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 मोदी जी की भाषा समझने के लिए अब एक नयी डिक्शनरी की जरूरत - वृंदा कारात

 मोदी जी की भाषा समझने के लिए अब एक नयी डिक्शनरी की जरूरत - वृंदा कारात

रांची। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातें समझने के लिए अब एक नयी डिक्शनरी बनानी पडेगी. क्योंकि वे जो बातें कहते है अब देश की जनता उन बातों को समझ नहीं पा रही है. लेकिन आपदा को अवसर बताकर मोदी जी ने इस देश के किसानों, मजदूरों और नौजवानों को जो सब्जबाग दिखाने की कोशिश की वह अब बे नकाब हो चुका है और  आम लोग यह बखुबी समझ रहें है कि मोदी जी की प्राथमिकता इस देश के कार्पोरेटों की तिजोरी भरना है. भले ही देश के अन्नदाता और मेहनतकश बर्बाद हो जाऐं. 
 यह बात आज रांची स्थित सीपीआई (एम) राज्य कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए पार्टी की पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद बृंदा  कारात ने कही. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार भारत मे लोकतंत्र को खत्म करने, आत्म निर्भरता के नाम पर देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठाने, किसानों और मजदूरों का अपमान करने और हर ज्वलंत मुद्दों पर झुठ का पुलिंदा खोलने मे अपने को  कथित विश्व गुरु के रुप मे प्रोजेक्ट कर रही है. इनके महा गुरु और पहले के कथित विश्व गुरु डोनाल्ड ट्रम्प की हार से भी इन्होंने कोई सबक नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अवसर बताकर संसद मे बिना समुचित बहस कराए और बिना वोटिंग के देश के मेहनतकशों के अधिकारों पर बंदिश लगाने और उन्हें कार्पोरेट घरानों का गुलाम बनाने का कानून पारित करा लिया. इतना नहीं छद्म राष्ट्रवाद और देशभक्ति का स्वांग रचने वाली मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था की रीढ और संप्रभुता के प्रतीक सार्वजनिक क्षेत्र के उधमो का बड़े पैमाने पर नीजीकरण कर अपने देशी - विदेशी आकाओं के सामने आत्म समर्पण कर दिया है. देश की आजादी के बाद हो रहे इतने व्यापक किसान आंदोलन को मोदी सरकार आतंकवादी, विदेशी और राष्ट्र विरोधी कहकर बदनाम करने मे अपनी पुरी ऊर्जा नष्ट कर रही है. जबकि हमारे देश के अन्नदाता आज 84 दिनों से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं और किसानों के आंदोलन का दायरा पुरे देश में तेजी से बढता जा रहा है जो इस बात का सबुत है कि मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के किसानों - मजदूरों का असंतोष बढता जा रहा है.यही असंतोष मोदी सरकार के पतन का कारण बनेगा. 
 मोदी सरकार की आत्मनिर्भरता का अर्थ कार्पोरेट घरानों पर निर्भरता और उनके राष्ट्रवाद का मतलब है देश की संप्रभुता को गिरवी रखना हैं।  उन्होंने कहा कि मोदी  सरकार हमारे देश की आत्मनिर्भरता और अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्र इस्पात और कोयला उधोग का भी तेजी से निजीकरण किया जा रहा है. जिसके खिलाफ मजदूर वर्ग लगातार आंदोलन के मैदान मे है.
इसका ताजा उदाहरण इस्पात मजदूरों द्वारा विशाखापट्टनम स्टील प्लांट मे चलाया जा रहा ऐतिहासिक आंदोलन है. मोदी सरकार ने मुनाफा देने वाले इस स्टील प्लांट को जिसने वर्ष 2019 मे 97 करोड़ का मुनाफा सरकारी खजाने मे जमा कराया उसे दक्षिण कोरिया की  कुख्यात कंपनी पौस्को के हाथों बेच रही है. इस स्टील प्लांट मे 33 हजार मजदूर काम करते हैं और यह सार्वजनिक क्षेत्र की एक नवरत्न कंपनी है. मोदी सरकार ने इस स्टील प्लांट को अपनी लौह अयस्क की जरूरत के लिए अपना कैप्टिव प्लांट खोलने की इजाजत नही दी. जबकि निजी इस्पात संयंत्रों को इस प्रकार की इजाजत दी गई. मोदी सरकार का यह निर्णय पुरी तरीके से राष्ट्र विरोधी है. इतना ही नही सरकार ने विशाखापट्टनम स्टील प्लांट की 22 हजार एकड जमीन भी कार्पोरेट घरानों के हाथों सौंपने की तैयारी कर ली है.  यही मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत का एजेंडा है इसलिए मोदी जी यदि रात कहते हैं तो वह निश्चित रूप से दिन होगा क्योंकि वे  जो मन की बात कहते है वह मनमानी की बात मे तब्दील हो जाती है.
इसलिए मेहनतकशों के लिए आने वाला समय काफी चुनौतीपूर्ण होगा इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि तमाम देशभक्त, सेकुलर और लोकतांत्रिक शक्तियों को एकजुट करते हुए मोदी सरकार द्वारा संविधान, लोकतन्त्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर संगठित रुप से किए जा रहे हमले के खिलाफ विरोध की कार्रवाई को और तेज करना होगा.
प्रेस वार्ता में राज्य सचिव गोपीकांत बक्सी के अलावा सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव और प्रफुल्ल लिंडा भी मौजूद थे. 
प्रेसवार्ता से  पहले सीपीआई (एम) का एक शिष्टमंडल बृंदा कारात के नेतृत्व मे झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी से मिला और उनसे आदिवासियों के विस्थापन और भाजपा शासन के दौरान हुए सांप्रदायिक मोब  लिंचिग के शिकार व्यक्तियों के परिवारों को उचित मुआवजा दिए जाने के संबंध मे चर्चा की.
 

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