यह एक अच्छी बात है कि कोरोना काल में भी देश अपनी सुरक्षा के प्रति सजग है। आज पाकिस्तान और चीन के साथ सीमा पर बढ़े तनाव के बीच सेना की ताकत और मजबूत हुई है इस दौरान सेना को उन्नत श्रेणी के स्वदेशी अर्जुन टैंक एमके-1ए मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में सेना को यह टैंक सौंपा। सेना को उन्नत श्रेणी के अर्जुन टैंक एमके-1ए सौंपने के बाद प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि यह भारत की एकजुट भावना का प्रतीक भी है, क्योंकि दक्षिण भारत में निर्मित बख्तरबंद वाहन देश की उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा करेंगे। सेना प्रमुख जनरल एमएन नरवाने को टैंक के प्रतिकृति मॉडल सौंपने के बाद प्रधानमंत्री ने अत्याधुनिक टैंक की सलामी लेकर स्वागत किया। यह टैंक पूरी तरह से स्वदेशी है। इसके डिजाइन से लेकर विकास और मैन्युफैक्चरिंग तक का काम देश में ही किया गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने इसे विकसित किया है। स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए और बनाए गए अर्जुन मेन बैटल टैंक(एमके-1ए) देश के लिए गर्व है। ये टैंक स्वदेशी गोलाबारूद का भी इस्तेमाल करता है। तमिलनाडु पहले ही भारत का ऑटोमोबाइल निर्माण का हब है, अब मैं तमिलनाडु को भारत के टैंक निर्माण के हब के रूप में विकसित हो रहा हैं। प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की है कि तमिलनाडु में बना टैंक देश को सुरक्षित रखने के लिए उत्तरी सीमाओं की निगरानी करेगा। यह देश की एकता की भावना 'भारत एकता दर्शन' का सही प्रदर्शन है। उन्होंने कहा कि अपनी सेना को दुनिया की सबसे आधुनिक सेना बनाने के लिए हम काम करते रहेंगे। इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर भी तेजी से काम होगा। अपग्रेड होने के बाद अर्जुन हर तरह से खतरनाक हो गया है। इसके शामिल होने से भारतीय सेना ने दुनिया की सबसे खतरनाक सेना बनने की तरफ एक कदम और बढ़ा दिया है।
ऐसा नहीं कि अर्जुन टैंक रातों रात बन कर तैयार हो गया। सेना की कसौटी पर खरा उतरने के लिए उसे 35 वर्ष लग गए। इस प्रोजैक्ट की शुरूआत 1972 में की गई थी, हालांकि इसका बड़े पैमाने पर निर्माण तमिलनाडु के अवाडी की आर्डिनेंस फैक्ट्री में 1996 में शुरू किया जा सका था। डीआरडीओ के काम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट ने इसे डिजाइन किया। अर्जुन टैंक को पहली बार 2004 में भारतीय सेना में शामिल किया गया था। मौजूदा समय में सेना के पास 124 अर्जुन टैंक की दो रेजीमेंट हैं जिन्हें जैसलमेर और भारत-पाकिस्तान की सीमा पर तैनात किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नवम्बर में सैनिकों के साथ दीपावली मनाने जैसलमेर के लोंगोवाल सीमा पर गए थे तो उन्होंने जिस अर्जुन टैंक की सवारी की थी, उसी का यह उन्नत संस्करण एम के-1ए है।
यह परियोजना 2015 से ही अधर में लटकी हुई थी। कभी बजट की समस्या तो कभी कुछ और। सेना ने रूस को 464 टी-90 के लिए 14 हजार करोड़ का आर्डर दिया भी था। 2012 में विकसित किए गए अर्जुन मार्क-2 को 2018 में अर्जुन मार्क-1ए का नाम दिया था। सेना ने अर्जुन टैंक में कई खामियां देखी। सेना ने कई तरह के अनुमान हासिल किये। इनके आधार पर इसके उन्नत वर्जन के लिए 72 तरह के सुधारों की मांग की। डीआरडीओ ने सेना के सुझावों को शामिल करते हुए हंटर किलर टैंक तैयार किया। ट्रायल में भी काफी समय लगा। मार्च 2020 में पोखरण में इसके परीक्षण किये गए जिनमें यह पूरी तरह खरा उतरा। सेना ने इस टैंक में भी 14 नए फीचर्स की मांग की थी। इन फीचर्स को शामिल करके डीआरडीओ ने नए टैंक तैयार किये।
उन्नत संस्करण अर्जुन मार्क-1ए ने सभी ट्रायल पूरे कर लिए जिसके बाद इसको सेना में शामिल करने का फैसला किया गया। इन सभी सुधारों के बाद यह टैंक अपने आप में परिपूर्ण है और दुनिया में कहीं भी यह टैंक अपने लक्ष्य को स्वयं तलाश करने में सक्षम है और स्वयं तेजी से आगे बढ़ते हुए दुश्मन के लगातार हिलने वाले लक्ष्यों पर सटीक प्रहार कर सकता है। टैंक में कमांडर, गनर, लोडर और चालक का क्रू होगा। इन चारों को यह टैंक युद्ध के दौरान पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेगा। टैंक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि रणक्षेत्र में बिछाई गई माइंस को साफ करते हुए आसानी से आगे बढ़ सकता है। कंधे से फोड़ी जाने वाली एंटी टैंक ग्रेनेड और मिसाइल का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अलावा कैमिकल अटैक से बचने के लिए इसमें विशेष तरह के सेंसर लगे हैं। कैमिकल पर परमाणु बम हमले की स्थिति में इसमें लगा अलार्म बज उठेगा। अर्जुन में 120 एमएम की राइफल गन है। टैंक में फिट गन में एक बार में 3000 राउंड फायरिंग कर सकती है। ये कभी अपना निशाना नहीं चूकती।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बार-बार कहते रहे हैं कि भारत रणनीतिक कौशल के साथ कूटनीतिक कर्णप्रियता पर भरोसा रखने वाला देश है जिससे दूसरे किसी देश के साथ कोई भी विवाद हल किया जा सकता है। रक्षामंत्री ने अंततः चीन को समझा दिया कि चाहे वह वार्ता की मेज हो या रणभूमि उसकी चालाकी किसी कीमत पर नहीं चलेगी। भारतीय सेनाएं हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं। पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने रणनीतिक कौशल का परिचय दिया और चीन को अपनी सेनाएं पीछे हटाने को मजबूर होना पड़ा। इससे दुनिया भर में यह प्रदर्शित हो चुका है कि भारतीय सेना अब काफी शक्तिशाली हो चुकी है। अर्जुन हासिल होने के बाद उसकी ताकत और बढ़ी है। रक्षा मंत्रालय हथियारों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जुटा हुआ है।
(लेखक- अशोक भाटिया)
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रक्षा क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है