क्या आपने कभी किसी के ऊपर हो रहे अत्याचार के विरूद्ध आवाज उठायी है। किसी कमज़ोर और लाचार को पिटता देखकर मदद के लिए आगे आएं हैं। अगर आपने ऐसा नहीं किया है तो समझ लीजिए आपने अपने खाते में पाप की पूंजी जमा कर ली है। शाŒााW में जिस प्रकार से पाप और पुण्य को परिभाषित किया गया है उसके अनुसार जो व्यक्ति किसी को कष्ट में देखकर उसकी मदद नहीं करता है। किसी के भय से अथवा अपने स्वार्थ के कारण झूठ बोलता है और शरण में आये व्यक्ति की रक्षा नहीं करता है वह पापी है।
इस संदर्भ में एक कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है। एक थे राजा शिवि। इनके धार्मिक स्वभाव और दयालुता एवं परोपकार के गुण की ख्याति स्वर्ग में भी पहुंच गयी। इन्द्र और अग्नि देव ने योजना बनायी कि राशि शिवि के गुणों को परखा जाए। एक दिन अग्नि देव कबूतर बने और इन्द्र बाज। कबूतर उड़ता हुआ राजा शिवि की गोद में आकर बैठ गया और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा। इसी बीज बड़ा सा बाज राजा शिवि के पास पहुंचा और कबूतर को वापस करने के मांग करने लगा। बाज ने कहा कि, कबूतर मेरा आहार है अगर आप मुझे वापस नहीं करेंगे तो आपको मुझे भूखा रखने का पाप लगेगा।
बाज की बातों को सुनकर राजा शिवि ने कहा कि कबूतर मैं तुम्हें नहीं दूंगा अगर कोई अन्य उपाय है तो बताओ। बाज ने कहा कि कबूतर के मांस के बराबर मुझे मांस दे दीजिए इससे मेरा काम हो जाएगा। राजा ने विचार किया कि एक जीव को बचाने के लिए दूसरे जीव का कष्ट देना पाप होगा। यही सोच कर राजा ने कबूतर को तराजू के एक पलडे में डाल दिया और अपने शरीर से मांस काटकर दूसरे पलड़े में रखने लगे। लेकिन काफी मांस रखने के बाद भी पलड़ा हिला तक नहीं। अंत में राजा शिव स्वयं दूसरे पलड़े पर बैठ गये और बाज से कहा कि तुम मुझे खाकर अपनी भूख शांत कर लो। राजा के इस दयालुता और शरण में आये हुए कि मदद करने की भावना को देखकर कबूतर अग्नि देव और बाज देवराज इन्द्र के रूप में प्रकट हुए। आसमान से फूलों की वर्षा होने लगी। देवराज इन्द्र ने कहा कि तुम ने धर्म की लाज रखी है। जो शरण में आये की रक्षा नहीं करता वह पापी है। कमज़ोर की सहायता न करने वाला भी अधर्मी है। दोनों देवताओं ने राजा शिवि को आशीर्वाद दिया और स्वर्ग चले गये।
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(चिंतन-मनन) कहीं आप भी पाप की पूंजी तो जमा नहीं कर रहे