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बच्चों को जीत ही नहीं हार से भी निपटना सिखाइए 

बच्चों को जीत ही नहीं हार से भी निपटना सिखाइए 

बच्चे की सफलता पर हमारी प्रतिक्रिया जितनी सकारात्मक होती है, असफलता पर उतनी ही विपरीत। पर अपनी प्रतिक्रिया देने के इस क्रम में हम बच्चे को हार का सामना करना सिखा ही नहीं पाते। कैसे बच्चे को इसमें भी बनाएं माहिर, बता रही हैं स्पर्धा रानी
छोटी सी मेधा जब स्कूल के स्पोर्ट्स डे पर पिछड़ गई तो उसका रो-रोकर बुरा हाल था। उसे बार-बार यही लग रहा था कि दौड़ में इतनी मेहनत के बावजूद वह पीछे रह गई। पहले तो उसकी मम्मी ऋतु को भी बहुत दुख हुआ, लेकिन बाद में मेधा की हालत देखकर उन्होंने मेधा को समझाने की कोशिश की। अंतत: मेधा को समझ में आ गया कि हारने से ज्यादा जरूरी है, खेल में हिस्सा लेना।
हम सब कई क्षेत्रों में पीछे रह जाते हैं, हार जाते हैं। ऑफिस के काम से लेकर खेल-कूद, प्रतियोगी परीक्षाओं में भी, लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम हिम्मत हारकर बैठ जाएं। खासकर बात जब बच्चों की आती है तो हमें उन्हें हार-जीत से परे होकर हिस्सा लेने के बारे में समझाना चाहिए, क्योंकि हम अपने बच्चों को फेल होते नहीं देखना चाहते और न ही उनके भविष्य के साथ किसी तरह का खिलवाड़ होते देखना चाहते हैं। बच्चों को यह बात समझ में आए, इसके लिए जरूरी है कि हम उनके साथ ढेर सारा समय बिताएं और उन्हें ही प्राथमिकता दें। उन्हें खूब सारा प्यार देकर और प्रोत्साहन भरे शब्दों का इस्तेमाल करके हम उन्हें राहत महसूस कराएं। अपने बच्चों को हार से उबारने और उससे पार पाने के लिए हमें उन्हें कुछ खास बातें जरूर बतानी चाहिए।
सबको नहीं मिलती ट्रॉफी
उन्हें सबसे पहले यह समझाएं कि हर समय जीतना जरूरी नहीं है। इसकी शुरुआत स्कूल में ही हो जाती है, जब वे खेलों में हिस्सा लेते हैं। उन्हें यह बताएं कि हर समय हर व्यक्ति जीत नहीं सकता। हालांकि उनका यह भी समझना जरूरी है कि वे जो कर रहे हैं, उसमें अपना बेहतर देने की कोशिश करें। लेकिन जितने गर्व के साथ से वे जीत को सिर-माथे पर लेते हैं, उतने ही खुश होकर हार को भी अपनाएं।
अपनी हार अपने माथे
उन्हें अपनी हार खुद अपने माथे लेना सिखाएं। अमूमन देखा गया है कि जब बच्चे किसी चीज में पिछड़ जाते हैं तो वे दूसरों को अपनी हार के लिए जिम्मेदार बताते हैं। लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि हार को स्वीकार करने से ही सफलता हासिल होती है। दूसरे को जिम्मेदार बताने से कुछ भी नहीं मिलता।
सबकी प्रतिभा अलग-अलग
कई चीजें हमारे बस में नहीं होती। संभव है कि आपका बच्चा खेल में अच्छा हो और पढ़ाई में औसत। इस बात को आपको भी स्वीकार करना चाहिए और बच्चे को भी समझाइए। हां, यह जरूर है कि आधारभूत पढ़ाई सबके लिए जरूरी है। आपको यह सोचकर खुश होना चाहिए कि वह किसी क्षेत्र में तो चैंपियन है। उन्हें उस रास्ते पर चलने में मदद कीजिए, जहां उनकी सफलता छिपी है।
हार के बारे में बातचीत
उनसे बात करें कि हारने के बाद उन्हें कैसा महसूस हो रहा है। यह महत्वपूर्ण है कि आपका बच्चा अपने एहसास आपसे बांटे। इस तरह से आपको यह पता चलेगा कि उन्हें कितना दुख पहुंचा है और आप किस तरह से उन्हें सांत्वना दे सकती हैं और यह समझा सकती हैं कि कभी-कभी हारना भी बुरा नहीं है। अपना यह एहसास बांटने से उन्हें जीवन के अन्य क्षेत्रों के लिए भी तैयार होने में मदद मिलेगी।
सफलता की सीढ़ी हार
उन्हें समझाएं कि हार सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने का रास्ता भी हो सकता है। यदि वे बैठकर यह सोचने में लग जाएंगे कि वे कैसे हार गए तो इसका कोई सकारात्मक परिणाम हाथ नहीं आएगा। इसकी बजाय यदि वे अगली बार के लिए तैयारी करेंगे तो निश्चित तौर पर सफलता उनके कदम चूमेगी।
 गले लगाएं
सबसे बड़ी बात, जब भी आपका बच्चा दुखी हो, उसे गले लगाएं। हमें गले लगाने की जरूरत हर उम्र में पड़ती है। तो आपका बच्चा चाहे पांच साल का हो या पंद्रह का, उसे गले जरूर लगाएं। याद रखें कि आप जितना देंगी, उतना ही आपको वापस मिलेगा। सोचकर देखिए, क्या आपको उस समय अच्छा नहीं लगेगा, जब आप दुखी हों और आपका बच्चे आगे बढ़कर आपको गले लगा ले।
जीतना सीखें
यह सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन सच तो यह है कि जीतने की भी कला होती है। जीतने की योजना भी बनाई जानी चाहिए और उसके बाद उसी के अनुसार काम करना चाहिए। बच्चे की जीतने की इस योजना में आप उसकी मदद कर सकती हैं। पढ़ाई के लिए दिनचर्या बनाने में उसकी मदद करें, पढ़ने में उसकी मदद करें। परीक्षा के समय जब वह देर रात तक जागता है तो उसे चाय या कॉफी बनाकर दें। कहने का तात्पर्य है कि किसी की जीत के लिए सिर्फ उसकी अपनी काबिलियत नहीं, दूसरों की मदद भी जरूरी है।
 

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