )
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जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य की बहाली का इंतजार ......?