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वर्तमान की सामाजिक चुनौतियाँ 

वर्तमान की सामाजिक चुनौतियाँ 

सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में सामाजिक विचारकों का ध्यान सहज रूप से इसलिए आकर्षित होता है,क्योंकि सामाजिक समस्याएँ सामाजिक जीवन का अविभाज्य अंग हैं। मानव समाज न तो कभी सामाजिक समस्याओं से पूर्ण मुक्त रहा है और न ही रहने की सम्भावना निकट भविष्य में नज़र आती है, परन्तु इतना तो निश्चित है कि आधुनिक समय में विद्यमान संचार की क्रान्ति तथा शिक्षा के प्रति लोगों की जागरुकता के फलस्वरूप मनुष्य इन समस्याओं के प्रति संवेदनशील एवं सजग हो गया है। सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने में जनसंचार के माध्यम, यथा-टेलीविजन, इंटरनेट, अख़बार एवं रेडियो ने अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। मुख्यतः टेलीविजन पर प्रसारित विभिन्न चैनलों के कार्यक्रमों तथा स्थानीय, प्रादेशिक एवं अन्तर्राज्यीय अख़बारों की भूमिका प्रशंसनीय है।
मानव समाज में संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक भिन्नताएं पाई जाती हैं,परन्तु भिन्न भिन्न समाजों में इनका स्वरूप, प्रकृति एवं गहनता अलग-अलग होती है। सामाजिक समस्याओं का सम्बन्ध समाजशास्त्र विषय के अन्तर्गत विद्यमान गत्यात्मक एवं परिवर्तन विषय से सम्बद्ध रहा है।जो समाज जितना अधिक गत्यात्मक एवं परिवर्तनशील होगा उसमें उतनी ही अधिक समस्याएं विद्यमान होंगी। समाज का ताना-बाना इतना जटिल है कि इसकी एक इकाई में हेने वाला परिवर्तन अन्य इकाईयों को भी प्रभावित करता है। इस परिवर्तन का स्वरूप क्या होगा? एवं इसके प्रभाव क्या होंगे?, यह समाज की प्रकष्ति पर निर्भर करता है। विभिन्न युगों में सामाजिक परिवर्तन की गति अलग-अलग रही है। इसलिए भिन्न-भिन्न समाजों में सामाजिक समस्याओं की प्रकृति एवं स्वरूप भी अलग-अलग पाये जाते हैं। वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन अति तीव्र गति से हो रहा है। इस तरह बदलते आधुनिक समाज के स्वरूप ने सामाजिक समस्याओं में बेतहाशा वृद्धि की है। मानव समाज इन सामाजिक समस्याओं का उन्मूलन करने के लिए सदैव प्रयासरत रहा है, क्योंकि सामाजिक समस्याएं सामाजिक व्यवस्था में विघटन पैदा करती हैं जिससे समाज के अस्तित्व को खतरा पैदा हो जाता है।समाजशास्त्र मानव समाज को निर्मित करने वाली इकाईयों एवं इसे बनाए रखने वाली संरचनाओ तथा संस्थाओं का अध्ययन अनेक रूपों से करता है। समाजशास्त्रियों एवं सामाजिक विचारकों ने अपनी रूचि के अनुसार समाज के स्वरूपों, संरचनाओ, संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है। समस्या विहीन समाज की कल्पना करना असम्भव सा प्रतीत होता है।
वर्तमान समय में भारतीय समाज अनेक सामाजिक समस्याओं से पीड़ित है जिनके निराकरण के लिए राज्य एवं समाज द्वारा मिलकर प्रयास किये जा रहे हैं। भारतीय समाज की प्रमुख समस्याओं में जनसंख्या मे़ बढ़ोत्तरी, निर्धनता, बेरोज़गारी, असमानता, अशिक्षा, आतंकवाद, घुसपैठ, बालश्रम, भ्रष्टाचार, नशाखोरी, दहेज प्रथा, बालविवाह,नारी पर परतंत्रता  कन्याभ्रूण हत्या,जातिभेद, अस्पृश्यता, लिविंग टुगेदर बाल अपराध, मद्यपान, जातिवाद, अस्पृश्यता,विविध अंधविश्वास रूढ़ियाँ व रुग्ण मान्यताएँ ये सभी समस्याएँ सामाजिक समस्याओं की परिधि मेंआती हैं। सामाजिक समस्याओं के निराकरण के लिए यह अत्यावश्यक है कि इनकी प्रकृति को समझा जाए एवं स्वरूपों की व्याख्या की जाए। भिन्न-भिन्न सामाजिक समस्याओं के मध्य पाए जाने वाले परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषण एवं अनुशीलन कर हम इन समस्याओं के व्यावहारिक निराकरण के लिए एक नया चिंतन प्रस्तुत कर सकते हैं।
वस्तुत: सामाजिक बदलाव हेतु सामाजिक सोच में परिवर्तन आवश्यक है।यद्यपि शिक्षा के प्रसार से शनै: शनै: इन सामाजिक रुग्णताओं व विकारों का ह्रास हो रहा है,तो भी इन सामाजिक विकृतियों ने समाज को दूषित कर रखा है,तथा सामाजिक प्रगति का मार्ग अवरुद्ध कर रखा है।ये विकृतियाँ चुनौती के रूप में समाज के समक्ष उपस्थित हैं,जिनका सामना किए बिना हम कदापि भी उत्थान की राह पर तीव्रता से अग्रसर नहीं हो सकते ।ये चुनौतियाँ एक प्रकार ये सामाजिक कलंक के रूप में विद्यमान हैं,जिनको पराभूत किए बिना हम आंतरिक दृष्टि से सबल बनकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उतनी तीव्रता से नहीं उभर सकते, जिसके हम वास्तविक रूप मेंअधिकारी हैं।
(लेखक-प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे )

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